29 સપ્ટે, 2020

ब्रह्मचर्य-पालन के महत्वपूर्ण नियम

* ब्रह्मचर्य-पालन के महत्वपूर्ण नियम *

 
ऋषियों का कथन है कि ब्रह्मचर्य ब्रह्म-परमात्मा के दर्शन का द्वार है, उसका पालन करना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए यहाँ हम ब्रह्मचर्य-पालन के कुछ सरल नियमों एवं उपायों की चर्चा करेंगेः


1.      ब्रह्मचर्य तन से अधिक मन पर आधारित है। इसलिए मन को नियंत्रण में रखो और अपने सामने ऊँचे आदर्श रखो।


2.      आँख और कान मन के मुख्यमंत्री हैं। इसलिए गंदे चित्र व भद्दे दृश्य देखने तथा अभद्र बातें सुनने से सावधानी पूर्वक बचो।


3.      मन को सदैव कुछ-न-कुछ चाहिए। अवकाश में मन प्रायः मलिन हो जाता है। अतः शुभ कर्म करने में तत्पर रहो व खुद को इस शरीर को चलाने वाली शक्ति आत्मा समझ ,परमपिता परमात्मा की मधुर याद में लगे रहो, काम विकार पास भी नही भटकेगा। 


4.      'जैसा खाये अन्न, वैसा बने मन।' - यह कहावत एकदम सत्य है। गरम मसाले, चटनियाँ,प्याज ,लहसुन , अधिक गरम भोजन तथा मांस, मछली, अंडे, चाय कॉफी, फास्टफूड आदि का सेवन बिल्कुल न करो।


5.      भोजन हल्का व चिकना स्निग्ध हो। रात का खाना सोने से कम-से-कम दो घंटे पहले खाओ।


6.      दूध भी एक प्रकार का भोजन है। भोजन और दूध के बीच में तीन घंटे का अंतर होना चाहिए।


7.      वेश का प्रभाव तन तथा मन दोनों पर पड़ता है। इसलिए सादे, साफ और सूती वस्त्र पहनो। खादी के वस्त्र पहनो तो और भी अच्छा है। सिंथेटिक वस्त्र मत पहनो। खादी, सूती, ऊनी वस्त्रों से जीवनीशक्ति की रक्षा होती है व सिंथेटिक आदि अन्य प्रकार के वस्त्रों से उनका ह्रास होता है।


8.      सीधे, रीढ़ के सहारे तो कभी न सोओ, हमेशा करवट लेकर ही सोओ। यदि चारपाई पर सोते हो तो वह सख्त होनी चाहिए।


9.      प्रातः जल्दी उठो। प्रभात में कदापि न सोओ। वीर्यपात प्रायः रात के अंतिम प्रहर में होता है।


10.  पान मसाला, गुटखा, सिगरेट, शराब, चरस, अफीम, भाँग आदि सभी मादक (नशीली) चीजें धातु क्षीण करती हैं। इनसे दूर रहो।


11.  लसीली (चिपचिपी) चीजें जैसे – भिंडी, लसौड़े आदि खानी चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में ब्राह्मी बूटी का सेवन लाभदायक है। भीगे हुए बेदाने और मिश्री के शरबत के साथ इसबगोल लेना हितकारी है।


12.  कटिस्नान करना चाहिए। ठंडे पानी से भरे पीपे में शरीर का बीच का भाग पेटसहित डालकर तौलिये से पेट को रगड़ना एक आजमायी हुई चिकित्सा है। इस प्रकार 15-20 मिनट बैठना चाहिए। आवश्यकतानुसार सप्ताह में एक-दो बार ऐसा करो।


13.  प्रतिदिन रात को सोने से पहले ठंडा पानी पेट,हाथ, पैरों पर डालना बहुत लाभदायक है।


14.  बदहज्मी व कब्ज से अपने को बचाओ।


15.  सेंट, लवेंडर, परफ्यूम आदि से दूर रहो। इन्द्रियों को भड़काने वाली किताबें न पढ़ो, न ही ऐसी फिल्में और नाटक देखो।


16.  विवाहित हो तो भी अलग बिछौने पर सोओ।


17.  हर रोज प्रातः और सायं व्यायाम, आसन और प्राणायाम करने का नियम रखो।

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कंप्यूटर का इतिहास और विकास

कंप्यूटर का इतिहास और विकास कैसे हुआ?
कंप्यूटर का इतिहास और विकास
Computers और electronics ने अभी के society में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, जहाँ इसने communication से लेकर medicine, वहीँ science और technology तक सभी में अपना impact बखूबी किया हुआ है. इसलिए अगर कंप्यूटर का इतिहास को जानना है तब हमें इसके सभी प्रारंभिक developments को गौर से देखना होगा, कहीं तभी जाकर हम इसे ठीक तरीके से समझ सकते हैं.

जहाँ computers को एक modern invention के तोर पर देखा जाता है जिसमें की electronics, computing का इस्तमाल हुआ है electrical devices के साथ. वहीँ लेकिन अगर पहला computing device की बात की जाये तब जरुर से इसका जवाब ancient abacus ही होने वाला है.

Analog computing को करीब हजारों वर्षों से इस्तमाल किया जा रहा है हमारे computing devices के तोर पर, वहीँ ancient Greeks और Romans ने सबसे popular Antikythera mechanism का इस्तमाल किया था.

वहीं बाद में devices जैसे की castle clock (1206), slide rule (c. 1624) और Babbage’s Difference Engine (1822) ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं इन early mechanical analog computers के.

इसके बाद electrical power के आ जाने से 19th-century में. नए electrical और hybrid electro-mechanical devices की development शुरू हो गयी जो की दोनों digital (Hollerith punch-card machine) और analog (Bush’s differential analyzer) calculation करने में सक्षम थे.

Telephone switching फिर इसके बाद आई, जिसके आने से machines के development होना चालू हो गया और इन्हें की हम early computers के तोर पर जानते हैं.

वहीँ Edison Effect के presentation के बाद सन 1885 में, इसने एक theoretical background प्रदान की electronic devices के लिए. वहीँ Originally, vacuum tubes के form में, electronic components के आते ही उन्होंने बहुत ही जल्द electric devices के साथ integrate होकर, पहले radio और बाद में television को revolutionize कर दिया.

ये computers ही थे, जहाँ की इन electronics का full impact देखने को मिलता है. Analog computers जिनका इस्तमाल ballistics को calculate करने के लिए होता है, वो बहुत ही crucial हो गए World War II के outcome के लिए, और इसी कारण ही Colossus और ENIAC, दो earliest electronic digital computers को develop किया गया था युद्ध के समय में ही.

Solid-state electronics के invention के साथ transistor और फिर बाद में ultimately integrated circuit के आने से, computers अब ज्यादा छोटे, compact, portable और यहाँ तक की affordable बन गए हैं एक average consumer के लिए. आजकर तो “computers” हमारे रहन सहन के बहुत ही नजदीक हैं फिर चाहे वो watches हो या फिर automobiles हो.

कंप्यूटर का इतिहास (History of Computer in Hindi)

कंप्यूटर का इतिहास एवं विकास
क्या आपको पता है कंप्यूटर का इतिहास कितना पुराना है? यदि आपको कम्प्यूटर की इतिहास के विषय में जानना है तब आपको पहले जानना होगा की बड़े numbers को इन्सान कैसे हिसाब करता था. छोटे संख्या को तो आसानी से हाथों का इस्तमाल कर हिसाब किया जा सकता है लेकिन जब बात बड़े संख्या की आती है तब ऐसे में उन्हें बड़ी तकलीफ हुई और उन्होंने नयी नहीं systems का इजात किया जो की उन्हें इसमें मदद करती थी.

हिसाब करने की इस प्रक्रिया में बहुत से systems of numeration का इस्तमाल किया जाता है जैसे की Babylonian system of numeration, Greek system of numeration, Roman system of numeration और Indian system of numeration.

इनमें से सबसे ज्यादा और universally जिसे माना गया वो है Indian system of numeration. ये आधारित है modern decimal system of numeration की जो की होती हैं (0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9). जैसे की हम जानते हैं की computer decimal system को समझ नहीं सकती है और इसलिए ये binary system of numeration का इस्तमाल करती है processing के लिए.

अब चलिए कुछ ऐसे ही computing devices के विषय में discuss करते हैं जिनकी इस दिशा में बड़ी योगदान है.

Calculating Machines
हमारे पूर्वजों को करीब हजारों वर्ष लग गए ऐसे mechanical devices बनाने में जिससे की बड़े numbers को count किया जा सके.

Abacus
इस श्रृंखला में सबसे पहला calculating device है ABACUS. इसे develop किया था Egyptian और Chinese लोगों ने. ABACUS का मतलब है calculating board. इसमें sticks होते हैं horizontal positions में जिसमें की छोटे छोटे आकार के pebbles को insert किया जाता है.

इसमें बहुत से horizontal bars होते हैं जिसमें प्रत्येक में ten beads होते हैं. Horizontal bars represent करती है units, tens, hundreds, इत्यादि.

Napier’s Bones
इसे develop किया था English mathematician John Napier सन 1617 AD में. यह एक ऐसा mechanical device है जिसे की multiplication के उद्देश्य से बनाया गया था. इसे कहा जाता है Napier’s bones वो उन वैज्ञानिक के नाम के बाद.

Slide Rule
English mathematician Edmund Gunter ने इस slide rule को develop किया था. यह machine बड़ी ही आसानी से बहुत से operation perform कर सकता है जैसे की addition, subtraction, multiplication, और division. इसे 16th century में पुरे Europe में बहुत ज्यादा इस्तमाल में लाया गया.

ADDING MACHINE– BLAISE (1642 A.D)
PASCAL– PRANCE
उस समय के प्रसिद्ध French Scientist और Mathematician, Blaise Pascal ने इस machine को invent किया था जो की उस समय में केवल 19 वर्षों के ही थे. यह machine आसानी से digits को add कर सकती थी वो भी carry करने के साथ automatically.

उनकी यह machine इतनी ज्यादा revolutionary थी की इसकी principle को आज भी बहुत से machanical counters में इस्तमाल किया जाता है.

MULTIPLYING MACHINE- COTTFRIED LEIBNITZ- GERMANY (1692 A.D)
Gottfried ने Pascal की machine को और ज्यादा improve किया और उन्होंने ऐसी mechanism की इजात की जो की numbers की automatic multiplication करने में सक्षम था.

