29 સપ્ટે, 2020

इमोजी की दुनिया

आइए, आज व्हाट्सएप्प के इमोजी की सहायता से दुनिया की सबसे वैज्ञानिक, सबसे प्रतिष्ठित, सबसे अधिक उपयोगी और निस्संदेह सर्वश्रेष्ठ भाषा *संस्कृत* देवभाषा सीखते हैं..

😀 - हसति 
😬 - निन्दति 
😭 - रोदिति 
😇 - भ्रमति 
🤔 - चिन्तयति 
😡 - कुप्यति 
😴 - स्वपिति 
😩 - क्षमां याचते / जृम्भते 
😳 - विस्मयो भवति / निर्निमेषं पश्यति 
😌 - ध्यायति 
👁 - पश्यति 
🗣 - वदति 
✍ - लिखति 
🙏� - प्रणमति 
👉 - निर्दिशति 
🙌 - आशिषति 
�👃 - जिघ्रति 
🚶🏻- गच्छति 
🏃🏻- धावति 
💃🏻 - नृत्यति

✈ विमानम् ।
🎁 उपायनम् ।
🚘 यानम् ।
💺 आसन्दः / आसनम् ।
⛵ नौका ।
🗻 पर्वत:।
🚊 रेलयानम् ।
🚌 लोकयानम् ।
🚲 द्विचक्रिका ।
🇮🇳 ध्वज:।
🐰 शशक:।
🐯 व्याघ्रः।
🐵 वानर:।
🐴 अश्व:।
🐑 मेष:।
🐘 गज:।
🐢 कच्छप:।
🐜 पिपीलिका ।
🐠 मत्स्य:।
🐄 धेनु: ।
🐃 महिषी ।
🐐 अजा ।
🐓 कुक्कुट:।
🐕 श्वा / कुक्कुरः / सारमेयः (श्वा श्वानौ श्वानः) ।
🐁 मूषक:।
🐊 मकर:।
🐪 उष्ट्रः।
🌸 पुष्पम् ।
🍃 पर्णे (द्वि.व)।
🌳 वृक्ष:।
🌞 सूर्य:।
🌛 चन्द्र:।
⭐ तारक: / नक्षत्रम् ।
☔ छत्रम् ।
👦 बालक:।
👧 बालिका ।
👂 कर्ण:।
👀 नेत्रे (द्वि.व)।
👃नासिका ।
👅 जिह्वा ।
👄 औष्ठौ (द्वि.व) ।
👋 चपेटिका ।
💪 बाहुः ।
🙏 नमस्कारः।
👟 पादत्राणम् (पादरक्षक:) ।
👔 युतकम् ।
💼 स्यूत:।
👖 ऊरुकम् ।
👓 उपनेत्रम् ।
💎 वज्रम् (रत्नम् ) ।
💿 सान्द्रमुद्रिका ।
🔔 घण्टा ।
🔓 ताल:।
🔑 कुञ्चिका ।
⌚ घटी।
💡 विद्युद्दीप:।
🔦 करदीप:।
🔋 विद्युत्कोष:।
🔪 छूरिका ।
✏ अङ्कनी ।
📖 पुस्तकम् ।
🏀 कन्दुकम् ।
🍷 चषक:।
🍴 चमसौ (द्वि.व)।
📷 चित्रग्राहकम् ।
💻 सड़्गणकम् ।
📱जड़्गमदूरवाणी ।
☎ स्थिरदूरवाणी ।
📢 ध्वनिवर्धकम् ।
⏳समयसूचकम् ।
⌚ हस्तघटी ।
🚿 जलसेचकम् ।
🚪द्वारम् ।
🔫 भुशुण्डिका ।(बु?) ।
🔩आणिः ।
🔨ताडकम् ।
💊 गुलिका/औषधम् ।
💰 धनम् ।
✉ पत्रम् ।
📬 पत्रपेटिका ।
📃 कर्गजम्/कागदम् ।
📊 सूचिपत्रम् ।
📅 दिनदर्शिका ।
✂ कर्त्तरी ।
📚 पुस्तकाणि ।
🎨 वर्णाः ।
🔭 दूरदर्शकम् ।
🔬 सूक्ष्मदर्शकम् ।
📰 पत्रिका ।
🎼🎶 सड़्गीतम् ।
🏆 पारितोषकम् ।
⚽ पादकन्दुकम् ।
☕ चायम् ।
🍵पनीयम्/सूपः ।
🍪 रोटिका ।
🍧 पयोहिमः ।
🍯 मधु ।
🍎 सेवफलम् ।
🍉कलिड़्ग फलम् ।
🍊नारड़्ग फलम् ।
🍋 आम्र फलम् ।
🍇 द्राक्षाफलाणि ।
🍌कदली फलम् ।
🍅 रक्तफलम् ।
🌋 ज्वालामुखी ।
🐭 मूषकः ।
🐴 अश्वः ।
🐺 गर्दभः ।
🐷 वराहः ।
🐗 वनवराहः ।
🐝 मधुकरः/षट्पदः ।
🐁मूषिकः ।
🐘 गजः ।
🐑 अविः ।
🐒वानरः/मर्कटः ।
🐍 सर्पः ।
🐠 मीनः ।
🐈 बिडालः/मार्जारः/लः ।
🐄 गौमाता ।
🐊 मकरः ।
🐪 उष्ट्रः ।
🌹 पाटलम् ।
🌺 जपाकुसुमम् ।
🍁 पर्णम् ।
🌞 सूर्यः ।
🌝 चन्द्रः ।
🌜अर्धचन्द्रः ।
⭐ नक्षत्रम् ।
☁ मेघः ।
⛄ क्रीडनकम् ।
🏠 गृहम् ।
🏫 भवनम् ।
🌅 सूर्योदयः ।
🌄 सूर्यास्तः ।
🌉 सेतुः ।
🚣 उडुपः (small boat)
🚢 नौका ।
✈ गगनयानम्/विमानम् ।
🚚 भारवाहनम् ।
🇮🇳 भारतध्वजः ।
1⃣ एकम् ।
2⃣ द्वे ।
3⃣ त्रीणि ।
4⃣ चत्वारि ।
5⃣ पञ्च ।
6⃣ षट् ।
7⃣ सप्त ।
8⃣ अष्ट/अष्टौ ।
9⃣ नव ।
🔟 दश ।
2⃣0⃣ विंशतिः ।
3⃣0⃣ त्रिंशत् ।
4⃣0⃣ चत्त्वारिंशत् ।
5⃣0⃣ पञ्चिशत् ।
6⃣0⃣ षष्टिः ।
7⃣0⃣ सप्ततिः ।
8⃣0⃣ अशीतिः ।
9⃣0⃣ नवतिः ।
1⃣0⃣0⃣ शतम्।
⬅ वामतः ।
➡ दक्षिणतः ।
⬆ उपरि ।
⬇ अधः ।
🎦 चलच्चित्र ग्राहकम् ।
🚰 नल्लिका ।
🚾 जलशीतकम् ।
🛄 यानपेटिका ।
📶 तरड़्ग सूचकम् ( तरड़्गाः)
+ सड़्कलनम् ।
- व्यवकलनम् ।
× गुणाकारः ।
÷ भागाकारः ।
% प्रतिशतम् ।
@ अत्र (विलासम्)।
⬜ श्वेतः ।
🔵 नीलः ।
🔴 रक्तः ।
⬛ कृष्णः ।

28 સપ્ટે, 2020

हिंदी कक्षा १ से ६ बाघ: निबंध लेखन

हिंदी कक्षा १ से ६
बाघ (निबंध लेखन)

(1) बाघ एक चौपाया जानवर है।
(2) बाघ हमारे भारत देश का राष्ट्रीय पशु है।

(3) बाघ स्तनधारी जानवर है क्योंकि यह इंसानों की तरह ही बच्चों को जन्म देता है।

बाघ मांसाहारी जानवर है।

(5) बाघ रात में शिकार करता है और दिन में सोता है।

(6) बाघ का शरीर 7 से 10 फीट तक लंबा होता है।

(7) भारतीय बाघ का शरीर का रंग पीले और भूरे रंग का मिश्रण होता है और उसके ऊपर काले रंग की धारियां होती है।

(8) बाघ के दो आंख और दो कान, एक लंबी पूछ होते है।

(9) बाघ जंगल, घास के मैदानों, वनों में अकेला रहना पसंद करता है।

(10) इसका मुख्य आहार चीतल, हिरण, जंगली सूअर, भैंस, सांभर, बकरी इत्यादि जानवर है।

24 સપ્ટે, 2020

ફેસબુક પર હમણાં એક નવો જ ટ્રેન્ડ ચાલુ થયો છે

ફેસબુક પર હમણાં એક નવો જ ટ્રેન્ડ ચાલુ થયો છે

#Couple_challenge #Single_challenge #Cute_sisters challenge

અને લોકો નીકળી પડ્યા છે જાણે કે તમને બધા #challenges નો બેસ્ટ એવોર્ડ મળવાનો હોય!!

સાઇબર ક્રાઇમના હજાર કિસ્સાઓ રોજ આપણે વાંચીએ છીએ તો એટલું પણ સમજીએ કે આપણી

પત્ની, બહેન, દિકરી ના ફોટા ખુલ્લેઆમ સોશિયલ સાઇટ્સ પર ના મૂકી.

તે કોઈપણ પ્રદર્શન કરવાની ચીજ વસ્તુ નથી કે ખુલ્લેઆમ ફોટા મૂકીએ છીએ.  