फिर Leibnita भी और ज्यादा प्रसिद्ध हुए उनके काम के लिए Sir Isaac Newton के साथ, जिसमें उन्होंने एक नयी branch की Mathematics को ही develop कर दिया, जिसे हम आज Calculus के नाम से जानते हैं.

उन्होंने ही calculator को invent किया था, जो की आसानी से add, subtract, multiply and divide accurately कर सकता था. वहीँ ये square root function भी करने में सक्षम था.

EARLY 1800’S JACQUARD LOOM – JOSEPH MARIE JACQUARD
वहीँ early eighteenth century में, एक French weaver Joseph Marie Jacquard ने एक ऐसा programmable loom develop किया, जजों की large cards और holes का इस्तमाल करता था, फिर उन्हें punch करता था वो भी बहुत ही control के साथ जिससे की अंत में एक pattern automatically बनकर तैयार होता था.

इसमें जो output बनकर तैयार होता था वो एक thick rich cloth होता था जिसमें की repetitive oral या geometric patterns होते थे.

Jacquard patterns को अब भी इस्तमाल में लाया जाता है. वहीँ दूसरों ने punched cards को adapt कर लिया इस्तमाल करने लगे primary form of input के तोर पर.

DIFFERENCE ENGINE– CHARLES BABBAGE– ENGLAND (1813 A.D)
वहीँ early 19th century की शुरुवाती दौर में, Charles Babbage, जो की एक Englishman, Scientist थे, उन्होंने एक ऐसी machine के development के पीछे काम किया जो की बड़ी आसानी से complex calculations perform कर सकता था.

सन 1813 A.D.में उन्होंने इस ‘Difference Engine’ का invention किया जो की बहुत ही complex calculations को perform कर सकती थी और साथ में उसे print भी कर सकती थी. यह machine एक steam-powered machine था.

कम्प्यूटर की इतिहास हिंदी में – 19th Century
इस modern समय के Computer के इतिहास के विषय में जानते हैं जिसका development 19th century के समय में हुआ था. कुछ के विषय में मैंने पहले ही बता दिया है.

Jacquard Loom

Jacquard Loom
इसमें metal cards का इस्तमाल होता हिया punched holes के साथ जो की guide करता है weaving process को
यह first stored program था – metal cards में
यह एक पहला computer manufacturing unit भी था
इसका इस्तमाल आज भी बहुत जगह में होता है
Difference Engine c.1822

Difference Engine c.1822
यह एक बहुत ही बड़ा calculator था, जो की कभी भी पूर्ण नहीं हो सका
इसके पीछे Charles Babbage(1792-1871) का बड़ा हाथ था
Analytical Engine 1833

Analytical Engine 1833
यह machine numbers को store करने में सक्षम थी
इसके calculating प्रक्रिया के लिए punched metal cards का इस्तमाल होता था instructions देने के लिय
ये एक steam-powered machine था
ये accurately six decimal places तक calculate कर सकता था
Ada Augusta – दुनिया के पहले Programmer थे
उन्होंने Charles Babbage के साथ काम किया हुआ था
उन्होंने Analytical Engine को भी programmed किया था
Vacuum Tubes – (1930 – 1950s)
First Generation Electronic Computers में Vacuum Tubes का इस्तमाल हुआ था
Vacuum tubes असल में glass tubes होते हैं जिनकी circuits iउनके भीतर ही होती है.
Vacuum tubes के भीतर कोई भी air नहीं होती है, जो की इसकी circuitry की रक्षा करती है.
UNIVAC – 1951

UNIVAC – 1951
यह पहला commercially available computer
इसे बेचा गया था censu bureau को
“एक बहुत ही बड़ा pocket calculator था “
ये सन 1970 तक एक standard computer ही था, लेकिन इसकी कीमत बहुत ही ज्यादा थी
पहला Computer Bug – 1945
यह cards को relay कर सकता था जो की information carry करती हैं
Grace Hopper ने ही पहले एक actual moth (कीड़ा) को उस card में लगे हुए पाया , जिसके कारण ही card इस प्रकार से malfunction का रहा था
इसलिए उस समय से ही computer में “debugging” शब्द का इस्तमाल होने लगा
पहला Transistor
ये Silicon का इस्तमाल करता था
इस सन 1948 में develop किया गया था
जिसके लिए इसके inventor को Nobel prize भी मिला
इसमें on-off switch होता है
फिर Second Generation Computers ने इन Transistors का इस्तमाल किया, सन 1956 से.
Integrated Circuits
इन Integrated Circuits (chips) का इस्तमाल Third Generation Computers में हुआ था.
Integrated Circuits असल में transistors, resistors, और capacitors का समाहार होता है जिन्हें की एक साथ integrate किया जाता है एक single “chip” में.
कंप्यूटर का विकास कब हुआ
जैसे जैसे नयी counting technologies का इजात हुआ, वैसे वैसे नयी नयी calculating mechanical devices का भी जन्म हुआ. वैज्ञानिकों ने अपने research के द्वारा ऐसी devices को invent किया जो की हमारे complex calculations को बड़ी ही आसानी से solve कर सकते थे. अब चलिए हम personal computers में हो रहे development के विषय में जानते हैं.

Personal Computers का जन्म हुआ
अब चलिए जानते हैं की Personal Computers का इतिहास क्या है और कौन से computers से इसकी शुरुवात हुई.

Kenbak I – 1971

Kenbak I
ये सबसे primitive थी, जिसमें केवल flashing lights और buttons थी
इसकी कीमत केवल $750 ही थी
MITS Altair – 1975

MITS Altair – 1975
256-byte memory
2 MHz Intel 8080 chips
ये केवल एक box था flashing lights के साथ
इसकी kit की कीमत $395 थी, वहीँ इसे assemble कर देने के बाद ये कीमत हो जाती थी $495
पहला Microprocessor – 1971

Intel 4004
Intel 4004 में 2,250 transistors था
four-bit chunks (four 1’s or 0’s)
108Khz
0.6 Mips (million instructions/sec)
Pentium 133 – 300 Mips
इन्हें ही “Microchip” कहा गया
Electronic Computers की Generations
चलिए अब Electronics Computers के Generation के विषय में जानते हैं.

Generation First Generation I Second Gen II Third Gen III Fourth Gen IV
Technology Vacuum Tubes Transistors Integrated Circuits (multiple transistors) Microchips (millions of transistors)
Size Filled Whole Buildings Filled half a room Smaller Tiny – Palm Pilot is as powerful as old building-sized computer
कंप्यूटर का इतिहास भारत में
अगर हम भारत के computer technologies की development बात करें तब ये केवल तभी मुमकिन हो पाया जब दो major forces Political administration, Government policy advisers bureaucrats और technocrats ने एक साथ मिलकर काम करने का तय किया. चलिए अब हम भारत के computer evolution को अलग अलग phases में बांटकर देखते हैं.

Phase I
Computer Technologies का इतिहास भारत में शुरू हुआ सन 1950 से. पहला administration जिन्होंने की भारत में एक digital computer बनाने के शुरुवात की वो बनी R Narasimhan के leadership के अंतर्गत, Tata Institute of Fundamental Research (TIFR), Bombay में.

ये TIFRAC (TIFR Automatic Computer) को start किया गया था सन 1955 में और वहीँ इसे complete कर दिया गया सन 1959 में. TIFRAC आसानी से process कर सकता था upto 2048 word अपनी memory (40-bit word, 15 microsecond cycle time) में और वहीँ एक display output के तोर पर Cathode ray tube का इस्तमाल किया गया था.

TIFRAC को इसलिए design किया गया था क्यूंकि इसके इस्तमाल से TIFR और Atomic Energy establishment के physics problems को solve करने में मदद होती थी. वहीँ इसके मदद से भारत आगे बड़े ही effectively computers को build और design कर सकता था.

वहीँ सन 1960’s के दौरान पूरी दुनिया में non-foreign exchange outflow की पहल हो गयी थी computer industry में. लेकिन फिर भी IBM और British Tabulation machines (जिसका नाम बाद में ICL रखा गया) को establish किया गया, जो की उस समय भारत में Mechanical accounting machines बेच रहे थे.

IBM और ICL को licenses और agreements issue किये गए जिससे की वो भारत में computer manufacturing plant बना सकें, वहीँ IBM ने फिर punch card machines बनाना शुरू भी कर दिया और उन्हें बाहर के देशों में export किया जाने लगा.

Phase II
फिर सन 1970 में Department of Electronics को establish किया गया जिसका मूल उद्देश्य था की कैसे Electronics Technologies को enhance किया जा सके और जो की बाद में PSU company ECIL के computer division को establish करने में भी सहायक हुआ. (Electronics Corporation of India Limited).

ECIL ने design किया TDC-12 को जो की एक 12 bit real time minicomputer था और जिसे बाद में upgrade किया गया TDC-312 में, वहीँ बाद में TDC-316 में भी जो की एक 16 bit computer था जिसे सन 1975 में built किया गया था.

वहीँ वर्ष 1978 में ECIL ने MICRO-78 system को बनाया जो की purely based था microprocessor के ऊपर. ECIL ने वर्ष 1971 से 1978 तक करीब 98 computers की संरचना की जिन्हें की उन्होंने government laboratories को बेचा अलग अलग universities के research के लिए.

वहीँ ECIL का एक major contribution था जब उन्होंने Indian Air Force को प्रदान किया Air Defense Ground Environment Systems.

सन 1978 में minicomputer policy को बनाया गया जिससे IBM भारत से बाहर चला गया और इससे नए technical entrepreneurs को अवसर मिला अपने manufacturing units की स्थापना करने के लिए, जैसे की WIPRO और HCL. ये companies अभी तक भी पुरे दुनिया में अपना नाम रोशन कर रहे हैं.

Phase III
सन 1984 में जब Rajiv Gandhi भारत के Prime Minister बने, एक liberalized policy बनाया गया minicomputers के ऊपर जो की allow करता था private sector companies को computers manufacture करने में. उसी साल में private sector companies को allow किया गया unlimited 32-bit machines manufacture करने के लिए.

Private sector companies ने इसके साथ manufacture किया assembled boards microprocessors और interface electronics के साथ जिन्हें की उन्होंने import किया application software के साथ, जिसमें की कम imported duty लगती थी.

Liberalization policy के कारण computers का growth 100% तक बढ़ गया और वहीँ इसके कीमत में करीब 50% की कमी हुई.

Indian Railway’s Seat Reservation System की पूरी तरह से computerization शुरू हुआ सन 1984 में और वहीँ ये ख़त्म हुआ सन 1986 में. वहीँ Seat Reservation System की entire software को Indian programmers के द्वारा ही बनाया गया था बिना किसी foreign advisers के मदद से.

Phase IV
सन 1991 में भारत के ऊपर एक बहुत ही बड़ा financial crisis आ पड़ा, इससे बचने के लिए World Bank ने India को उसके external debt और trading (import और export) के ऊपर कुछ conditions लागु किये जिसके चलते Indian government को बाध्य होकर अपने economy को liberalize करना पड़ा.

सन 1990-1991 में Indian software companies ने earn करना चालू किया software को export कर, जिसकी estimated value US$125 million थी. वहीँ Earning की भी exponentially increase हुई जो की US$ 1.70 billion से ज्यादा थी सन 1997-98 के दौरान.

Indian software companies ने अपने लिए standardized way तय कर लिए थे Industry में काम करने के लिए. Indian software companies ने invent किया GDM (Global Delivery Model) और जिसके लिए उन्होंने 24-hour working hours की संरचना की IT industry के लिए. इसलिए ही पुरे विश्व में भारत को IT Industry का प्रमुख माना जाता है.

कंप्यूटर के विकास का संक्षिप्त इतिहास
मुझे उम्मीद है की आपको मेरी यह लेख कंप्यूटर का इतिहास (History of Computer in Hindi) जरुर पसंद आई होगी. मेरी हमेशा से यही कोशिश रहती है की readers को कंप्यूटर के विकास का इतिहास के विषय में पूरी जानकारी प्रदान की जाये जिससे उन्हें किसी दुसरे sites या internet में उस article के सन्दर्भ में खोजने की जरुरत ही नहीं है. इससे उनकी समय की बचत भी होगी और एक ही जगह में उन्हें सभी information भी मिल जायेंगे.



इमोजी की दुनिया

आइए, आज व्हाट्सएप्प के इमोजी की सहायता से दुनिया की सबसे वैज्ञानिक, सबसे प्रतिष्ठित, सबसे अधिक उपयोगी और निस्संदेह सर्वश्रेष्ठ भाषा *संस्कृत* देवभाषा सीखते हैं..

😀 - हसति 
😬 - निन्दति 
😭 - रोदिति 
😇 - भ्रमति 
🤔 - चिन्तयति 
😡 - कुप्यति 
😴 - स्वपिति 
😩 - क्षमां याचते / जृम्भते 
😳 - विस्मयो भवति / निर्निमेषं पश्यति 
😌 - ध्यायति 
👁 - पश्यति 
🗣 - वदति 
✍ - लिखति 
🙏� - प्रणमति 
👉 - निर्दिशति 
🙌 - आशिषति 
�👃 - जिघ्रति 
🚶🏻- गच्छति 
🏃🏻- धावति 
💃🏻 - नृत्यति

✈ विमानम् ।
🎁 उपायनम् ।
🚘 यानम् ।
💺 आसन्दः / आसनम् ।
⛵ नौका ।
🗻 पर्वत:।
🚊 रेलयानम् ।
🚌 लोकयानम् ।
🚲 द्विचक्रिका ।
🇮🇳 ध्वज:।
🐰 शशक:।
🐯 व्याघ्रः।
🐵 वानर:।
🐴 अश्व:।
🐑 मेष:।
🐘 गज:।
🐢 कच्छप:।
🐜 पिपीलिका ।
🐠 मत्स्य:।
🐄 धेनु: ।
🐃 महिषी ।
🐐 अजा ।
🐓 कुक्कुट:।
🐕 श्वा / कुक्कुरः / सारमेयः (श्वा श्वानौ श्वानः) ।
🐁 मूषक:।
🐊 मकर:।
🐪 उष्ट्रः।
🌸 पुष्पम् ।
🍃 पर्णे (द्वि.व)।
🌳 वृक्ष:।
🌞 सूर्य:।
🌛 चन्द्र:।
⭐ तारक: / नक्षत्रम् ।
☔ छत्रम् ।
👦 बालक:।
👧 बालिका ।
👂 कर्ण:।
👀 नेत्रे (द्वि.व)।
👃नासिका ।
👅 जिह्वा ।
👄 औष्ठौ (द्वि.व) ।
👋 चपेटिका ।
💪 बाहुः ।
🙏 नमस्कारः।
👟 पादत्राणम् (पादरक्षक:) ।
👔 युतकम् ।
💼 स्यूत:।
👖 ऊरुकम् ।
👓 उपनेत्रम् ।
💎 वज्रम् (रत्नम् ) ।
💿 सान्द्रमुद्रिका ।
🔔 घण्टा ।
🔓 ताल:।
🔑 कुञ्चिका ।
⌚ घटी।
💡 विद्युद्दीप:।
🔦 करदीप:।
🔋 विद्युत्कोष:।
🔪 छूरिका ।
✏ अङ्कनी ।
📖 पुस्तकम् ।
🏀 कन्दुकम् ।
🍷 चषक:।
🍴 चमसौ (द्वि.व)।
📷 चित्रग्राहकम् ।
💻 सड़्गणकम् ।
📱जड़्गमदूरवाणी ।
☎ स्थिरदूरवाणी ।
📢 ध्वनिवर्धकम् ।
⏳समयसूचकम् ।
⌚ हस्तघटी ।
🚿 जलसेचकम् ।
🚪द्वारम् ।
🔫 भुशुण्डिका ।(बु?) ।
🔩आणिः ।
🔨ताडकम् ।
💊 गुलिका/औषधम् ।
💰 धनम् ।
✉ पत्रम् ।
📬 पत्रपेटिका ।
📃 कर्गजम्/कागदम् ।
📊 सूचिपत्रम् ।
📅 दिनदर्शिका ।
✂ कर्त्तरी ।
📚 पुस्तकाणि ।
🎨 वर्णाः ।
🔭 दूरदर्शकम् ।
🔬 सूक्ष्मदर्शकम् ।
📰 पत्रिका ।
🎼🎶 सड़्गीतम् ।
🏆 पारितोषकम् ।
⚽ पादकन्दुकम् ।
☕ चायम् ।
🍵पनीयम्/सूपः ।
🍪 रोटिका ।
🍧 पयोहिमः ।
🍯 मधु ।
🍎 सेवफलम् ।
🍉कलिड़्ग फलम् ।
🍊नारड़्ग फलम् ।
🍋 आम्र फलम् ।
🍇 द्राक्षाफलाणि ।
🍌कदली फलम् ।
🍅 रक्तफलम् ।
🌋 ज्वालामुखी ।
🐭 मूषकः ।
🐴 अश्वः ।
🐺 गर्दभः ।
🐷 वराहः ।
🐗 वनवराहः ।
🐝 मधुकरः/षट्पदः ।
🐁मूषिकः ।
🐘 गजः ।
🐑 अविः ।
🐒वानरः/मर्कटः ।
🐍 सर्पः ।
🐠 मीनः ।
🐈 बिडालः/मार्जारः/लः ।
🐄 गौमाता ।
🐊 मकरः ।
🐪 उष्ट्रः ।
🌹 पाटलम् ।
🌺 जपाकुसुमम् ।
🍁 पर्णम् ।
🌞 सूर्यः ।
🌝 चन्द्रः ।
🌜अर्धचन्द्रः ।
⭐ नक्षत्रम् ।
☁ मेघः ।
⛄ क्रीडनकम् ।
🏠 गृहम् ।
🏫 भवनम् ।
🌅 सूर्योदयः ।
🌄 सूर्यास्तः ।
🌉 सेतुः ।
🚣 उडुपः (small boat)
🚢 नौका ।
✈ गगनयानम्/विमानम् ।
🚚 भारवाहनम् ।
🇮🇳 भारतध्वजः ।
1⃣ एकम् ।
2⃣ द्वे ।
3⃣ त्रीणि ।
4⃣ चत्वारि ।
5⃣ पञ्च ।
6⃣ षट् ।
7⃣ सप्त ।
8⃣ अष्ट/अष्टौ ।
9⃣ नव ।
🔟 दश ।
2⃣0⃣ विंशतिः ।
3⃣0⃣ त्रिंशत् ।
4⃣0⃣ चत्त्वारिंशत् ।
5⃣0⃣ पञ्चिशत् ।
6⃣0⃣ षष्टिः ।
7⃣0⃣ सप्ततिः ।
8⃣0⃣ अशीतिः ।
9⃣0⃣ नवतिः ।
1⃣0⃣0⃣ शतम्।
⬅ वामतः ।
➡ दक्षिणतः ।
⬆ उपरि ।
⬇ अधः ।
🎦 चलच्चित्र ग्राहकम् ।
🚰 नल्लिका ।
🚾 जलशीतकम् ।
🛄 यानपेटिका ।
📶 तरड़्ग सूचकम् ( तरड़्गाः)
+ सड़्कलनम् ।
- व्यवकलनम् ।
× गुणाकारः ।
÷ भागाकारः ।
% प्रतिशतम् ।
@ अत्र (विलासम्)।
⬜ श्वेतः ।
🔵 नीलः ।
🔴 रक्तः ।
⬛ कृष्णः ।

28 સપ્ટે, 2020

हिंदी कक्षा १ से ६ बाघ: निबंध लेखन

हिंदी कक्षा १ से ६
बाघ (निबंध लेखन)

(1) बाघ एक चौपाया जानवर है।
(2) बाघ हमारे भारत देश का राष्ट्रीय पशु है।

(3) बाघ स्तनधारी जानवर है क्योंकि यह इंसानों की तरह ही बच्चों को जन्म देता है।

बाघ मांसाहारी जानवर है।

(5) बाघ रात में शिकार करता है और दिन में सोता है।

(6) बाघ का शरीर 7 से 10 फीट तक लंबा होता है।

(7) भारतीय बाघ का शरीर का रंग पीले और भूरे रंग का मिश्रण होता है और उसके ऊपर काले रंग की धारियां होती है।

(8) बाघ के दो आंख और दो कान, एक लंबी पूछ होते है।

(9) बाघ जंगल, घास के मैदानों, वनों में अकेला रहना पसंद करता है।

(10) इसका मुख्य आहार चीतल, हिरण, जंगली सूअर, भैंस, सांभर, बकरी इत्यादि जानवर है।

24 સપ્ટે, 2020

ફેસબુક પર હમણાં એક નવો જ ટ્રેન્ડ ચાલુ થયો છે

ફેસબુક પર હમણાં એક નવો જ ટ્રેન્ડ ચાલુ થયો છે

#Couple_challenge #Single_challenge #Cute_sisters challenge

અને લોકો નીકળી પડ્યા છે જાણે કે તમને બધા #challenges નો બેસ્ટ એવોર્ડ મળવાનો હોય!!