સમજી વિચારીને ભરેલું એક ડગલું મુશ્કેલી માંથી ઉગારી શકે છે.....
જન હિતમાં જારી

કોઈને સલાહ-શિખામણ આપવાનો મને કોઈ અધિકાર નથી.પણ વાસ્તવિકતા સામે તમારું ધ્યાન દોરવું છે.


पुनर्जन्म

पुनर्जन्म से सम्बंधित चालीस प्रश्नों को उत्तर सहित पढ़े?????

(1) प्रश्न :- पुनर्जन्म किसको कहते हैं ?

उत्तर :- जब जीवात्मा एक शरीर का त्याग करके किसी दूसरे शरीर में जाती है तो इस बार बार जन्म लेने की क्रिया को पुनर्जन्म कहते हैं ।

(2) प्रश्न :- पुनर्जन्म क्यों होता है ?

उत्तर :- जब एक जन्म के अच्छे बुरे कर्मों के फल अधुरे रह जाते हैं तो उनको भोगने के लिए दूसरे जन्म आवश्यक हैं ।

(3) प्रश्न :- अच्छे बुरे कर्मों का फल एक ही जन्म में क्यों नहीं मिल जाता ? एक में ही सब निपट जाये तो कितना अच्छा हो ?

उत्तर :- नहीं जब एक जन्म में कर्मों का फल शेष रह जाए तो उसे भोगने के लिए दूसरे जन्म अपेक्षित होते हैं ।

(4) प्रश्न :- पुनर्जन्म को कैसे समझा जा सकता है ?

उत्तर :- पुनर्जन्म को समझने के लिए जीवन और मृत्यु को समझना आवश्यक है । और जीवन मृत्यु को समझने के लिए शरीर को समझना आवश्यक है ।

(5) प्रश्न :- शरीर के बारे में समझाएँ ?

उत्तर :- हमारे शरीर को निर्माण प्रकृति से हुआ है ।
जिसमें मूल प्रकृति ( सत्व रजस और तमस ) से प्रथम बुद्धि तत्व का निर्माण हुआ है ।
बुद्धि से अहंकार ( बुद्धि का आभामण्डल ) ।
अहंकार से पांच ज्ञानेन्द्रियाँ ( चक्षु, जिह्वा, नासिका, त्वचा, श्रोत्र ), मन ।
पांच कर्मेन्द्रियाँ ( हस्त, पाद, उपस्थ, पायु, वाक् ) ।

शरीर की रचना को दो भागों में बाँटा जाता है ( सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर ) ।

(6) प्रश्न :- सूक्ष्म शरीर किसको बोलते हैं ?

उत्तर :- सूक्ष्म शरीर में बुद्धि, अहंकार, मन, ज्ञानेन्द्रियाँ । ये सूक्ष्म शरीर आत्मा को सृष्टि के आरम्भ में जो मिलता है वही एक ही सूक्ष्म शरीर सृष्टि के अंत तक उस आत्मा के साथ पूरे एक सृष्टि काल ( ४३२००००००० वर्ष ) तक चलता है । और यदि बीच में ही किसी जन्म में कहीं आत्मा का मोक्ष हो जाए तो ये सूक्ष्म शरीर भी प्रकृति में वहीं लीन हो जायेगा ।

(7) प्रश्न :- स्थूल शरीर किसको कहते हैं ?

उत्तर :- पंच कर्मेन्द्रियाँ ( हस्त, पाद, उपस्थ, पायु, वाक् ) , ये समस्त पंचभौतिक बाहरी शरीर ।

(8) प्रश्न :- जन्म क्या होता है ?

उत्तर :- जीवात्मा का अपने करणों ( सूक्ष्म शरीर ) के साथ किसी पंचभौतिक शरीर में आ जाना ही जन्म कहलाता है ।

(9) प्रश्न :- मृत्यु क्या होती है ?

उत्तर :- जब जीवात्मा का अपने पंचभौतिक स्थूल शरीर से वियोग हो जाता है, तो उसे ही मृत्यु कहा जाता है । परन्तु मृत्यु केवल सथूल शरीर की होती है , सूक्ष्म शरीर की नहीं । सूक्ष्म शरीर भी छूट गया तो वह मोक्ष कहलाएगा मृत्यु नहीं । मृत्यु केवल शरीर बदलने की प्रक्रिया है, जैसे मनुष्य कपड़े बदलता है । वैसे ही आत्मा शरीर भी बदलता है ।

(10) प्रश्न :- मृत्यु होती ही क्यों है ?

उत्तर :- जैसे किसी एक वस्तु का निरन्तर प्रयोग करते रहने से उस वस्तु का सामर्थ्य घट जाता है, और उस वस्तु को बदलना आवश्यक हो जाता है, ठीक वैसे ही एक शरीर का सामर्थ्य भी घट जाता है और इन्द्रियाँ निर्बल हो जाती हैं । जिस कारण उस शरीर को बदलने की प्रक्रिया का नाम ही मृत्यु है ।

(11) प्रश्न :- मृत्यु न होती तो क्या होता ?

उत्तर :- तो बहुत अव्यवस्था होती । पृथ्वी की जनसंख्या बहुत बढ़ जाती । और यहाँ पैर धरने का भी स्थान न होता ।

(12) प्रश्न :- क्या मृत्यु होना बुरी बात है ?

उत्तर :- नहीं, मृत्यु होना कोई बुरी बात नहीं ये तो एक प्रक्रिया है शरीर परिवर्तन की ।

(13) प्रश्न :- यदि मृत्यु होना बुरी बात नहीं है तो लोग इससे इतना डरते क्यों हैं ?

उत्तर :- क्योंकि उनको मृत्यु के वैज्ञानिक स्वरूप की जानकारी नहीं है । वे अज्ञानी हैं । वे समझते हैं कि मृत्यु के समय बहुत कष्ट होता है । उन्होंने वेद, उपनिषद, या दर्शन को कभी पढ़ा नहीं वे ही अंधकार में पड़ते हैं और मृत्यु से पहले कई बार मरते हैं ।

(14) प्रश्न :- तो मृत्यु के समय कैसा लगता है ? थोड़ा सा तो बतायें ?

उत्तर :- जब आप बिस्तर में लेटे लेटे नींद में जाने लगते हैं तो आपको कैसा लगता है ?? ठीक वैसा ही मृत्यु की अवस्था में जाने में लगता है उसके बाद कुछ अनुभव नहीं होता । जब आपकी मृत्यु किसी हादसे से होती है तो उस समय आमको मूर्छा आने लगती है, आप ज्ञान शून्य होने लगते हैं जिससे की आपको कोई पीड़ा न हो । तो यही ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा है कि मृत्यु के समय मनुष्य ज्ञान शून्य होने लगता है और सुषुुप्तावस्था में जाने लगता है ।

(15) प्रश्न :- मृत्यु के डर को दूर करने के लिए क्या करें ?

उत्तर :- जब आप वैदिक आर्ष ग्रन्थ ( उपनिषद, दर्शन आदि ) का गम्भीरता से अध्ययन करके जीवन,मृत्यु, शरीर, आदि के विज्ञान को जानेंगे तो आपके अन्दर का, मृत्यु के प्रति भय मिटता चला जायेगा और दूसरा ये की योग मार्ग पर चलें तो स्वंय ही आपका अज्ञान कमतर होता जायेगा और मृत्यु भय दूर हो जायेगा । आप निडर हो जायेंगे । जैसे हमारे बलिदानियों की गाथायें आपने सुनी होंगी जो राष्ट्र की रक्षा के लिये बलिदान हो गये । तो आपको क्या लगता है कि क्या वो ऐसे ही एक दिन में बलिदान देने को तैय्यार हो गये थे ? नहीं उन्होने भी योगदर्शन, गीता, साँख्य, उपनिषद, वेद आदि पढ़कर ही निर्भयता को प्राप्त किया था । योग मार्ग को जीया था, अज्ञानता का नाश किया था । 

महाभारत के युद्ध में भी जब अर्जुन भीष्म, द्रोणादिकों की मृत्यु के भय से युद्ध की मंशा को त्याग बैठा था तो योगेश्वर कृष्ण ने भी तो अर्जुन को इसी सांख्य, योग, निष्काम कर्मों के सिद्धान्त के माध्यम से जीवन मृत्यु का ही तो रहस्य समझाया था और यह बताया कि शरीर तो मरणधर्मा है ही तो उसी शरीर विज्ञान को जानकर ही अर्जुन भयमुक्त हुआ । तो इसी कारण तो वेदादि ग्रन्थों का स्वाध्याय करने वाल मनुष्य ही राष्ट्र के लिए अपना शीश कटा सकता है, वह मृत्यु से भयभीत नहीं होता , प्रसन्नता पूर्वक मृत्यु को आलिंगन करता है ।

(16) प्रश्न :- किन किन कारणों से पुनर्जन्म होता है ?

उत्तर :- आत्मा का स्वभाव है कर्म करना, किसी भी क्षण आत्मा कर्म किए बिना रह ही नहीं सकता । वे कर्म अच्छे करे या फिर बुरे, ये उसपर निर्भर है, पर कर्म करेगा अवश्य । तो ये कर्मों के कारण ही आत्मा का पुनर्जन्म होता है । पुनर्जन्म के लिए आत्मा सर्वथा ईश्वराधीन है ।

(17) प्रश्न :- पुनर्जन्म कब कब नहीं होता ?

उत्तर :- जब आत्मा का मोक्ष हो जाता है तब पुनर्जन्म नहीं होता है ।

(18) प्रश्न :- मोक्ष होने पर पुनर्जन्म क्यों नहीं होता ?