સાઇબર ક્રાઇમના હજાર કિસ્સાઓ રોજ આપણે વાંચીએ છીએ તો એટલું પણ સમજીએ કે આપણી

પત્ની, બહેન, દિકરી ના ફોટા ખુલ્લેઆમ સોશિયલ સાઇટ્સ પર ના મૂકી.

તે કોઈપણ પ્રદર્શન કરવાની ચીજ વસ્તુ નથી કે ખુલ્લેઆમ ફોટા મૂકીએ છીએ.  

સમજી વિચારીને ભરેલું એક ડગલું મુશ્કેલી માંથી ઉગારી શકે છે.....
જન હિતમાં જારી

કોઈને સલાહ-શિખામણ આપવાનો મને કોઈ અધિકાર નથી.પણ વાસ્તવિકતા સામે તમારું ધ્યાન દોરવું છે.


पुनर्जन्म

पुनर्जन्म से सम्बंधित चालीस प्रश्नों को उत्तर सहित पढ़े?????

(1) प्रश्न :- पुनर्जन्म किसको कहते हैं ?

उत्तर :- जब जीवात्मा एक शरीर का त्याग करके किसी दूसरे शरीर में जाती है तो इस बार बार जन्म लेने की क्रिया को पुनर्जन्म कहते हैं ।

(2) प्रश्न :- पुनर्जन्म क्यों होता है ?

उत्तर :- जब एक जन्म के अच्छे बुरे कर्मों के फल अधुरे रह जाते हैं तो उनको भोगने के लिए दूसरे जन्म आवश्यक हैं ।

(3) प्रश्न :- अच्छे बुरे कर्मों का फल एक ही जन्म में क्यों नहीं मिल जाता ? एक में ही सब निपट जाये तो कितना अच्छा हो ?

उत्तर :- नहीं जब एक जन्म में कर्मों का फल शेष रह जाए तो उसे भोगने के लिए दूसरे जन्म अपेक्षित होते हैं ।

(4) प्रश्न :- पुनर्जन्म को कैसे समझा जा सकता है ?

उत्तर :- पुनर्जन्म को समझने के लिए जीवन और मृत्यु को समझना आवश्यक है । और जीवन मृत्यु को समझने के लिए शरीर को समझना आवश्यक है ।

(5) प्रश्न :- शरीर के बारे में समझाएँ ?

उत्तर :- हमारे शरीर को निर्माण प्रकृति से हुआ है ।
जिसमें मूल प्रकृति ( सत्व रजस और तमस ) से प्रथम बुद्धि तत्व का निर्माण हुआ है ।
बुद्धि से अहंकार ( बुद्धि का आभामण्डल ) ।
अहंकार से पांच ज्ञानेन्द्रियाँ ( चक्षु, जिह्वा, नासिका, त्वचा, श्रोत्र ), मन ।
पांच कर्मेन्द्रियाँ ( हस्त, पाद, उपस्थ, पायु, वाक् ) ।

शरीर की रचना को दो भागों में बाँटा जाता है ( सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर ) ।

(6) प्रश्न :- सूक्ष्म शरीर किसको बोलते हैं ?

उत्तर :- सूक्ष्म शरीर में बुद्धि, अहंकार, मन, ज्ञानेन्द्रियाँ । ये सूक्ष्म शरीर आत्मा को सृष्टि के आरम्भ में जो मिलता है वही एक ही सूक्ष्म शरीर सृष्टि के अंत तक उस आत्मा के साथ पूरे एक सृष्टि काल ( ४३२००००००० वर्ष ) तक चलता है । और यदि बीच में ही किसी जन्म में कहीं आत्मा का मोक्ष हो जाए तो ये सूक्ष्म शरीर भी प्रकृति में वहीं लीन हो जायेगा ।

(7) प्रश्न :- स्थूल शरीर किसको कहते हैं ?

उत्तर :- पंच कर्मेन्द्रियाँ ( हस्त, पाद, उपस्थ, पायु, वाक् ) , ये समस्त पंचभौतिक बाहरी शरीर ।

(8) प्रश्न :- जन्म क्या होता है ?

उत्तर :- जीवात्मा का अपने करणों ( सूक्ष्म शरीर ) के साथ किसी पंचभौतिक शरीर में आ जाना ही जन्म कहलाता है ।

(9) प्रश्न :- मृत्यु क्या होती है ?

उत्तर :- जब जीवात्मा का अपने पंचभौतिक स्थूल शरीर से वियोग हो जाता है, तो उसे ही मृत्यु कहा जाता है । परन्तु मृत्यु केवल सथूल शरीर की होती है , सूक्ष्म शरीर की नहीं । सूक्ष्म शरीर भी छूट गया तो वह मोक्ष कहलाएगा मृत्यु नहीं । मृत्यु केवल शरीर बदलने की प्रक्रिया है, जैसे मनुष्य कपड़े बदलता है । वैसे ही आत्मा शरीर भी बदलता है ।

(10) प्रश्न :- मृत्यु होती ही क्यों है ?

उत्तर :- जैसे किसी एक वस्तु का निरन्तर प्रयोग करते रहने से उस वस्तु का सामर्थ्य घट जाता है, और उस वस्तु को बदलना आवश्यक हो जाता है, ठीक वैसे ही एक शरीर का सामर्थ्य भी घट जाता है और इन्द्रियाँ निर्बल हो जाती हैं । जिस कारण उस शरीर को बदलने की प्रक्रिया का नाम ही मृत्यु है ।

(11) प्रश्न :- मृत्यु न होती तो क्या होता ?

उत्तर :- तो बहुत अव्यवस्था होती । पृथ्वी की जनसंख्या बहुत बढ़ जाती । और यहाँ पैर धरने का भी स्थान न होता ।

(12) प्रश्न :- क्या मृत्यु होना बुरी बात है ?

उत्तर :- नहीं, मृत्यु होना कोई बुरी बात नहीं ये तो एक प्रक्रिया है शरीर परिवर्तन की ।

(13) प्रश्न :- यदि मृत्यु होना बुरी बात नहीं है तो लोग इससे इतना डरते क्यों हैं ?

उत्तर :- क्योंकि उनको मृत्यु के वैज्ञानिक स्वरूप की जानकारी नहीं है । वे अज्ञानी हैं । वे समझते हैं कि मृत्यु के समय बहुत कष्ट होता है । उन्होंने वेद, उपनिषद, या दर्शन को कभी पढ़ा नहीं वे ही अंधकार में पड़ते हैं और मृत्यु से पहले कई बार मरते हैं ।

(14) प्रश्न :- तो मृत्यु के समय कैसा लगता है ? थोड़ा सा तो बतायें ?

उत्तर :- जब आप बिस्तर में लेटे लेटे नींद में जाने लगते हैं तो आपको कैसा लगता है ?? ठीक वैसा ही मृत्यु की अवस्था में जाने में लगता है उसके बाद कुछ अनुभव नहीं होता । जब आपकी मृत्यु किसी हादसे से होती है तो उस समय आमको मूर्छा आने लगती है, आप ज्ञान शून्य होने लगते हैं जिससे की आपको कोई पीड़ा न हो । तो यही ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा है कि मृत्यु के समय मनुष्य ज्ञान शून्य होने लगता है और सुषुुप्तावस्था में जाने लगता है ।

(15) प्रश्न :- मृत्यु के डर को दूर करने के लिए क्या करें ?

उत्तर :- जब आप वैदिक आर्ष ग्रन्थ ( उपनिषद, दर्शन आदि ) का गम्भीरता से अध्ययन करके जीवन,मृत्यु, शरीर, आदि के विज्ञान को जानेंगे तो आपके अन्दर का, मृत्यु के प्रति भय मिटता चला जायेगा और दूसरा ये की योग मार्ग पर चलें तो स्वंय ही आपका अज्ञान कमतर होता जायेगा और मृत्यु भय दूर हो जायेगा । आप निडर हो जायेंगे । जैसे हमारे बलिदानियों की गाथायें आपने सुनी होंगी जो राष्ट्र की रक्षा के लिये बलिदान हो गये । तो आपको क्या लगता है कि क्या वो ऐसे ही एक दिन में बलिदान देने को तैय्यार हो गये थे ? नहीं उन्होने भी योगदर्शन, गीता, साँख्य, उपनिषद, वेद आदि पढ़कर ही निर्भयता को प्राप्त किया था । योग मार्ग को जीया था, अज्ञानता का नाश किया था । 

महाभारत के युद्ध में भी जब अर्जुन भीष्म, द्रोणादिकों की मृत्यु के भय से युद्ध की मंशा को त्याग बैठा था तो योगेश्वर कृष्ण ने भी तो अर्जुन को इसी सांख्य, योग, निष्काम कर्मों के सिद्धान्त के माध्यम से जीवन मृत्यु का ही तो रहस्य समझाया था और यह बताया कि शरीर तो मरणधर्मा है ही तो उसी शरीर विज्ञान को जानकर ही अर्जुन भयमुक्त हुआ । तो इसी कारण तो वेदादि ग्रन्थों का स्वाध्याय करने वाल मनुष्य ही राष्ट्र के लिए अपना शीश कटा सकता है, वह मृत्यु से भयभीत नहीं होता , प्रसन्नता पूर्वक मृत्यु को आलिंगन करता है ।

(16) प्रश्न :- किन किन कारणों से पुनर्जन्म होता है ?

उत्तर :- आत्मा का स्वभाव है कर्म करना, किसी भी क्षण आत्मा कर्म किए बिना रह ही नहीं सकता । वे कर्म अच्छे करे या फिर बुरे, ये उसपर निर्भर है, पर कर्म करेगा अवश्य । तो ये कर्मों के कारण ही आत्मा का पुनर्जन्म होता है । पुनर्जन्म के लिए आत्मा सर्वथा ईश्वराधीन है ।

(17) प्रश्न :- पुनर्जन्म कब कब नहीं होता ?

उत्तर :- जब आत्मा का मोक्ष हो जाता है तब पुनर्जन्म नहीं होता है ।

(18) प्रश्न :- मोक्ष होने पर पुनर्जन्म क्यों नहीं होता ?

उत्तर :- क्योंकि मोक्ष होने पर स्थूल शरीर तो पंचतत्वों में लीन हो ही जाता है, पर सूक्ष्म शरीर जो आत्मा के सबसे निकट होता है, वह भी अपने मूल कारण प्रकृति में लीन हो जाता है ।

(19) प्रश्न :- मोक्ष के बाद क्या कभी भी आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता ?

उत्तर :- मोक्ष की अवधि तक आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता । उसके बाद होता है ।

(20) प्रश्न :- लेकिन मोक्ष तो सदा के लिए होता है, तो फिर मोक्ष की एक निश्चित अवधि कैसे हो सकती है ?

उत्तर :- सीमित कर्मों का कभी असीमित फल नहीं होता । यौगिक दिव्य कर्मों का फल हमें ईश्वरीय आनन्द के रूप में मिलता है, और जब ये मोक्ष की अवधि समाप्त होती है तो दुबारा से ये आत्मा शरीर धारण करती है ।

(21) प्रश्न :- मोक्ष की अवधि कब तक होती है ?

उत्तर :- मोक्ष का समय ३१ नील १० खरब ४० अरब वर्ष है, जब तक आत्मा मुक्त अवस्था में रहती है ।

(22) प्रश्न :- मोक्ष की अवस्था में स्थूल शरीर या सूक्ष्म शरीर आत्मा के साथ रहता है या नहीं ?

उत्तर :- नहीं मोक्ष की अवस्था में आत्मा पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाता रहता है और ईश्वर के आनन्द में रहता है, बिलकुल ठीक वैसे ही जैसे कि मछली पूरे समुद्र में रहती है । और जीव को किसी भी शरीर की आवश्यक्ता ही नहीं होती।

(23) प्रश्न :- मोक्ष के बाद आत्मा को शरीर कैसे प्राप्त होता है ?

उत्तर :- सबसे पहला तो आत्मा को कल्प के आरम्भ ( सृष्टि आरम्भ ) में सूक्ष्म शरीर मिलता है फिर ईश्वरीय मार्ग और औषधियों की सहायता से प्रथम रूप में अमैथुनी जीव शरीर मिलता है, वो शरीर सर्वश्रेष्ठ मनुष्य या विद्वान का होता है जो कि मोक्ष रूपी पुण्य को भोगने के बाद आत्मा को मिला है । जैसे इस वाली सृष्टि के आरम्भ में चारों ऋषि विद्वान ( वायु , आदित्य, अग्नि , अंगिरा ) को मिला जिनको वेद के ज्ञान से ईश्वर ने अलंकारित किया । क्योंकि ये ही वो पुण्य आत्मायें थीं जो मोक्ष की अवधि पूरी करके आई थीं ।

(24) प्रश्न :- मोक्ष की अवधि पूरी करके आत्मा को मनुष्य शरीर ही मिलता है या जानवर का ?

उत्तर :- मनुष्य शरीर ही मिलता है ।

(25) प्रश्न :- क्यों केवल मनुष्य का ही शरीर क्यों मिलता है ? जानवर का क्यों नहीं ?

उत्तर :- क्योंकि मोक्ष को भोगने के बाद पुण्य कर्मों को तो भोग लिया , और इस मोक्ष की अवधि में पाप कोई किया ही नहीं तो फिर जानवर बनना सम्भव ही नहीं , तो रहा केवल मनुष्य जन्म जो कि कर्म शून्य आत्मा को मिल जाता है ।

(26) प्रश्न :- मोक्ष होने से पुनर्जन्म क्यों बन्द हो जाता है ?

उत्तर :- क्योंकि योगाभ्यास आदि साधनों से जितने भी पूर्व कर्म होते हैं ( अच्छे या बुरे ) वे सब कट जाते हैं । तो ये कर्म ही तो पुनर्जन्म का कारण हैं, कर्म ही न रहे तो पुनर्जन्म क्यों होगा ??

(27) प्रश्न :- पुनर्जन्म से छूटने का उपाय क्या है ?

उत्तर :- पुनर्जन्म से छूटने का उपाय है योग मार्ग से मुक्ति या मोक्ष का प्राप्त करना ।

(28) प्रश्न :- पुनर्जन्म में शरीर किस आधार पर मिलता है ?

उत्तर :- जिस प्रकार के कर्म आपने एक जन्म में किए हैं उन कर्मों के आधार पर ही आपको पुनर्जन्म में शरीर मिलेगा ।

(29) प्रश्न :- कर्म कितने प्रकार के होते हैं ?

उत्तर :- मुख्य रूप से कर्मों को तीन भागों में बाँटा गया है :- सात्विक कर्म , राजसिक कर्म , तामसिक कर्म ।

(१) सात्विक कर्म :- सत्यभाषण, विद्याध्ययन, परोपकार, दान, दया, सेवा आदि ।

(२) राजसिक कर्म :- मिथ्याभाषण, क्रीडा, स्वाद लोलुपता, स्त्रीआकर्षण, चलचित्र आदि ।

(३) तामसिक कर्म :- चोरी, जारी, जूआ, ठग्गी, लूट मार, अधिकार हनन आदि ।

और जो कर्म इन तीनों से बाहर हैं वे दिव्य कर्म कलाते हैं, जो कि ऋषियों और योगियों द्वारा किए जाते हैं । इसी कारण उनको हम तीनों गुणों से परे मानते हैं । जो कि ईश्वर के निकट होते हैं और दिव्य कर्म ही करते हैं ।

(30) प्रश्न :- किस प्रकार के कर्म करने से मनुष्य योनि प्राप्त होती है ?

उत्तर :- सात्विक और राजसिक कर्मों के मिलेजुले प्रभाव से मानव देह मिलती है , यदि सात्विक कर्म बहुत कम है और राजसिक अधिक तो मानव शरीर तो प्राप्त होगा परन्तु किसी नीच कुल में , यदि सात्विक गुणों का अनुपात बढ़ता जाएगा तो मानव कुल उच्च ही होता जायेगा । जिसने अत्यधिक सात्विक कर्म किए होंगे वो विद्वान मनुष्य के घर ही जन्म लेगा ।

(31) प्रश्न :- किस प्रकार के कर्म करने से आत्मा जीव जन्तुओं के शरीर को प्राप्त होता है ?

उत्तर :- तामसिक और राजसिक कर्मों के फलरूप जानवर शरीर आत्मा को मिलता है । जितना तामसिक कर्म अधिक किए होंगे उतनी ही नीच योनि उस आत्मा को प्राप्त होती चली जाती है । जैसे लड़ाई स्वभाव वाले , माँस खाने वाले को कुत्ता, गीदड़, सिंह, सियार आदि का शरीर मिल सकता है , और घोर तामसिक कर्म किए हुए को साँप, नेवला, बिच्छू, कीड़ा, काकरोच, छिपकली आदि । तो ऐसे ही कर्मों से नीच शरीर मिलते हैं और ये जानवरों के शरीर आत्मा की भोग योनियाँ हैं ।

(32) प्रश्न :- तो क्या हमें यह पता लग सकता है कि हम पिछले जन्म में क्या थे ? या आगे क्या होंगे ?

उत्तर :- नहीं कभी नहीं, सामान्य मनुष्य को यह पता नहीं लग सकता । क्योंकि यह केवल ईश्वर का ही अधिकार है कि हमें हमारे कर्मों के आधार पर शरीर दे । वही सब जानता है ।

(33) प्रश्न :- तो फिर यह किसको पता चल सकता है ?

उत्तर :- केवल एक सिद्ध योगी ही यह जान सकता है , योगाभ्यास से उसकी बुद्धि । अत्यन्त तीव्र हो चुकी होती है कि वह ब्रह्माण्ड एवं प्रकृति के महत्वपूर्ण रहस्य़ अपनी योगज शक्ति से जान सकता है । उस योगी को बाह्य इन्द्रियों से ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रहती है
वह अन्तः मन और बुद्धि से सब जान लेता है । उसके सामने भूत और भविष्य दोनों सामने आ खड़े होते हैं ।

(34) प्रश्न :- यह बतायें की योगी यह सब कैसे जान लेता है ?

उत्तर :- अभी यह लेख पुनर्जन्म पर है, यहीं से प्रश्न उत्तर का ये क्रम चला देंगे तो लेख का बहुत ही विस्तार हो जायेगा । इसीलिये हम अगले लेख में यह विषय विस्तार से समझायेंगे कि योगी कैसे अपनी विकसित शक्तियों से सब कुछ जान लेता है ? और वे शक्तियाँ कौन सी हैं ? कैसे प्राप्त होती हैं ? इसके लिए अगले लेख की प्रतीक्षा करें...

(35) प्रश्न :- क्या पुनर्जन्म के कोई प्रमाण हैं ?

उत्तर :- हाँ हैं, जब किसी छोटे बच्चे को देखो तो वह अपनी माता के स्तन से सीधा ही दूध पीने लगता है जो कि उसको बिना सिखाए आ जाता है क्योंकि ये उसका अनुभव पिछले जन्म में दूध पीने का रहा है, वर्ना बिना किसी कारण के ऐसा हो नहीं सकता । दूसरा यह कि कभी आप उसको कमरे में अकेला लेटा दो तो वो कभी कभी हँसता भी है , ये सब पुराने शरीर की बातों को याद करके वो हँसता है पर जैसे जैसे वो बड़ा होने लगता है तो धीरे धीरे सब भूल जाता है...!

(36) प्रश्न :- क्या इस पुनर्जन्म को सिद्ध करने के लिए कोई उदाहरण हैं...?

उत्तर :- हाँ, जैसे अनेकों समाचार पत्रों में, या TV में भी आप सुनते हैं कि एक छोटा सा बालक अपने पिछले जन्म की घटनाओं को याद रखे हुए है, और सारी बातें बताता है जहाँ जिस गाँव में वो पैदा हुआ, जहाँ उसका घर था, जहाँ पर वो मरा था । और इस जन्म में वह अपने उस गाँव में कभी गया तक नहीं था लेकिन फिर भी अपने उस गाँव की सारी बातें याद रखे हुए है , किसी ने उसको कुछ बताया नहीं, सिखाया नहीं, दूर दूर तक उसका उस गाँव से इस जन्म में कोई नाता नहीं है । फिर भी उसकी गुप्त बुद्धि जो कि सूक्ष्म शरीर का भाग है वह घटनाएँ संजोए हुए है जाग्रत हो गई और बालक पुराने जन्म की बातें बताने लग पड़ा...!

(37) प्रश्न :- लेकिन ये सब मनघड़ंत बातें हैं, हम विज्ञान के युग में इसको नहीं मान सकते क्योंकि वैज्ञानिक रूप से ये बातें बेकार सिद्ध होती हैं, क्या कोई तार्किक और वैज्ञानिक आधार है इन बातों को सिद्ध करने का ?