उत्तर :- क्योंकि मोक्ष होने पर स्थूल शरीर तो पंचतत्वों में लीन हो ही जाता है, पर सूक्ष्म शरीर जो आत्मा के सबसे निकट होता है, वह भी अपने मूल कारण प्रकृति में लीन हो जाता है ।

(19) प्रश्न :- मोक्ष के बाद क्या कभी भी आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता ?

उत्तर :- मोक्ष की अवधि तक आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता । उसके बाद होता है ।

(20) प्रश्न :- लेकिन मोक्ष तो सदा के लिए होता है, तो फिर मोक्ष की एक निश्चित अवधि कैसे हो सकती है ?

उत्तर :- सीमित कर्मों का कभी असीमित फल नहीं होता । यौगिक दिव्य कर्मों का फल हमें ईश्वरीय आनन्द के रूप में मिलता है, और जब ये मोक्ष की अवधि समाप्त होती है तो दुबारा से ये आत्मा शरीर धारण करती है ।

(21) प्रश्न :- मोक्ष की अवधि कब तक होती है ?

उत्तर :- मोक्ष का समय ३१ नील १० खरब ४० अरब वर्ष है, जब तक आत्मा मुक्त अवस्था में रहती है ।

(22) प्रश्न :- मोक्ष की अवस्था में स्थूल शरीर या सूक्ष्म शरीर आत्मा के साथ रहता है या नहीं ?

उत्तर :- नहीं मोक्ष की अवस्था में आत्मा पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाता रहता है और ईश्वर के आनन्द में रहता है, बिलकुल ठीक वैसे ही जैसे कि मछली पूरे समुद्र में रहती है । और जीव को किसी भी शरीर की आवश्यक्ता ही नहीं होती।

(23) प्रश्न :- मोक्ष के बाद आत्मा को शरीर कैसे प्राप्त होता है ?

उत्तर :- सबसे पहला तो आत्मा को कल्प के आरम्भ ( सृष्टि आरम्भ ) में सूक्ष्म शरीर मिलता है फिर ईश्वरीय मार्ग और औषधियों की सहायता से प्रथम रूप में अमैथुनी जीव शरीर मिलता है, वो शरीर सर्वश्रेष्ठ मनुष्य या विद्वान का होता है जो कि मोक्ष रूपी पुण्य को भोगने के बाद आत्मा को मिला है । जैसे इस वाली सृष्टि के आरम्भ में चारों ऋषि विद्वान ( वायु , आदित्य, अग्नि , अंगिरा ) को मिला जिनको वेद के ज्ञान से ईश्वर ने अलंकारित किया । क्योंकि ये ही वो पुण्य आत्मायें थीं जो मोक्ष की अवधि पूरी करके आई थीं ।

(24) प्रश्न :- मोक्ष की अवधि पूरी करके आत्मा को मनुष्य शरीर ही मिलता है या जानवर का ?

उत्तर :- मनुष्य शरीर ही मिलता है ।

(25) प्रश्न :- क्यों केवल मनुष्य का ही शरीर क्यों मिलता है ? जानवर का क्यों नहीं ?

उत्तर :- क्योंकि मोक्ष को भोगने के बाद पुण्य कर्मों को तो भोग लिया , और इस मोक्ष की अवधि में पाप कोई किया ही नहीं तो फिर जानवर बनना सम्भव ही नहीं , तो रहा केवल मनुष्य जन्म जो कि कर्म शून्य आत्मा को मिल जाता है ।

(26) प्रश्न :- मोक्ष होने से पुनर्जन्म क्यों बन्द हो जाता है ?

उत्तर :- क्योंकि योगाभ्यास आदि साधनों से जितने भी पूर्व कर्म होते हैं ( अच्छे या बुरे ) वे सब कट जाते हैं । तो ये कर्म ही तो पुनर्जन्म का कारण हैं, कर्म ही न रहे तो पुनर्जन्म क्यों होगा ??

(27) प्रश्न :- पुनर्जन्म से छूटने का उपाय क्या है ?

उत्तर :- पुनर्जन्म से छूटने का उपाय है योग मार्ग से मुक्ति या मोक्ष का प्राप्त करना ।

(28) प्रश्न :- पुनर्जन्म में शरीर किस आधार पर मिलता है ?

उत्तर :- जिस प्रकार के कर्म आपने एक जन्म में किए हैं उन कर्मों के आधार पर ही आपको पुनर्जन्म में शरीर मिलेगा ।

(29) प्रश्न :- कर्म कितने प्रकार के होते हैं ?

उत्तर :- मुख्य रूप से कर्मों को तीन भागों में बाँटा गया है :- सात्विक कर्म , राजसिक कर्म , तामसिक कर्म ।

(१) सात्विक कर्म :- सत्यभाषण, विद्याध्ययन, परोपकार, दान, दया, सेवा आदि ।

(२) राजसिक कर्म :- मिथ्याभाषण, क्रीडा, स्वाद लोलुपता, स्त्रीआकर्षण, चलचित्र आदि ।

(३) तामसिक कर्म :- चोरी, जारी, जूआ, ठग्गी, लूट मार, अधिकार हनन आदि ।

और जो कर्म इन तीनों से बाहर हैं वे दिव्य कर्म कलाते हैं, जो कि ऋषियों और योगियों द्वारा किए जाते हैं । इसी कारण उनको हम तीनों गुणों से परे मानते हैं । जो कि ईश्वर के निकट होते हैं और दिव्य कर्म ही करते हैं ।

(30) प्रश्न :- किस प्रकार के कर्म करने से मनुष्य योनि प्राप्त होती है ?

उत्तर :- सात्विक और राजसिक कर्मों के मिलेजुले प्रभाव से मानव देह मिलती है , यदि सात्विक कर्म बहुत कम है और राजसिक अधिक तो मानव शरीर तो प्राप्त होगा परन्तु किसी नीच कुल में , यदि सात्विक गुणों का अनुपात बढ़ता जाएगा तो मानव कुल उच्च ही होता जायेगा । जिसने अत्यधिक सात्विक कर्म किए होंगे वो विद्वान मनुष्य के घर ही जन्म लेगा ।

(31) प्रश्न :- किस प्रकार के कर्म करने से आत्मा जीव जन्तुओं के शरीर को प्राप्त होता है ?

उत्तर :- तामसिक और राजसिक कर्मों के फलरूप जानवर शरीर आत्मा को मिलता है । जितना तामसिक कर्म अधिक किए होंगे उतनी ही नीच योनि उस आत्मा को प्राप्त होती चली जाती है । जैसे लड़ाई स्वभाव वाले , माँस खाने वाले को कुत्ता, गीदड़, सिंह, सियार आदि का शरीर मिल सकता है , और घोर तामसिक कर्म किए हुए को साँप, नेवला, बिच्छू, कीड़ा, काकरोच, छिपकली आदि । तो ऐसे ही कर्मों से नीच शरीर मिलते हैं और ये जानवरों के शरीर आत्मा की भोग योनियाँ हैं ।

(32) प्रश्न :- तो क्या हमें यह पता लग सकता है कि हम पिछले जन्म में क्या थे ? या आगे क्या होंगे ?

उत्तर :- नहीं कभी नहीं, सामान्य मनुष्य को यह पता नहीं लग सकता । क्योंकि यह केवल ईश्वर का ही अधिकार है कि हमें हमारे कर्मों के आधार पर शरीर दे । वही सब जानता है ।

(33) प्रश्न :- तो फिर यह किसको पता चल सकता है ?

उत्तर :- केवल एक सिद्ध योगी ही यह जान सकता है , योगाभ्यास से उसकी बुद्धि । अत्यन्त तीव्र हो चुकी होती है कि वह ब्रह्माण्ड एवं प्रकृति के महत्वपूर्ण रहस्य़ अपनी योगज शक्ति से जान सकता है । उस योगी को बाह्य इन्द्रियों से ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रहती है
वह अन्तः मन और बुद्धि से सब जान लेता है । उसके सामने भूत और भविष्य दोनों सामने आ खड़े होते हैं ।

(34) प्रश्न :- यह बतायें की योगी यह सब कैसे जान लेता है ?

उत्तर :- अभी यह लेख पुनर्जन्म पर है, यहीं से प्रश्न उत्तर का ये क्रम चला देंगे तो लेख का बहुत ही विस्तार हो जायेगा । इसीलिये हम अगले लेख में यह विषय विस्तार से समझायेंगे कि योगी कैसे अपनी विकसित शक्तियों से सब कुछ जान लेता है ? और वे शक्तियाँ कौन सी हैं ? कैसे प्राप्त होती हैं ? इसके लिए अगले लेख की प्रतीक्षा करें...

(35) प्रश्न :- क्या पुनर्जन्म के कोई प्रमाण हैं ?

उत्तर :- हाँ हैं, जब किसी छोटे बच्चे को देखो तो वह अपनी माता के स्तन से सीधा ही दूध पीने लगता है जो कि उसको बिना सिखाए आ जाता है क्योंकि ये उसका अनुभव पिछले जन्म में दूध पीने का रहा है, वर्ना बिना किसी कारण के ऐसा हो नहीं सकता । दूसरा यह कि कभी आप उसको कमरे में अकेला लेटा दो तो वो कभी कभी हँसता भी है , ये सब पुराने शरीर की बातों को याद करके वो हँसता है पर जैसे जैसे वो बड़ा होने लगता है तो धीरे धीरे सब भूल जाता है...!

(36) प्रश्न :- क्या इस पुनर्जन्म को सिद्ध करने के लिए कोई उदाहरण हैं...?