उत्तर :- आपको किसने कहा कि हम विज्ञान के विरुद्ध इस पुनर्जन्म के सिद्धान्त का दावा करेंगे । ये वैज्ञानिक रूप से सत्य है , और आपको ये हम अभी सिद्ध करके दिखाते हैं..!

(38) प्रश्न :- तो सिद्ध कीजीए ?

उत्तर :- जैसा कि आपको पहले बताया गया है कि मृत्यु केवल स्थूल शरीर की होती है, पर सूक्ष्म शरीर आत्मा के साथ वैसे ही आगे चलता है , तो हर जन्म के कर्मों के संस्कार उस बुद्धि में समाहित होते रहते हैं । और कभी किसी जन्म में वो कर्म अपनी वैसी ही परिस्थिती पाने के बाद जाग्रत हो जाते हैं 

इसे उदहारण से समझें :- एक बार एक छोटा सा ६ वर्ष का बालक था, यह घटना हरियाणा के सिरसा के एक गाँव की है । जिसमें उसके माता पिता उसे एक स्कूल में घुमाने लेकर गये जिसमें उसका दाखिला करवाना था और वो बच्चा केवल हरियाणवी या हिन्दी भाषा ही जानता था कोई तीसरी भाषा वो समझ तक नहीं सकता था । 

लेकिन हुआ कुछ यूँ था कि उसे स्कूल की Chemistry Lab में ले जाया गया और वहाँ जाते ही उस बच्चे का मूँह लाल हो गया !! चेहरे के हावभाव बदल गये !!

और उसने एकदम फर्राटेदार French भाषा बोलनी शुरू कर दी !! उसके माता पिता बहुत डर गये और घबरा गये , तुरंत ही बच्चे को अस्पताल ले जाया गया । जहाँ पर उसकी बातें सुनकर डाकटर ने एक दुभाषिये का प्रबन्ध किया । 

जो कि French और हिन्दी जानता था , तो उस दुभाषिए ने सारा वृतान्त उस बालक से पूछा तो उस बालक ने बताया कि " मेरा नाम Simon Glaskey है और मैं French Chemist हूँ । मेरी मौत मेरी प्रयोगशाला में एक हादसे के कारण ( Lab. ) में हुई थी । "

तो यहाँ देखने की बात यह है कि इस जन्म में उसे पुरानी घटना के अनुकूल मिलती जुलती परिस्थिति से अपना वह सब याद आया जो कि उसकी गुप्त बुद्धि में दबा हुआ था । यानि की वही पुराने जन्म में उसके साथ जो प्रयोगशाला में हुआ, वैसी ही प्रयोगशाला उस दूसरे जन्म में देखने पर उसे सब याद आया । तो ऐसे ही बहुत सी उदहारणों से आप पुनर्जन्म को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध कर सकते हो...!

(39) प्रश्न :- तो ये घटनाएँ भारत में ही क्यों होती हैं ? पूरा विश्व इसको मान्यता क्यों नहीं देता ?

उत्तर :- ये घटनायें पूरे विश्व भर में होती रहती हैं और विश्व इसको मान्यता इसलिए नहीं देता क्योंकि उनको वेदानुसार यौगिक दृष्टि से शरीर का कुछ भी ज्ञान नहीं है । वे केवल माँस और हड्डियों के समूह को ही शरीर समझते हैं , और उनके लिए आत्मा नाम की कोई वस्तु नहीं है । तो ऐसे में उनको न जीवन का ज्ञान है, न मृत्यु का ज्ञान है, न आत्मा का ज्ञान है, न कर्मों का ज्ञान है, न ईश्वरीय व्यवस्था का ज्ञान है । और अगर कोई पुनर्जन्म की कोई घटना उनके सामने आती भी है तो वो इसे मानसिक रोग जानकर उसको Multiple Personality Syndrome का नाम देकर अपना पीछा छुड़ा लेते हैं और उसके कथनानुसार जाँच नहीं करवाते हैं...!

(40) प्रश्न :- क्या पुनर्जन्म केवल पृथिवी पर ही होता है या किसी और ग्रह पर भी ?

उत्तर :- ये पुनर्जन्म पूरे ब्रह्माण्ड में यत्र तत्र होता है, कितने असंख्य सौरमण्डल हैं, कितनी ही पृथीवियाँ हैं । तो एक पृथीवी के जीव मरकर ब्रह्माण्ड में किसी दूसरी पृथीवी के उपर किसी न किसी शरीर में भी जन्म ले सकते हैं । ये ईश्वरीय व्यवस्था के अधीन है...

 परन्तु यह बड़ा ही अजीब लगता है कि मान लो कोई हाथी मरकर मच्छर बनता है तो इतने बड़े हाथी की आत्मा मच्छर के शरीर में कैसे घुसेगी..?

यही तो भ्रम है आपका कि आत्मा जो है वो पूरे शरीर में नहीं फैली होती । वो तो हृदय के पास छोटे अणुरूप में होती है । सब जीवों की आत्मा एक सी है । चाहे वो व्हेल मच्छली हो, चाहे वो एक चींटी हो।

              सनातन धर्म परिवार

14 સપ્ટે, 2020

हॉकी या किसी भी खेल को राष्ट्रीय खेल का दर्जा नहीं

भारत में हॉकी और इसकी दशा को लेकर को लेकर अक्सर देश में बहस छिड़ी रहती है। इसी प्रकार डॉ. आलोक चांटिया ने ग्रीवेंस पर संख्या PMOPG/E/2016/0177353 से 26 मई 2016 को प्रधानमंत्री को लिखा था। उन्होंने हॉकी को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय खेल के दर्जे के संदर्भ में जानकारी लेनी चाही थी। लेकिन 02 अगस्त 2016 को करीब 66 दिन बाद इसे निस्तारित कर दिया गया कि ये ग्रीवेंस नहीं है।
इसके बाद डॉ. आलोक चांटिया ने पीएम को पत्र लिखा था, 'मेरी जानकारी के अनुसार हॉकी को भारत सरकार ने कभी राष्ट्रीय खेल न माना और ना ही ये सरकारी दस्तावेजों में राष्ट्रीय खेल के रूप में दर्ज है। देश में पाठ्य पुस्तकों में पढ़ाया जा रहा है कि हॉकी राष्ट्रीय खेल है। क्या ये एक भारतीय की ग्रीवेंस नहीं है कि वो प्रधानमंत्री के माध्यम से ये जानें कि वास्तव में हॉकी की विधिक स्थिति इस देश में क्या है। य़े राष्ट्रीय खेल है या नहीं है। क्या सही जानकारी प्राप्त करने के लिए अपनी बात को अपने देश के प्रधानमंत्री को लिखना ग्रीवेंस नहीं है। 02 यदि उत्तर देने वाले स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट को ये ग्रीवेंस नहीं लगा तो कम से कम वो ये तो स्पष्ट करता कि वास्तव में इस देश में हॉकी राष्ट्रीय खेल है कि नहीं है। क्या एक भारतीय को सही बात जानने तक का अधिकार नहीं है? मैं जानता हूँ कि आप तक देश की कई बातें नहीं पहुंचती हैं। इसलिए आपसे विनती है कि हॉकी का इस देश में क्या स्टेटस है और उसको राष्ट्रीय खेल माना गया है या नहीं, इस बारे में मुझे भारतीय की समस्या का समाधान करने की कृपा करें।'


इसके जवाब में 26 अप्रैल 2017 को बताया गया कि स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री ने कि हॉकी या किसी अन्य खेल को राष्ट्रीय खेल का दर्जा नहीं दिया है। किसी खेल को राष्ट्रीय खेल का दर्जा देने के लिए कोई गाइडलाइन नहीं दी गई है। डॉ. आलोक चांटिया लखनऊ के हैं और श्री जयनारायण पीजी कॉलेज में रीडर हैं। इसके अलावा इग्‍नू के काउंसिलर भी हैं।


13 સપ્ટે, 2020

નીચેના શબ્દોના અર્થ આપી વાક્યપ્રયોગ કરો.( અર્થ ભેદ)


નીચેના શબ્દોના અર્થ આપી વાક્યપ્રયોગ કરો.( અર્થ ભેદ)

(1) પાણી- જળ
વાક્ય : પાણીનો બગાડ કરવો જોઈએ નહીં,
(2) પાણિ - હાથ
વાક્ય: તેણે પાણિ વડે ધનુષ પકડ્યું.
(3) ઉદર- પેટ
વાક્ય: જેનું પેટ સાફ હોય, તેને જલદી રોગ થતો નથી.
 (4) ઉંદર - એક નાનું પ્રાણી
 વાક્ય : ઉદર ગણપતિનું વાહન ગણાય છે.

(5)ગુણ- સારું લક્ષણ
વાક્ય : રમેશ તેના ગુણને કારણે ગામમાં વખણાયો.
 (6) ગુણ - થેલો, કોથળો
 વાક્ય : દુકાનદારે બે ગુણ ઘઉં વેચ્યા.

(7)ગોળ –વર્તુળ
વાક્ય : ઘુવડની આંખ તો ગોળ દડા જેવી લાગતી હતી. 
(8) ગૉળ - ખાવાનો એક ગળ્યો પદાર્થ
વાક્ય : મજૂરે રોટલા સાથે ગોળ પણ ખાધો.

( 9 )ચિર – લાંબા વખતનું
વાક્ય : રામાયણ ની વાત ચિરકાળ યાદ રહેશે.
(10) ચીર- એક રેશમી વસ્ત્ર
વાક્ય : શ્રી કૃષ્ણ દ્રૌપદીના ચીર પૂર્યા.
(11)મોર – એક પક્ષી
વાક્ય : આંબા ડાળે મોર બેઠો હતો. 

(12)મોર-આંબાની મંજરી
વાક્ય : આંબા પર મોર ઝૂલતો હતો.


 ધોરણ - 6 : ગુજરાતી  (પ્રથમ સત્ર)


6 સપ્ટે, 2020

ધીરુભાઈ પરીખ :રવિશંકર મહારાજ



ધીરુભાઈ પરીખ

g4 : 31-8-1933

ધીરુભાઈ ઇશ્વરલાલ પરીખ નો જન્મ વિરમગામમાં થયો હતો. જુદી જુદી શિક્ષણ સંસ્થાઓમાં તેમણે ભાષા-સાહિત્યના વિદ્વાન અધ્યાપક તરીકે પોતાની સેવાઓ આપે છે. કવિતા, વિવેચન, અનુવાદ તેમજ સંપાદન એમાં રસના ક્ષેત્રો છે. 'કુમાર' તેમજ “કવિલોક' જેવી પ્રતિકૃતિ સામયિકો અને તેઓ તંત્રી છે. છપ્પા સંગ્રહ “અંગ પચીસી' તેમજ હાઈકુસંગ્રહ ‘અગિયા' પણ તમને નોંધપાત્ર પ્રકાશનો છે.

પ્રસ્તુત કૃતિ દ્વારા લેખકે રવિશંકર મહારાજના જીવનકાર્યને રસળતી શૈલીમાં રજૂ કર્યું છે. મહારાજના સાદગી અને સેવાના અનેક પ્રસંગો આપણા જીવન માટે પ્રેરણાદાયી બની રહે છે.

મહારાજ અને વળી સેવક ? મહારાજ એટલે તો મોટો રાજા. મોટો રાજા તો સેવા કરાવે કે સેવા કરે ? હા, પણ આ મહારાજ તો રાજ વિનાના મહારાજ, નવાઈ લાગે છે ને કે રાજ વિનાના તે વળી મહારાજ હોય ? હા, આ નવાઈ પમાડે તેવી, પણ ખરી વાત છે. લોકોના હૃદય પર તેની સત્તા ચાલે એવા છે આ મહારાજ.

આ મહારાજા તમે નથી ઓળખતા ? લો, તો હું એનું નામ કર્યું. એમનું નામ રવિશંકર વ્યાસ. હજીયે ઓળખાણ ના પડી ? રવિશંકર વ્યાસ નામ અજાણ્યું લાગે છે ? અરે, એ જ એમનું ખરું નામ છે અને વ્યાસ એ જ એમની સાચી અટક છે. આ તો એમનાં લોકહિતનાં કાર્યોથી, એમની નિઃસ્વાર્થ પ્રવૃત્તિઓથી લોકો જ તમને ‘મહારાજ નું બિરુદ આપ્યું છે. એમ, એ ‘મહારાજ' તરીકે પ્રસિદ્ધ થયા. આ ‘મહારાજ' એટલે જ ગુજરાતના મૂકસેવક રવિશંકર મહારાજ, લોકો એમને ‘રવિશંકર દાદા' પણ કહેતા.

રવિશંકર મહારાજનો જન્મ સંવત 1940ના મહા મહિનાની વદ ચૌદશના દિવસે એટલે કે મહાશિવરાત્રીના રોજ થયો હતો. ઈ. સ. 1884 ના ફેબ્રુઆરી મહિનાની પચીસમી તારીખે ખેડા જિલ્લાના ૨ ગામે જન્મેલા રવિશંકર પિતાશ્રીનું નામ શિવરામભાઈ અને માતુશ્રીનું નામ નાથીબા હતું. પિતાજી પાસેથી જીવનમાં સારી ટેવો કેળવવાની અને માતા પાસેથી ખૂબ ચાવીચાવીને ખાવાની આરોગ્યની ચાવીનું શિક્ષણ એ બાળપણમાંથી જ પામ્યા હતા. બાળપણથી જ એમનો સ્વભાવ

નિબંધ: રવિશંકર મહારાજ


રવિશંકર મહારાજનો જન્મ ઈ. સ. 1884 ના ફેબ્રુઆરીની પચીસમી તારીખે એમના મોસાળ રઢું ગામમાં થયો હતો. એમના પિતા પ્રાથમિક શાળામાં શિક્ષક હતા. એમનાં માતા ભણ્યા ન હતા.

બાળપણથી જ રવિશંકર મહારાજ ખૂબ મહેનતુ હતા. કામ કરવામાં તે જરા પણ આળસ ન કરતા, તેઓ ખેતીનું બધું કામ ઉમંગથી કરતા. મહોલ્લામાં કોઈ પડોશીના ‘કાગળ લખવો હોય તો તે હોશે હોશે લખી આપતા અને ટપાલપેટીમાં નાખી આવતા, તે તેની માતાને રામાયણ અને મહાભારત વાંચી સંભળાવતા. તે કુશળ તરવૈયા પણ હતા. એક વાર તેમને વાત્રક નદીના પૂરમાં તણાતા ત્રણ યુવાનોને બચાવ્યા હતા.
   મોટા થતાં રવિશંકર મહારાજ ગાંધીજીના રંગે રંગાયા. મહારાજ રવિશંકર મહારાજ લોકસેવક વરેલા ગુજરાતના મહાન નેતા હતા, મૂંગા મોઢે સેવા કરવી એ તેમનો જીવન ધર્મ હતો, સાચા અર્થમાં તે લોકસેવક હતા. રવિશંકર મહારાજે પોતાનું જીવન દેશસેવા અને લોક સેવાનાં કાર્યોમાં અર્પણ કરી દીધું હતું. તેમણે અભણ લોકોને અક્ષરજ્ઞાન આપવાનું કાર્ય કર્યું. તેમણે બહારવટિયાઓને સુધારવાનું કાર્ય કર્યું. ગુજરાતમાં કે દેશના કોઈ પણ ભાગમાં દુષ્કાળ હોય, નદીઓમાં પૂર આવ્યું હોય, રોગચાળો ફાટી નીકળ્યો હોય કે કોમી રમખાણ થયું હોય ત્યારે રવિશંકર મહારાજ લોકોની મદદે પહોંચી જતા.

રવિશંકર મહારાજ સાદું જીવન જીવતા. તો ઓછામાં ઓછી વસ્તુઓથી ચલાવતા. ટૂંકું ધોતિયું, કેડિયું અને ટોપી એ એમનો પહેરવેશ.ખભે લટકતી થેલી માં તે બે જોડી કપડાં રાખતા, મોટે ભાગે પગે ચાલીને તે ગામેગામ ફરતા અને લોકસેવા નાં કામ કરતા.
 રવિશંકર મહારાજ પોતાના કાર્ય કદી જાહેરાત કરતા નહિ. આથી તેઓ ‘મૂકસેવક' કહેવાય. ગુજરાત તેમને ‘પૂજ્ય દાદા’ના વહાલસોયા નામથી ઓળખે છે. તેમણે સો વર્ષનું લાંબુ આયુષ્ય ભોગવ્યું હતું.


  


5 સપ્ટે, 2020

ભાદરવાનો તાપ

ભાદરવાનું કેળું અને માગશર નો મૂળો જો કોઈ ના આપે તો ઝુટાવીને પણ ખાવું. અને તે ખાવાં થી નીચે જણાવેલ ફાયદા થાય છે.


ભાદરવો એટલે છૂટી છવાઈ વરસાદી સીઝન.... અને બીમારી નું પ્રવેશદ્વાર ....
વર્ષા ની વિદાય અને શરદનું આગમન એટલે ભાદરવો. 
દિવસે ધોમ ધખે (તડકો ખુબ હોય) અને મોડી રાત્રે ઠંડક હોય, ઓઢીને સુવુ પડે એવો ઠાર પડે.

આયુર્વેદાચાર્યો કહી ગયા છે કે વર્ષાઋતુમાં પિત્તનો શરીરમાં સંગ્રહ થાય અને શરદઋતુમાં તે પિત્ત પ્રકોપે (બહાર આવે). આ પ્રકોપવું એટલે તાવ આવવો, ગરમી શરીરની બહાર નીકળવી.

ભાદરવાના તાપ અને તાવથી બચવા ત્રણ-ચાર ઘરગથ્થુ પ્રયોગો
(જે જાતે અનુભવ ને આધારિત છે.)

(૧) ભાદરવાના ત્રીસે દિવસ રોજ રાત્રે સુતા પહેલા સુદર્શન/મહાસુદર્શન ઘનવટી - ૨-૩ ટીક્ડી ચાવીને નવસેકા ગરમ પાણી સાથે લેવી.

(૨) ભાદરવા સુદ ૩ (કેવડા ત્રીજ) નું વ્રત અને ભાદરવા સુદ ૪ (ગણેશ ચતુર્થી) થી ૧૧ દિવસ ગણેશજી ની દૂર્વા અને દેશી ગોળ - દેશી ઘી ના ગોળાકાર જ લાડુ થી આરાધના કરવામાં આવે છે જે પિત્તપ્રકોપ ને શાંત કરેછે.

(૩) અનુકૂળતા હોય તો ભાદરવાના ત્રીસે દિવસ દુધ -ચોખા-સાકરની ખીર, ગળ્યુ દુધ એ વકરેલા પિત્તનુ જાની દુશ્મન છે. આ હેતુથી જ શ્રાદ્ધપક્ષમાં ખીર બનાવવાનુ આયોજન થયુ હતુ.

(૪) જેની છાલ પર કથ્થાઇ/કાળા ડાઘ હોય એવા પાકેલા એક કેળાને છુંદીને એમાં ઘી, સાકર, ત્રણ ઈલાયચી ઉમેરી બપોરે જમવા સાથે ખાવા.


(જો ખીર અને કેળા - બન્નેનો પ્રયોગ કરવો હોય તો કેળા બપોરે અને ખીર સાંજે એમ ગોઠવવું)

(૫) ભૂલેચૂકે ખાટી છાશ ન જ પીવી. ખુબ વલોવેલી, સાવ મોળી છાશ લેવી હોય તો ક્યારેક અને બપોરે જ ભોજન પછી તરત જ લેવાય.

(૫) ઠંડા પહોરે (વહેલી સવારે કે સાંજે) પરસેવો વળે એટલું ચાલવું. શરીરની અનુકુળતા હોય તો ૫ કિલોમીટર દોડવું.

(૬) નવરાત્રિમાં ઠંડી અને ચાંદની રાતમાં રાસગરબા ના આયોજન પાછળનું કારણ આ જ છે.
શરદ પૂનમ ની રાત્રે સોળે કળાએ ખીલી ઉઠેલ ચંદ્ર ને ધરાવેલ દૂધ-પૌવા જ આપણે ભોજનમાં ઉપયોગ કરીએ છીએ.

આચાર્યોએ શરદને રોગોની માતા કહી છે - रोगाणाम् शारदी माता. અને
 ' યમની દાઢ ' પણ કહી. આપણામાં એક આશિર્વાદ પ્રચલીત હતો.
शतम् जीवेम् शरद એટલે કે આવી સો શરદ સુખરુપ જીવી જાઓ એવી શુભેચ્છા આપવામા આવતી. અસ્તુ.