उत्तर :- हाँ, जैसे अनेकों समाचार पत्रों में, या TV में भी आप सुनते हैं कि एक छोटा सा बालक अपने पिछले जन्म की घटनाओं को याद रखे हुए है, और सारी बातें बताता है जहाँ जिस गाँव में वो पैदा हुआ, जहाँ उसका घर था, जहाँ पर वो मरा था । और इस जन्म में वह अपने उस गाँव में कभी गया तक नहीं था लेकिन फिर भी अपने उस गाँव की सारी बातें याद रखे हुए है , किसी ने उसको कुछ बताया नहीं, सिखाया नहीं, दूर दूर तक उसका उस गाँव से इस जन्म में कोई नाता नहीं है । फिर भी उसकी गुप्त बुद्धि जो कि सूक्ष्म शरीर का भाग है वह घटनाएँ संजोए हुए है जाग्रत हो गई और बालक पुराने जन्म की बातें बताने लग पड़ा...!

(37) प्रश्न :- लेकिन ये सब मनघड़ंत बातें हैं, हम विज्ञान के युग में इसको नहीं मान सकते क्योंकि वैज्ञानिक रूप से ये बातें बेकार सिद्ध होती हैं, क्या कोई तार्किक और वैज्ञानिक आधार है इन बातों को सिद्ध करने का ?

उत्तर :- आपको किसने कहा कि हम विज्ञान के विरुद्ध इस पुनर्जन्म के सिद्धान्त का दावा करेंगे । ये वैज्ञानिक रूप से सत्य है , और आपको ये हम अभी सिद्ध करके दिखाते हैं..!

(38) प्रश्न :- तो सिद्ध कीजीए ?

उत्तर :- जैसा कि आपको पहले बताया गया है कि मृत्यु केवल स्थूल शरीर की होती है, पर सूक्ष्म शरीर आत्मा के साथ वैसे ही आगे चलता है , तो हर जन्म के कर्मों के संस्कार उस बुद्धि में समाहित होते रहते हैं । और कभी किसी जन्म में वो कर्म अपनी वैसी ही परिस्थिती पाने के बाद जाग्रत हो जाते हैं 

इसे उदहारण से समझें :- एक बार एक छोटा सा ६ वर्ष का बालक था, यह घटना हरियाणा के सिरसा के एक गाँव की है । जिसमें उसके माता पिता उसे एक स्कूल में घुमाने लेकर गये जिसमें उसका दाखिला करवाना था और वो बच्चा केवल हरियाणवी या हिन्दी भाषा ही जानता था कोई तीसरी भाषा वो समझ तक नहीं सकता था । 

लेकिन हुआ कुछ यूँ था कि उसे स्कूल की Chemistry Lab में ले जाया गया और वहाँ जाते ही उस बच्चे का मूँह लाल हो गया !! चेहरे के हावभाव बदल गये !!

और उसने एकदम फर्राटेदार French भाषा बोलनी शुरू कर दी !! उसके माता पिता बहुत डर गये और घबरा गये , तुरंत ही बच्चे को अस्पताल ले जाया गया । जहाँ पर उसकी बातें सुनकर डाकटर ने एक दुभाषिये का प्रबन्ध किया । 

जो कि French और हिन्दी जानता था , तो उस दुभाषिए ने सारा वृतान्त उस बालक से पूछा तो उस बालक ने बताया कि " मेरा नाम Simon Glaskey है और मैं French Chemist हूँ । मेरी मौत मेरी प्रयोगशाला में एक हादसे के कारण ( Lab. ) में हुई थी । "

तो यहाँ देखने की बात यह है कि इस जन्म में उसे पुरानी घटना के अनुकूल मिलती जुलती परिस्थिति से अपना वह सब याद आया जो कि उसकी गुप्त बुद्धि में दबा हुआ था । यानि की वही पुराने जन्म में उसके साथ जो प्रयोगशाला में हुआ, वैसी ही प्रयोगशाला उस दूसरे जन्म में देखने पर उसे सब याद आया । तो ऐसे ही बहुत सी उदहारणों से आप पुनर्जन्म को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध कर सकते हो...!

(39) प्रश्न :- तो ये घटनाएँ भारत में ही क्यों होती हैं ? पूरा विश्व इसको मान्यता क्यों नहीं देता ?

उत्तर :- ये घटनायें पूरे विश्व भर में होती रहती हैं और विश्व इसको मान्यता इसलिए नहीं देता क्योंकि उनको वेदानुसार यौगिक दृष्टि से शरीर का कुछ भी ज्ञान नहीं है । वे केवल माँस और हड्डियों के समूह को ही शरीर समझते हैं , और उनके लिए आत्मा नाम की कोई वस्तु नहीं है । तो ऐसे में उनको न जीवन का ज्ञान है, न मृत्यु का ज्ञान है, न आत्मा का ज्ञान है, न कर्मों का ज्ञान है, न ईश्वरीय व्यवस्था का ज्ञान है । और अगर कोई पुनर्जन्म की कोई घटना उनके सामने आती भी है तो वो इसे मानसिक रोग जानकर उसको Multiple Personality Syndrome का नाम देकर अपना पीछा छुड़ा लेते हैं और उसके कथनानुसार जाँच नहीं करवाते हैं...!

(40) प्रश्न :- क्या पुनर्जन्म केवल पृथिवी पर ही होता है या किसी और ग्रह पर भी ?

उत्तर :- ये पुनर्जन्म पूरे ब्रह्माण्ड में यत्र तत्र होता है, कितने असंख्य सौरमण्डल हैं, कितनी ही पृथीवियाँ हैं । तो एक पृथीवी के जीव मरकर ब्रह्माण्ड में किसी दूसरी पृथीवी के उपर किसी न किसी शरीर में भी जन्म ले सकते हैं । ये ईश्वरीय व्यवस्था के अधीन है...

 परन्तु यह बड़ा ही अजीब लगता है कि मान लो कोई हाथी मरकर मच्छर बनता है तो इतने बड़े हाथी की आत्मा मच्छर के शरीर में कैसे घुसेगी..?

यही तो भ्रम है आपका कि आत्मा जो है वो पूरे शरीर में नहीं फैली होती । वो तो हृदय के पास छोटे अणुरूप में होती है । सब जीवों की आत्मा एक सी है । चाहे वो व्हेल मच्छली हो, चाहे वो एक चींटी हो।

              सनातन धर्म परिवार

14 સપ્ટે, 2020

हॉकी या किसी भी खेल को राष्ट्रीय खेल का दर्जा नहीं

भारत में हॉकी और इसकी दशा को लेकर को लेकर अक्सर देश में बहस छिड़ी रहती है। इसी प्रकार डॉ. आलोक चांटिया ने ग्रीवेंस पर संख्या PMOPG/E/2016/0177353 से 26 मई 2016 को प्रधानमंत्री को लिखा था। उन्होंने हॉकी को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय खेल के दर्जे के संदर्भ में जानकारी लेनी चाही थी। लेकिन 02 अगस्त 2016 को करीब 66 दिन बाद इसे निस्तारित कर दिया गया कि ये ग्रीवेंस नहीं है।
इसके बाद डॉ. आलोक चांटिया ने पीएम को पत्र लिखा था, 'मेरी जानकारी के अनुसार हॉकी को भारत सरकार ने कभी राष्ट्रीय खेल न माना और ना ही ये सरकारी दस्तावेजों में राष्ट्रीय खेल के रूप में दर्ज है। देश में पाठ्य पुस्तकों में पढ़ाया जा रहा है कि हॉकी राष्ट्रीय खेल है। क्या ये एक भारतीय की ग्रीवेंस नहीं है कि वो प्रधानमंत्री के माध्यम से ये जानें कि वास्तव में हॉकी की विधिक स्थिति इस देश में क्या है। य़े राष्ट्रीय खेल है या नहीं है। क्या सही जानकारी प्राप्त करने के लिए अपनी बात को अपने देश के प्रधानमंत्री को लिखना ग्रीवेंस नहीं है। 02 यदि उत्तर देने वाले स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट को ये ग्रीवेंस नहीं लगा तो कम से कम वो ये तो स्पष्ट करता कि वास्तव में इस देश में हॉकी राष्ट्रीय खेल है कि नहीं है। क्या एक भारतीय को सही बात जानने तक का अधिकार नहीं है? मैं जानता हूँ कि आप तक देश की कई बातें नहीं पहुंचती हैं। इसलिए आपसे विनती है कि हॉकी का इस देश में क्या स्टेटस है और उसको राष्ट्रीय खेल माना गया है या नहीं, इस बारे में मुझे भारतीय की समस्या का समाधान करने की कृपा करें।'


इसके जवाब में 26 अप्रैल 2017 को बताया गया कि स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री ने कि हॉकी या किसी अन्य खेल को राष्ट्रीय खेल का दर्जा नहीं दिया है। किसी खेल को राष्ट्रीय खेल का दर्जा देने के लिए कोई गाइडलाइन नहीं दी गई है। डॉ. आलोक चांटिया लखनऊ के हैं और श्री जयनारायण पीजी कॉलेज में रीडर हैं। इसके अलावा इग्‍नू के काउंसिलर भी हैं।


13 સપ્ટે, 2020

નીચેના શબ્દોના અર્થ આપી વાક્યપ્રયોગ કરો.( અર્થ ભેદ)


નીચેના શબ્દોના અર્થ આપી વાક્યપ્રયોગ કરો.( અર્થ ભેદ)

(1) પાણી- જળ
વાક્ય : પાણીનો બગાડ કરવો જોઈએ નહીં,
(2) પાણિ - હાથ
વાક્ય: તેણે પાણિ વડે ધનુષ પકડ્યું.
(3) ઉદર- પેટ
વાક્ય: જેનું પેટ સાફ હોય, તેને જલદી રોગ થતો નથી.
 (4) ઉંદર - એક નાનું પ્રાણી
 વાક્ય : ઉદર ગણપતિનું વાહન ગણાય છે.