 ગણેશચતુર્થી થી 11 દિવસ ગણેશજી ની આરાધના દૂર્વા અને ગોળ અને દેશી ઘી ના ગોળાકારના લાડુ નો ભોગ ધરાવીને કરીએ છીએ જે પિત્ત પ્રકોપને શાંત કરેછે.
 
 બધાની તંદુરસ્તી સારી બની રહે તે માટે પ્રાર્થના સહ પ્રણામ...

આ લેખ બધાને કામ લાગે તેવો છે માટે સૌને ખાસ જાણ કરશો જી.

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणी पश्यन्तु माकश्चिददुःखभागभवेत्।।
          લોકહિત માટે શેર કરો 🙏

*વોટ્સએપ વોલ પરથી

3 સપ્ટે, 2020

GDP क्या बला है ??

GDP-GDP सब हल्ला मचा रहै हैं पर ये GDP क्या बला है ??

इसको समझना है तो #श्री_राजीव_दीक्षित जी के व्याख्यान के कुछ अंश से समझिये

जब आप टूथपेस्ट खरीदते हैं तो GDP बढ़ती है परंतु किसी गरीब से दातुन खरीदते हैं तो GDP नहीं बढ़ती।
100% सच- 
जब आप किसी बड़े होस्पीटल मे जाकर 500 रुपे की दवाई खरीदते हैं तो GDP बढ़ती है परंतु आप अपने घर मे उत्पन्न गिलोय नीम या गोमूत्र से अपना इलाज करते हैं तो जीडीपी नहीं बढ़ती।
100% सच 
जब आप घर मे गाय पालकर दूध पीते हैं तो GDP नहीं बढ़ती परंतु पैकिंग का मिलावट वाला दूध पीते हैं तो GDP बढ़ती है।
100% सच 
जब आप अपने घर मे सब्जिया उगा कर खाते हैं तो GDP नहीं बढ़ती परंतु जब किसी बड़े AC माल मे जाकर 10 दिन की बासी सब्जी खरीदते हैं तो GDP बढ़ती है।
100% सच 
जब आप गाय माता की सेवा करते हैं तो GDP नहीं बढ़ती परंतु जब कसाई उसी गाय को काट कर चमड़ा मांस बेचते हैं तो GDP बढ़ती है।
रोजाना अखबार लिखा होता है कि भारत की जीडीपी 8 .7 % है कभी कहा जाता है के 9 % है ; प्रधानमंत्री कहते है की हम 12 % जीडीपी हासिल कर सकते है पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलम कहते थे की हम 14 % भी कर सकते है , रोजाना आप जीडीपी के बारे में पड़ते है और आपको लगता है की जीडीपी जितनी बड़े उतनी देश की तरक्की होगी ।
कभी किसी ने जानने की कौशिश की है कि ये जीडीपी है क्या ?
आम आदमी की भाषा में जीडीपी का क्या मतलब है ये हमें आज तक किसी ने नही समझाया । GDP actually the amount of money that exchanges hand . माने जो पैसा आप आदान प्रदान करते है लिखित में वो अगर हम जोड़ ले तो जीडीपी बनती है ।
अगर एक पेड़ खड़ा है तो जीडीपी नही बढती , लेकिन अगर आप उस पेड़ को काट देते है तो जीडीपी बढती है किउंकि पेड़ को काटने के बाद पैसा आदान प्रदान होता है , पर पेड़ अगर खड़ा है तो तो कोई इकनोमिक activity नही होती जीडीपी भी नही बढती ।
अगर भारत की सारे पेड़ काट दिया जाये तो भारत की जीडीपी 27 % हो जाएगी जो आज करीब 7 % है । आप बताइए आपको 27 % जीडीपी चाहिए या नही !
अगर नदी साफ़ बह रही है तो जीडीपी नही बढती पर अगर आप नदी को गंध करते है तो जीडीपी तीन बार बढती है । पहले नदी पास उद्योग लगाने से जीडीपी बढ गयी, फिर नदी को साफ़ करने के लिए हज़ार करोड़ का प्रोजेक्ट लेके ए जीडीपी फिर बढ गयी , फिर लोगो ने नदी के दूषित पानी का इस्तेमाल किया बीमार पड़े, डॉक्टर के पास गए डॉक्टर ने फीस ली , फिर जीडीपी बढ गयी ।
अगर आप कोई कार खरीदते है , आपने पैसा दिया किसी ने पैसा लिया तो जीडीपी बढ गयी, आपने कार को चलाने के लिए पेट्रोल ख़रीदा जीडीपी फिर बढ गयी, कार के दूषित धुआँ से आप बीमार हुए , आप डॉक्टर के पास गए , आपने फीस दी उसने फीस ली और फिर जीडीपी बढ गयी ।
जितनी कारे आयेगी देश में उतनी जीडीपी तीन बार बढ जाएगी और इस देश रोजाना 4000 ज्यदा कारे खरीदी जाती है , 25000 से ज्यादा मोटर साइकल खरीदी जाती है और सरकार भी इसकी तरफ जोर देती है क्योंकि येही एक तरीका है के देश की जीडीपी बढ़े।
हर बड़े अख़बार में कोका कोला और पेप्सी कोला का advertisement आता है और ये भी सब जानते है के ये कितने खतरनाक और जहरीला है सेहत के लिए पर फिर भी सब सरकारे चुप है और आँखे बंध करके रखा है क्योंकि जब भी आप कोका कोला पीते है देश की जीडीपी दो बार बढती है । पहले आप कोका कोला ख़रीदा पैसे दिया जीडीपी बढ गया , फिर पिने के बाद बीमार पड़े डॉक्टर के पास गए, डॉक्टर को फीस दिया जीडीपी बढ गयी ।
 इस मायाजाल को समझे ।


2 સપ્ટે, 2020

आयरलैण्ड का २२ एकड़ में फैला एक विश्व प्रसिद्ध पार्क

आयरलैण्ड का २२ एकड़ में फैला एक विश्व प्रसिद्ध पार्क है।जिसमें भगवान गणेश के अद्भुत दर्शनीय विग्रह हैं।
संगीत भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है।इस पार्क में भगवान गणेश विभिन्न वाद्ययंत्रों का वादन करते हुए दिखाए गए हैं।
एक विग्रह जिसमें वीणा वादक गणेश जी के चरण सान्निध्य में मूषक (चूहा) विद्यमान है वो दर्शनीय है 👇 

यह भारत में नहीं, बल्कि विला सरना उबुद, बाली, इंडोनेशिया है।‌

अपने देवी पुत्र गणेश के साथ देवी पार्वती की शानदार मूर्ति।
यह भारत में नहीं, बल्कि विला सरना उबुद, बाली, इंडोनेशिया में है।‌‌

1 સપ્ટે, 2020

એંજલ ડેવિસ


એન્જલ ડેવિસ બર્મિધમ નજીક એક નાનકડા ગામમાં જન્મી હતી. તે અશ્વેત પરિવારમાં જન્મી હોવાના કારણે તેને દલિત જાતિ જેવા અપમાન તથા અભાવનો સામનો કરવો પડ્યો હતો. તેનું બાળપણ અભ્યાસ કરવામાં પસાર થયું. તેણે એમ.બી.એ., પીએચ.ડી. કર્યું. પછી તે એક શાળામાં શિક્ષિકા બની ગઈ, પરંતુ એટલાથી તેને સંતોષ ન થયો. તે તો પોતાના જાતિભાઈઓને માનવીય અધિકારો અપાવવા ઇચ્છતી હતી. આ માટે તેને માર્ટિન લ્યુથર કિંગની સાથે મળીને અનેક રચનાત્મક અને સંઘર્ષાત્મક આંદોલનોમાં ભાગ લીધો.


પ્રકૃતિ સાથે તાદાત્મ્ય

જંગલમાં એક બકરી ની પાછળ શિકારી કુતરા દોડ્યા. બકરી જીવ બચાવવા માટે દ્રાક્ષની વાડીમાં છુપાઈ ગઈ, આથી કૂતરા આગળ જતા રહ્યા.

હવે બકરી નિશ્ચિત થઈને દ્રાક્ષના વેલા પરથી પાંદડા ખાવા લાગી. ધીમે ધીમે તે બધાં પાંદડા ખાઈ ગઈ. થોડીવારમાં કૂતરા પાછા ફર્યા. પાંદડાં ન રહેવાના કારણે તેઓ બકરીને જોઈ ગયા અને તેમણે બકરી ને મારી નાખી. પોતાના સહારો આપનારને જ જે માણસ નષ્ટ કરી દે છે તેની આવી જ દુર્ગતિ થાય

છે. માણસ પણ આજે પોતાને મદદ કરનાર વૃક્ષો, પર્વતો વગેરે નુકસાન પહોંચાડી

રહ્યો છે, આથી પ્રાકૃતિક આપત્તિઓ ના રૂપમાં તેને એનું પરિણામ ભોગવવું પડે છે.

કારીગરની એકાગ્રતા

એક માણસ બાણ બનાવવાની કળામાં પારંગત હતા. તે ખૂબ ઉત્તમ પ્રકારનાં બાણ બનાવતો હતો. તેની એ કળાને જાણવા તથા શીખવા માટે એક લુહાર તેની પાસે ગયો. પહેલા કારીગર તેને પોતાની પાસે બેસીને ગંભીરતાથી નિરીક્ષણ કરવાનું કહ્યું. એ દરમ્યાન સામેના રસ્તા પરથી બેન્ડવાજા સાથે એક જાન નીકળી. પહેલા લુહાર શ્રેષ્ઠ બાણ બનાવનાર અને તે જાન વિશે બધું વિવરણ સંભળાવ્યું. બાણ બનાવનાર તેને કહ્યું કે તે બધું જોવાની કે જાણવાની મને ફુરસદ નથી. સંપૂર્ણ એકાગ્રતા, તત્પરતા તથા અભિરુચિથી કામ કરવું એ જ કોઈ પણ બાબતમાં પ્રવીણતા પ્રાપ્ત કરવાનું રહસ્ય છે. પેલો સમજી ગયો અને તે પોતે પણ એકાગ્રતાનો અભ્યાસ કરવા લાગ્યો. ધીમે ધીમે તેનાં બાણ પણ ઉત્તમ બનવા લાગ્યા. દરેક વિદ્યાર્થી તથા શીખવાની ઇચ્છાવાળા કોઈ પણ માણસને આ આદર્શ કામ લાગે છે. ઉત્તમ બાબત તો ક્યાંથી શીખવા મળે ત્યાંથી શીખવા માટે તૈયાર રહેવું જોઈએ.