(5)ગુણ- સારું લક્ષણ
વાક્ય : રમેશ તેના ગુણને કારણે ગામમાં વખણાયો.
 (6) ગુણ - થેલો, કોથળો
 વાક્ય : દુકાનદારે બે ગુણ ઘઉં વેચ્યા.

(7)ગોળ –વર્તુળ
વાક્ય : ઘુવડની આંખ તો ગોળ દડા જેવી લાગતી હતી. 
(8) ગૉળ - ખાવાનો એક ગળ્યો પદાર્થ
વાક્ય : મજૂરે રોટલા સાથે ગોળ પણ ખાધો.

( 9 )ચિર – લાંબા વખતનું
વાક્ય : રામાયણ ની વાત ચિરકાળ યાદ રહેશે.
(10) ચીર- એક રેશમી વસ્ત્ર
વાક્ય : શ્રી કૃષ્ણ દ્રૌપદીના ચીર પૂર્યા.
(11)મોર – એક પક્ષી
વાક્ય : આંબા ડાળે મોર બેઠો હતો. 

(12)મોર-આંબાની મંજરી
વાક્ય : આંબા પર મોર ઝૂલતો હતો.


 ધોરણ - 6 : ગુજરાતી  (પ્રથમ સત્ર)


6 સપ્ટે, 2020

ધીરુભાઈ પરીખ :રવિશંકર મહારાજ



ધીરુભાઈ પરીખ

g4 : 31-8-1933

ધીરુભાઈ ઇશ્વરલાલ પરીખ નો જન્મ વિરમગામમાં થયો હતો. જુદી જુદી શિક્ષણ સંસ્થાઓમાં તેમણે ભાષા-સાહિત્યના વિદ્વાન અધ્યાપક તરીકે પોતાની સેવાઓ આપે છે. કવિતા, વિવેચન, અનુવાદ તેમજ સંપાદન એમાં રસના ક્ષેત્રો છે. 'કુમાર' તેમજ “કવિલોક' જેવી પ્રતિકૃતિ સામયિકો અને તેઓ તંત્રી છે. છપ્પા સંગ્રહ “અંગ પચીસી' તેમજ હાઈકુસંગ્રહ ‘અગિયા' પણ તમને નોંધપાત્ર પ્રકાશનો છે.

પ્રસ્તુત કૃતિ દ્વારા લેખકે રવિશંકર મહારાજના જીવનકાર્યને રસળતી શૈલીમાં રજૂ કર્યું છે. મહારાજના સાદગી અને સેવાના અનેક પ્રસંગો આપણા જીવન માટે પ્રેરણાદાયી બની રહે છે.

મહારાજ અને વળી સેવક ? મહારાજ એટલે તો મોટો રાજા. મોટો રાજા તો સેવા કરાવે કે સેવા કરે ? હા, પણ આ મહારાજ તો રાજ વિનાના મહારાજ, નવાઈ લાગે છે ને કે રાજ વિનાના તે વળી મહારાજ હોય ? હા, આ નવાઈ પમાડે તેવી, પણ ખરી વાત છે. લોકોના હૃદય પર તેની સત્તા ચાલે એવા છે આ મહારાજ.

આ મહારાજા તમે નથી ઓળખતા ? લો, તો હું એનું નામ કર્યું. એમનું નામ રવિશંકર વ્યાસ. હજીયે ઓળખાણ ના પડી ? રવિશંકર વ્યાસ નામ અજાણ્યું લાગે છે ? અરે, એ જ એમનું ખરું નામ છે અને વ્યાસ એ જ એમની સાચી અટક છે. આ તો એમનાં લોકહિતનાં કાર્યોથી, એમની નિઃસ્વાર્થ પ્રવૃત્તિઓથી લોકો જ તમને ‘મહારાજ નું બિરુદ આપ્યું છે. એમ, એ ‘મહારાજ' તરીકે પ્રસિદ્ધ થયા. આ ‘મહારાજ' એટલે જ ગુજરાતના મૂકસેવક રવિશંકર મહારાજ, લોકો એમને ‘રવિશંકર દાદા' પણ કહેતા.

રવિશંકર મહારાજનો જન્મ સંવત 1940ના મહા મહિનાની વદ ચૌદશના દિવસે એટલે કે મહાશિવરાત્રીના રોજ થયો હતો. ઈ. સ. 1884 ના ફેબ્રુઆરી મહિનાની પચીસમી તારીખે ખેડા જિલ્લાના ૨ ગામે જન્મેલા રવિશંકર પિતાશ્રીનું નામ શિવરામભાઈ અને માતુશ્રીનું નામ નાથીબા હતું. પિતાજી પાસેથી જીવનમાં સારી ટેવો કેળવવાની અને માતા પાસેથી ખૂબ ચાવીચાવીને ખાવાની આરોગ્યની ચાવીનું શિક્ષણ એ બાળપણમાંથી જ પામ્યા હતા. બાળપણથી જ એમનો સ્વભાવ

નિબંધ: રવિશંકર મહારાજ


રવિશંકર મહારાજનો જન્મ ઈ. સ. 1884 ના ફેબ્રુઆરીની પચીસમી તારીખે એમના મોસાળ રઢું ગામમાં થયો હતો. એમના પિતા પ્રાથમિક શાળામાં શિક્ષક હતા. એમનાં માતા ભણ્યા ન હતા.

બાળપણથી જ રવિશંકર મહારાજ ખૂબ મહેનતુ હતા. કામ કરવામાં તે જરા પણ આળસ ન કરતા, તેઓ ખેતીનું બધું કામ ઉમંગથી કરતા. મહોલ્લામાં કોઈ પડોશીના ‘કાગળ લખવો હોય તો તે હોશે હોશે લખી આપતા અને ટપાલપેટીમાં નાખી આવતા, તે તેની માતાને રામાયણ અને મહાભારત વાંચી સંભળાવતા. તે કુશળ તરવૈયા પણ હતા. એક વાર તેમને વાત્રક નદીના પૂરમાં તણાતા ત્રણ યુવાનોને બચાવ્યા હતા.
   મોટા થતાં રવિશંકર મહારાજ ગાંધીજીના રંગે રંગાયા. મહારાજ રવિશંકર મહારાજ લોકસેવક વરેલા ગુજરાતના મહાન નેતા હતા, મૂંગા મોઢે સેવા કરવી એ તેમનો જીવન ધર્મ હતો, સાચા અર્થમાં તે લોકસેવક હતા. રવિશંકર મહારાજે પોતાનું જીવન દેશસેવા અને લોક સેવાનાં કાર્યોમાં અર્પણ કરી દીધું હતું. તેમણે અભણ લોકોને અક્ષરજ્ઞાન આપવાનું કાર્ય કર્યું. તેમણે બહારવટિયાઓને સુધારવાનું કાર્ય કર્યું. ગુજરાતમાં કે દેશના કોઈ પણ ભાગમાં દુષ્કાળ હોય, નદીઓમાં પૂર આવ્યું હોય, રોગચાળો ફાટી નીકળ્યો હોય કે કોમી રમખાણ થયું હોય ત્યારે રવિશંકર મહારાજ લોકોની મદદે પહોંચી જતા.

રવિશંકર મહારાજ સાદું જીવન જીવતા. તો ઓછામાં ઓછી વસ્તુઓથી ચલાવતા. ટૂંકું ધોતિયું, કેડિયું અને ટોપી એ એમનો પહેરવેશ.ખભે લટકતી થેલી માં તે બે જોડી કપડાં રાખતા, મોટે ભાગે પગે ચાલીને તે ગામેગામ ફરતા અને લોકસેવા નાં કામ કરતા.
 રવિશંકર મહારાજ પોતાના કાર્ય કદી જાહેરાત કરતા નહિ. આથી તેઓ ‘મૂકસેવક' કહેવાય. ગુજરાત તેમને ‘પૂજ્ય દાદા’ના વહાલસોયા નામથી ઓળખે છે. તેમણે સો વર્ષનું લાંબુ આયુષ્ય ભોગવ્યું હતું.


  


5 સપ્ટે, 2020

ભાદરવાનો તાપ

ભાદરવાનું કેળું અને માગશર નો મૂળો જો કોઈ ના આપે તો ઝુટાવીને પણ ખાવું. અને તે ખાવાં થી નીચે જણાવેલ ફાયદા થાય છે.


ભાદરવો એટલે છૂટી છવાઈ વરસાદી સીઝન.... અને બીમારી નું પ્રવેશદ્વાર ....
વર્ષા ની વિદાય અને શરદનું આગમન એટલે ભાદરવો. 
દિવસે ધોમ ધખે (તડકો ખુબ હોય) અને મોડી રાત્રે ઠંડક હોય, ઓઢીને સુવુ પડે એવો ઠાર પડે.

આયુર્વેદાચાર્યો કહી ગયા છે કે વર્ષાઋતુમાં પિત્તનો શરીરમાં સંગ્રહ થાય અને શરદઋતુમાં તે પિત્ત પ્રકોપે (બહાર આવે). આ પ્રકોપવું એટલે તાવ આવવો, ગરમી શરીરની બહાર નીકળવી.

ભાદરવાના તાપ અને તાવથી બચવા ત્રણ-ચાર ઘરગથ્થુ પ્રયોગો
(જે જાતે અનુભવ ને આધારિત છે.)

(૧) ભાદરવાના ત્રીસે દિવસ રોજ રાત્રે સુતા પહેલા સુદર્શન/મહાસુદર્શન ઘનવટી - ૨-૩ ટીક્ડી ચાવીને નવસેકા ગરમ પાણી સાથે લેવી.

(૨) ભાદરવા સુદ ૩ (કેવડા ત્રીજ) નું વ્રત અને ભાદરવા સુદ ૪ (ગણેશ ચતુર્થી) થી ૧૧ દિવસ ગણેશજી ની દૂર્વા અને દેશી ગોળ - દેશી ઘી ના ગોળાકાર જ લાડુ થી આરાધના કરવામાં આવે છે જે પિત્તપ્રકોપ ને શાંત કરેછે.

(૩) અનુકૂળતા હોય તો ભાદરવાના ત્રીસે દિવસ દુધ -ચોખા-સાકરની ખીર, ગળ્યુ દુધ એ વકરેલા પિત્તનુ જાની દુશ્મન છે. આ હેતુથી જ શ્રાદ્ધપક્ષમાં ખીર બનાવવાનુ આયોજન થયુ હતુ.

(૪) જેની છાલ પર કથ્થાઇ/કાળા ડાઘ હોય એવા પાકેલા એક કેળાને છુંદીને એમાં ઘી, સાકર, ત્રણ ઈલાયચી ઉમેરી બપોરે જમવા સાથે ખાવા.


(જો ખીર અને કેળા - બન્નેનો પ્રયોગ કરવો હોય તો કેળા બપોરે અને ખીર સાંજે એમ ગોઠવવું)

(૫) ભૂલેચૂકે ખાટી છાશ ન જ પીવી. ખુબ વલોવેલી, સાવ મોળી છાશ લેવી હોય તો ક્યારેક અને બપોરે જ ભોજન પછી તરત જ લેવાય.

(૫) ઠંડા પહોરે (વહેલી સવારે કે સાંજે) પરસેવો વળે એટલું ચાલવું. શરીરની અનુકુળતા હોય તો ૫ કિલોમીટર દોડવું.

(૬) નવરાત્રિમાં ઠંડી અને ચાંદની રાતમાં રાસગરબા ના આયોજન પાછળનું કારણ આ જ છે.
શરદ પૂનમ ની રાત્રે સોળે કળાએ ખીલી ઉઠેલ ચંદ્ર ને ધરાવેલ દૂધ-પૌવા જ આપણે ભોજનમાં ઉપયોગ કરીએ છીએ.

આચાર્યોએ શરદને રોગોની માતા કહી છે - रोगाणाम् शारदी माता. અને
 ' યમની દાઢ ' પણ કહી. આપણામાં એક આશિર્વાદ પ્રચલીત હતો.
शतम् जीवेम् शरद એટલે કે આવી સો શરદ સુખરુપ જીવી જાઓ એવી શુભેચ્છા આપવામા આવતી. અસ્તુ.

 ગણેશચતુર્થી થી 11 દિવસ ગણેશજી ની આરાધના દૂર્વા અને ગોળ અને દેશી ઘી ના ગોળાકારના લાડુ નો ભોગ ધરાવીને કરીએ છીએ જે પિત્ત પ્રકોપને શાંત કરેછે.
 
 બધાની તંદુરસ્તી સારી બની રહે તે માટે પ્રાર્થના સહ પ્રણામ...

આ લેખ બધાને કામ લાગે તેવો છે માટે સૌને ખાસ જાણ કરશો જી.

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणी पश्यन्तु माकश्चिददुःखभागभवेत्।।
          લોકહિત માટે શેર કરો 🙏

*વોટ્સએપ વોલ પરથી

3 સપ્ટે, 2020

GDP क्या बला है ??

GDP-GDP सब हल्ला मचा रहै हैं पर ये GDP क्या बला है ??

इसको समझना है तो #श्री_राजीव_दीक्षित जी के व्याख्यान के कुछ अंश से समझिये

जब आप टूथपेस्ट खरीदते हैं तो GDP बढ़ती है परंतु किसी गरीब से दातुन खरीदते हैं तो GDP नहीं बढ़ती।
100% सच- 
जब आप किसी बड़े होस्पीटल मे जाकर 500 रुपे की दवाई खरीदते हैं तो GDP बढ़ती है परंतु आप अपने घर मे उत्पन्न गिलोय नीम या गोमूत्र से अपना इलाज करते हैं तो जीडीपी नहीं बढ़ती।
100% सच 
जब आप घर मे गाय पालकर दूध पीते हैं तो GDP नहीं बढ़ती परंतु पैकिंग का मिलावट वाला दूध पीते हैं तो GDP बढ़ती है।
100% सच 
जब आप अपने घर मे सब्जिया उगा कर खाते हैं तो GDP नहीं बढ़ती परंतु जब किसी बड़े AC माल मे जाकर 10 दिन की बासी सब्जी खरीदते हैं तो GDP बढ़ती है।
100% सच 
जब आप गाय माता की सेवा करते हैं तो GDP नहीं बढ़ती परंतु जब कसाई उसी गाय को काट कर चमड़ा मांस बेचते हैं तो GDP बढ़ती है।
रोजाना अखबार लिखा होता है कि भारत की जीडीपी 8 .7 % है कभी कहा जाता है के 9 % है ; प्रधानमंत्री कहते है की हम 12 % जीडीपी हासिल कर सकते है पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलम कहते थे की हम 14 % भी कर सकते है , रोजाना आप जीडीपी के बारे में पड़ते है और आपको लगता है की जीडीपी जितनी बड़े उतनी देश की तरक्की होगी ।
कभी किसी ने जानने की कौशिश की है कि ये जीडीपी है क्या ?
आम आदमी की भाषा में जीडीपी का क्या मतलब है ये हमें आज तक किसी ने नही समझाया । GDP actually the amount of money that exchanges hand . माने जो पैसा आप आदान प्रदान करते है लिखित में वो अगर हम जोड़ ले तो जीडीपी बनती है ।
अगर एक पेड़ खड़ा है तो जीडीपी नही बढती , लेकिन अगर आप उस पेड़ को काट देते है तो जीडीपी बढती है किउंकि पेड़ को काटने के बाद पैसा आदान प्रदान होता है , पर पेड़ अगर खड़ा है तो तो कोई इकनोमिक activity नही होती जीडीपी भी नही बढती ।
अगर भारत की सारे पेड़ काट दिया जाये तो भारत की जीडीपी 27 % हो जाएगी जो आज करीब 7 % है । आप बताइए आपको 27 % जीडीपी चाहिए या नही !
अगर नदी साफ़ बह रही है तो जीडीपी नही बढती पर अगर आप नदी को गंध करते है तो जीडीपी तीन बार बढती है । पहले नदी पास उद्योग लगाने से जीडीपी बढ गयी, फिर नदी को साफ़ करने के लिए हज़ार करोड़ का प्रोजेक्ट लेके ए जीडीपी फिर बढ गयी , फिर लोगो ने नदी के दूषित पानी का इस्तेमाल किया बीमार पड़े, डॉक्टर के पास गए डॉक्टर ने फीस ली , फिर जीडीपी बढ गयी ।
अगर आप कोई कार खरीदते है , आपने पैसा दिया किसी ने पैसा लिया तो जीडीपी बढ गयी, आपने कार को चलाने के लिए पेट्रोल ख़रीदा जीडीपी फिर बढ गयी, कार के दूषित धुआँ से आप बीमार हुए , आप डॉक्टर के पास गए , आपने फीस दी उसने फीस ली और फिर जीडीपी बढ गयी ।
जितनी कारे आयेगी देश में उतनी जीडीपी तीन बार बढ जाएगी और इस देश रोजाना 4000 ज्यदा कारे खरीदी जाती है , 25000 से ज्यादा मोटर साइकल खरीदी जाती है और सरकार भी इसकी तरफ जोर देती है क्योंकि येही एक तरीका है के देश की जीडीपी बढ़े।
हर बड़े अख़बार में कोका कोला और पेप्सी कोला का advertisement आता है और ये भी सब जानते है के ये कितने खतरनाक और जहरीला है सेहत के लिए पर फिर भी सब सरकारे चुप है और आँखे बंध करके रखा है क्योंकि जब भी आप कोका कोला पीते है देश की जीडीपी दो बार बढती है । पहले आप कोका कोला ख़रीदा पैसे दिया जीडीपी बढ गया , फिर पिने के बाद बीमार पड़े डॉक्टर के पास गए, डॉक्टर को फीस दिया जीडीपी बढ गयी ।
 इस मायाजाल को समझे ।


2 સપ્ટે, 2020

आयरलैण्ड का २२ एकड़ में फैला एक विश्व प्रसिद्ध पार्क

आयरलैण्ड का २२ एकड़ में फैला एक विश्व प्रसिद्ध पार्क है।जिसमें भगवान गणेश के अद्भुत दर्शनीय विग्रह हैं।
संगीत भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है।इस पार्क में भगवान गणेश विभिन्न वाद्ययंत्रों का वादन करते हुए दिखाए गए हैं।
एक विग्रह जिसमें वीणा वादक गणेश जी के चरण सान्निध्य में मूषक (चूहा) विद्यमान है वो दर्शनीय है 👇 

यह भारत में नहीं, बल्कि विला सरना उबुद, बाली, इंडोनेशिया है।‌

अपने देवी पुत्र गणेश के साथ देवी पार्वती की शानदार मूर्ति।
यह भारत में नहीं, बल्कि विला सरना उबुद, बाली, इंडोनेशिया में है।‌‌

1 સપ્ટે, 2020

એંજલ ડેવિસ


એન્જલ ડેવિસ બર્મિધમ નજીક એક નાનકડા ગામમાં જન્મી હતી. તે અશ્વેત પરિવારમાં જન્મી હોવાના કારણે તેને દલિત જાતિ જેવા અપમાન તથા અભાવનો સામનો કરવો પડ્યો હતો. તેનું બાળપણ અભ્યાસ કરવામાં પસાર થયું. તેણે એમ.બી.એ., પીએચ.ડી. કર્યું. પછી તે એક શાળામાં શિક્ષિકા બની ગઈ, પરંતુ એટલાથી તેને સંતોષ ન થયો. તે તો પોતાના જાતિભાઈઓને માનવીય અધિકારો અપાવવા ઇચ્છતી હતી. આ માટે તેને માર્ટિન લ્યુથર કિંગની સાથે મળીને અનેક રચનાત્મક અને સંઘર્ષાત્મક આંદોલનોમાં ભાગ લીધો.


પ્રકૃતિ સાથે તાદાત્મ્ય

જંગલમાં એક બકરી ની પાછળ શિકારી કુતરા દોડ્યા. બકરી જીવ બચાવવા માટે દ્રાક્ષની વાડીમાં છુપાઈ ગઈ, આથી કૂતરા આગળ જતા રહ્યા.

હવે બકરી નિશ્ચિત થઈને દ્રાક્ષના વેલા પરથી પાંદડા ખાવા લાગી. ધીમે ધીમે તે બધાં પાંદડા ખાઈ ગઈ. થોડીવારમાં કૂતરા પાછા ફર્યા. પાંદડાં ન રહેવાના કારણે તેઓ બકરીને જોઈ ગયા અને તેમણે બકરી ને મારી નાખી. પોતાના સહારો આપનારને જ જે માણસ નષ્ટ કરી દે છે તેની આવી જ દુર્ગતિ થાય

છે. માણસ પણ આજે પોતાને મદદ કરનાર વૃક્ષો, પર્વતો વગેરે નુકસાન પહોંચાડી

રહ્યો છે, આથી પ્રાકૃતિક આપત્તિઓ ના રૂપમાં તેને એનું પરિણામ ભોગવવું પડે છે.

કારીગરની એકાગ્રતા

એક માણસ બાણ બનાવવાની કળામાં પારંગત હતા. તે ખૂબ ઉત્તમ પ્રકારનાં બાણ બનાવતો હતો. તેની એ કળાને જાણવા તથા શીખવા માટે એક લુહાર તેની પાસે ગયો. પહેલા કારીગર તેને પોતાની પાસે બેસીને ગંભીરતાથી નિરીક્ષણ કરવાનું કહ્યું. એ દરમ્યાન સામેના રસ્તા પરથી બેન્ડવાજા સાથે એક જાન નીકળી. પહેલા લુહાર શ્રેષ્ઠ બાણ બનાવનાર અને તે જાન વિશે બધું વિવરણ સંભળાવ્યું. બાણ બનાવનાર તેને કહ્યું કે તે બધું જોવાની કે જાણવાની મને ફુરસદ નથી. સંપૂર્ણ એકાગ્રતા, તત્પરતા તથા અભિરુચિથી કામ કરવું એ જ કોઈ પણ બાબતમાં પ્રવીણતા પ્રાપ્ત કરવાનું રહસ્ય છે. પેલો સમજી ગયો અને તે પોતે પણ એકાગ્રતાનો અભ્યાસ કરવા લાગ્યો. ધીમે ધીમે તેનાં બાણ પણ ઉત્તમ બનવા લાગ્યા. દરેક વિદ્યાર્થી તથા શીખવાની ઇચ્છાવાળા કોઈ પણ માણસને આ આદર્શ કામ લાગે છે. ઉત્તમ બાબત તો ક્યાંથી શીખવા મળે ત્યાંથી શીખવા માટે તૈયાર રહેવું જોઈએ.

31 ઑગસ્ટ, 2020

કળિયુગમાં ત્યાજ્ય ને ગ્રાહ્ય ધર્મો અને કર્મ


કળિયુગમાં ત્યાજ્ય ને ગ્રાહ્ય ધર્મો અને કર્મ

*ગોમેધ, નરમધ ને અશ્વમેધ યજ્ઞો તેમજ મદ્યપાન અને સુરાપાન
* શ્રાદ્ધમાં પિતૃઓને માંસનું પિંડ દાન ન દેવું.

* વડીલ ભાઈની પત્ની એ વિધવા થતા દિયરવટુ ન કરવું.

* યથાશાસ્ત્ર નૈષ્ઠિક બ્રહ્મચર્ય પાળવા અસમર્થ હોય તેને આજીવન બ્રહ્મચર્ય આશ્રમ ન સ્વીકારવો. ઉત્કટ વૈરાગ્યનું બળ હોય અથવા ગુરુ આજ્ઞા હોય તો જ ત્યાગાશ્રમ સ્વીકારવો.
*જે પ્રાયશ્ચિત થી દેહ પડી જાય એવું પ્રાયશ્ચિત કળિયુગમાં વર્જ્ય છે.
* કળિયુગમાં વાનપ્રસ્થાશ્રમ ન ધારવા, પરંતુ વ્યવહાર થી નિવૃત મંદિરમાં જઈ ધર્મ-કર્મની પ્રવૃત્તિ કરવી.
*સ્વર્ગ પ્રાપ્તિ ના વહેમમાં પુરુષ કે સ્ત્રી ભૈરવજપ, અગ્નિ પ્રવેશ, હિમાલય પ્રસ્થાન, કમળપૂજા, ગંગામાં ડૂબવું વગેરે આત્મઘાત ના ઉપાયો ન કરવા.
* એકાંતમાં થયેલા મહાપાપના પ્રાયશ્ચિત્તમાં પણ કદી આત્મવિલોપન ન કરવું.પ્રાયશ્ચિત જાપ-ઉપવાસ વગેરેથી કરવું.
* પ્રતિષ્ઠિત પુરુષે અસહ્ય લોકાપવાદ આવે તો ગુપ્તપણે રહેવું કે સ્થળાંતર કરી જવું પણ પોતાના શરીરનો ત્યાગ કદી ન કરવો.
*ભૂખ્યા ત્રણ ત્રણ દિવસો વીતે તો પણ ધાન્ય કે ફ્લ ની ચોરી ન કરવી. યાચના કે એવો કોઈ બીજો ઉપાય કરી દેહ ટકાવવો.
* મામા-ફોઈ ના દીકરા-દીકરી વચ્ચે વિવાહ વ્યવહાર ન કરવો. 
*ચાર વર્ગના મનુષ્યોએ પોત-પોતાના વર્ણ માં જ વિવાહ વ્યવહાર રાખવો.

* શિષ્યે ગુરુપત્નીમાં ગુરુભાવ ન રાખવો.

* સંન્યાસીઓએ ચાર વર્ણ માં ભિક્ષા ન કરવી.
 * બ્રહ્મજ્ઞાનના છકમાં ગ્રહણ, સૂતક-મૃતક વગેરે આશૌચનો  ત્યાગ ન કરવો.

30 ઑગસ્ટ, 2020

મૂકસેવક રવિશંકર મહારાજ

 શબ્દાર્થ:

 મૂકસેવક – મૂંગા મોઢે સેવા કરનાર 
બિરુદ - ખિતાબ
 નાનપ – હલકાપણું 
મહિમાવંતું - ગૌરવવાળું 
ઝળકવું- ઝળહળી ઊઠવું
 વિલાયતી - પરદેશી બનાવટનું
જીવનમંત્ર - જીવનનો સિદ્ધાંત
 નર્યું - કેવળ
 દૂષણ- ખરાબ તત્વ 
મનસૂબો - ( અહીં ) વિચાર 
કાચુંપોચું – ( અહીં ) ડરપોક 
નિર્ભય – નીડર 
કોતરો - નદીકિનારા પાસેની બખોલો ગરનાળું- પાણી વહી જાય તે માટે બાંધેલો સાંકડો માર્ગ 
કરો- ઘરની બાજુની દીવાલ, ભીંત 
વહારે – મદદે
 સ્વયંસેવક- કોઈ ખાસ પ્રસંગે પોતાની મેળે સેવા આપનાર
 બોરિંગ – પાણી માટે ફરતીમાં શાર પાડનારું યંત્ર ,
 હેવાન- રાક્ષસી , જંગલી 
જીવનધર્મ - જીવનનું મુખ્ય કર્તવ્ય . 
              ************
શબ્દસમૂહો માટે એક શબ્દ આપો : 

(1) નદી કિનારા પાસેની બખોલ- કોતરો

(2) પાણી આવવા-જવા માટે બાંધેલો સાંકડો માર્ગ - ગરનાળું
 (૩) ઘરની બાજુની દીવાલ-કરો

(4) કોઈ ખાસ પ્રસંગે પોતાની મેળે સેવા આપનાર- સ્વયંસેવક 
(5) જીવનનું મુખ્ય કર્તવ્ય-જીવનધર્મ 

રૂઢિપ્રયોગો
૧.જોતરાઈ જવું- કામચોરી વિના કામે લાગવું
૨. દિલ દઈને- ખુબ ઉત્સાહ અને ધગશથી (કામમાં )
 3. આત્મા રેડી દેવો-પૂરે પૂરી લગનથી કામ કરવું.
૪.પગરણ માંડવા -શરૂઆત કરવી
 ૫.માથે ઉપાડી લેવું -જવાબદારી લેવી
૬. દિલ દ્રવી ઊઠવું -ખૂબ દુઃખ થવું 
૭.માંડી વાળવું -કામ બંધ કરવું
૮. પાછી પાની કરવી - પાછા હઠવું




23 ઑગસ્ટ, 2020

संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)



संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) 
अनुच्छेद 32 के अंतर्गत उपरोक्त अधिकारों को लागू करने के लिए न्यायिक रिटों का प्रावधान है,जो निम्न हैं। 

*बन्दी प्रत्यक्षीकरण- (Habeas Corpus) जब किसी व्यक्ति को अवैध रूप से बन्दी बनाया जाता है, तो सर्वोच्च न्यायालय उस बन्दी बनाने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बन्दी बनाए गए व्यक्ति को 24 घण्टे के भीतर न्यायालय के समक्ष पेश करे। यह आपराधिक जुर्म के मामलों में जारी नहीं किया जा सकता। 
*परमादेश- (Mandamus) यह उस समय जारी किया जाता है, जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वाह नहीं करता है। 
*प्रतिषेध- (Prohibition) यह निचली अदालत को ऐसा कार्य करने से रोकता है, जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
*अधिकार-पृच्छा -(Qui-warranto) यह एक व्यक्ति को एक जन कार्यालय में काम करने से मना करता है, जिसका उसे अधिकार नहीं है। 
*उत्प्रेषण -(Certiorari) यह भी जारी किया जाता है जब एक अदालत या न्यायालय अपने न्याय क्षेत्र से बाहर कार्य करता है। यह निषेध' से अलग है और यह कार्य सम्पादित होने के बाद ही जारी किया जाता है।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अनुच्छेद 32 (संवैधानिक उपचारों का अधिकार) को संविधान की आत्मा एवं हृदय बताया।

भारत की विभिन्न कृषि क्रान्तियाँ

भारत की विभिन्न कृषि क्रान्तियाँ
 
* कृष्ण कान्ति -बायोडीजल उत्पादन 

*लाल क्रान्ति-टमाटर / मांस उत्पादन

* गुलाबी क्रान्ति-झींगा मछली उत्पादन
 

 *हरित कान्ति- खाद्यान्न उत्पादन 
*स्वेत क्रान्ति-दुग्ध उत्पादन
 *नीली क्रान्ति -मत्स्य उत्पादन 
*भूरी क्रान्ति -उर्वरक उत्पादन 
*रजत क्रान्ति -अण्डा उत्पादन 
*पीली क्रान्ति -तिलहन उत्पादन 

  
*बादामी क्रान्ति -मासाला उत्पादन
* सुनहरी क्रान्ति -फल उत्पादन 
*अमृत क्रांति-नदी जोड़ो परियोजनाएँ 
*इंद्र धनुष क्रांति-समन्वित कृषि क्रान्ति
 

5 ઑગસ્ટ, 2020

👉સમય કાઢીને વાંચજો( મજા ન આવે તો પૈસા પાછા)



એક ભાઈ બગીચાના બાંકડે બેઠા હતા. પાસે એક બેગ હતી. મુલ્લા નસીરુદ્દીન બગીચામાં ટહેલતાં ટહેલતાં એમની પાસે આવ્યા અને બોલ્યા, ‘બહારના માણસ લાગો છો. તમને ક્યારેય જોયા નથી.

ભાઈ બોલ્યા, ‘હા, હું દૂરના શહેરમાં રહું છું. મારી પાસે બધું છે. પૈસો છે, બંગલો છે, પ્રેમાળ પરિવાર છે, છતાં જીવનમાં મને રસ નથી પડી રહ્યો. એટલે થોડા દિવસની રજા પાડીને ‘મજા પડે એવું કંઈક’ શોધવા નીકળ્યો છું. *હું સુખ શોધી રહ્યો છું.*

મુલ્લા કંઈ બોલવાને બદલે, એ ભાઈની બેગ આંચકીને ભાગ્યા. પેલો માણસ પણ પાછળ દોડ્યો. મુલ્લા દોડમાં પાક્કા, એટલે ખાસ્સા આગળ નીકળી ગયા. પેલો માણસ હાંફતો હાંફતો એમની પાછળ દોડતો રહ્યો. બે કિલોમીટર દોડ્યા બાદ મુલ્લા રસ્તાને કિનારે એક બાંકડા પર બેસી ગયા.

થોડી વાર પછી પેલો માણસ હાંફતો-હાંફતો પહોંચ્યો. એણે તરાપ મારીને પોતાની બેગ લઈ લીધી. બેગ મળી ગયાનો આનંદ એના ચહેરા પર પ્રગટ્યો, એની બીજી જ પળે એણે ગુસ્સાથી મુલ્લાને કહ્યું, ‘મારી બેગ લઈને કેમ ભાગ્યા?’ 

મુલ્લા: ‘કેમ વળી? તમે સુખ શોધવા નીકળ્યા છો, તો બોલો, બેગ પાછી મળી જતાં તમને સુખની લાગણી થઈ કે નહીં ? મેં તો તમને સુખ શોધવામાં મદદ કરી.’

આપણામાંના મોટા ભાગના લોકો પણ થોડા અંશે પેલા માણસ જેવા હોઈએ છીએ. જે કંઈ આપણી પાસે છે, એમાંથી ઝાઝું સુખ નથી મળતું. પણ પછી એ ખોવાઈ ગયા બાદ પાછું મળે ત્યારે સારું લાગે.

આવું શા માટે?

એટલે, હવે પછી જ્યારે મૂડ સારો ન હોય, ત્યારે ઘરમાંની બધી વસ્તુઓને શાંતિથી નીરખવી અને પછી વિચારવું કે આ વસ્તુ જો મારી પાસે ન હોય તો કેટલી તકલીફ પડે?

કડકડતી ઠંડીમાં એક અત્યંત ગરીબ માતા પોતાનાં બાળકોના શરીર પર છાપાં પાથરી એના પર ઘાસ ‘ઓઢાડી’ને સૂવડાવી રહી હતી, ત્યારે એના ટેણિયા દીકરાએ ભાઈને પૂછ્યું, ‘હેં ભાઈ? જે લોકો પાસે છાપાં અને ઘાસ નહીં હોય એમની કેવી ખરાબ હાલત થતી હશે?’

આપણી પાસે ઘાસ અને છાપાંથી તો ઘણી સારી વસ્તુઓ ઘરમાં હોય છે, એટલે હવે ક્યારેક ‘હું સુખી નથી... મારી પાસે આ નથી... મારી પાસે તે નથી... એવું લાગે ત્યારે એક નજર જે કંઈ આપણી પાસે છે તેના પર નાખી જોવી.

જેમ કે, આવો સરસ મજાનો લેખ તમે ઓનલાઇન વાંચી શકો છો, તેના પરથી આટલી બાબત સાબિત થાય છે- 

01. તમે ગરીબ નથી. (સમગ્ર વિશ્વમાં આશરે 112 કરોડ લોકો ગરીબી રેખા નીચે જીવે છે.)

02. તમારી જાતને ઠંડી, ગરમી અને વરસાદ સામે રક્ષણ આપવા આશરો છે જે વિશ્વમાં લગભગ 130 કરોડ લોકો પાસે નથી.

03. તમે શાંતિથી બેસીને વાંચી શકો છો, મતલબ કે તમે અત્યંત માંદા નથી. (દુનિયામાં કોઈ પણ સમયે આશરે 120 કરોડ લોકો બીમાર હોય છે)

04. તમારી પાસે આટલો સારો મોબાઇલ છે જે દુનિયાના 198 કરોડ લોકો પાસે નથી.

05. તમને પીવાનું પાણી ઘેર બેઠા મળી રહેતું હશે, જે વિશ્વમાં આશરે 180 કરોડ લોકોને નથી મળતું.

06. તમારા ઘેર વીજળી હશે, (મોબાઇલ charging તો જ થતુ હોય ને) જે જગતના 18 કરોડ ઘરમાં નથી.

07. તમે મોજથી જીવવા વાળા વ્યક્તિ છો, એટલે જ તો મોજ થી સુતા છો.. અને જો બેઠા હશો તો પગ ઉપર પગ ચડાવીને બેઠા હશો. આવી નિરાંત દુનિયાના અનેક કરોડોપતિ પાસે પણ નથી.

08. આજ સવારે તમે ઉઠ્યા ત્યારે વિશ્વના 88,400 લોકો પોતાની ઊંઘમાં જ મૃત્યુ પામ્યા. આવુ દરરોજ બને છે.

08. તમે આ બધું વાંચી શક્યા. મતલબ કે તમને લખતા વાંચતા આવડે છે માટે તમે આ વિશ્વના 140 કરોડ નિરક્ષર લોકો કરતા નસીબદાર છો જેઓને વાંચતા આવડતું નથી. 

*ઔર જીને કો ક્યા ચાહિયે ?* 

આટલો મસ્ત લેખ તમે અત્યારે વાંચી રહ્યા છો, તો પછી છોડો ફરિયાદો, અને આભાર માનો ઈશ્વરનો, નસીબનો, પુરુષાર્થનો કે, જીવન મસ્ત છે. સવારે ઊઠીને આપણો પ્રથમ શબ્દ કયો હોવો જોઈએ ખબર છે? Thank you, God..

ગમે તો આ સુખ બીજા સાથે વહેચશો, મજા આવશે