18 જુલાઈ, 2018

बलात्कार का आरंभ~

~बलात्कार का आरंभ~

मुझे पता है 90 % बिना पढ़े ही निकल लेंगे😢

आखिर भारत जैसे देवियों को पूजने वाले देश में बलात्कार की गन्दी मानसिकता कहाँ से आयी ~~

आखिर क्या बात है कि जब प्राचीन भारत के रामायण, महाभारत आदि लगभग सभी हिन्दू-ग्रंथ के उल्लेखों में अनेकों लड़ाईयाँ लड़ी और जीती गयीं, परन्तु विजेता सेना द्वारा किसी भी स्त्री का बलात्कार होने का जिक्र नहीं है।

तब आखिर ऐसा क्या हो गया ??  कि आज के आधुनिक भारत में बलात्कार रोज की सामान्य बात बन कर रह गयी है ??

~श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त की पर न ही उन्होंने और न उनकी सेना ने पराजित लंका की स्त्रियों को हाथ लगाया ।

~महाभारत में पांडवों की जीत हुयी लाखों की संख्या में योद्धा मारे गए। पर किसी भी पांडव सैनिक ने किसी भी कौरव सेना की विधवा स्त्रियों को हाथ तक न लगाया ।

अब आते हैं ईसापूर्व इतिहास में~

220-175 ईसापूर्व में यूनान के शासक "डेमेट्रियस प्रथम" ने भारत पर आक्रमण किया। 183 ईसापूर्व के लगभग उसने पंजाब को जीतकर साकल को अपनी राजधानी बनाया और पंजाब सहित सिन्ध पर भी राज किया। लेकिन उसके पूरे समयकाल में बलात्कार का कोई जिक्र नहीं।

~इसके बाद "युक्रेटीदस" भी भारत की ओर बढ़ा और कुछ भागों को जीतकर उसने "तक्षशिला" को अपनी राजधानी बनाया। बलात्कार का कोई जिक्र नहीं।

~"डेमेट्रियस" के वंश के मीनेंडर (ईपू 160-120) ने नौवें बौद्ध शासक "वृहद्रथ" को पराजित कर सिन्धु के पार पंजाब और स्वात घाटी से लेकर मथुरा तक राज किया परन्तु उसके शासनकाल में भी बलात्कार का कोई उल्लेख नहीं मिलता।

~"सिकंदर" ने भारत पर लगभग 326-327 ई .पू आक्रमण किया जिसमें हजारों सैनिक मारे गए । इसमें युद्ध जीतने के बाद भी राजा "पुरु" की बहादुरी से प्रभावित होकर सिकंदर ने जीता हुआ राज्य पुरु को वापस दे दिया और "बेबिलोन" वापस चला गया ।

विजेता होने के बाद भी "यूनानियों" (यवनों) की सेनाओं ने किसी भी भारतीय महिला के साथ बलात्कार नहीं किया और न ही "धर्म परिवर्तन" करवाया ।

~इसके बाद "शकों" ने भारत पर आक्रमण किया (जिन्होंने ई.78 से शक संवत शुरू किया था)। "सिन्ध" नदी के तट पर स्थित "मीननगर" को उन्होंने अपनी राजधानी बनाकर गुजरात क्षेत्र के सौराष्ट्र , अवंतिका, उज्जयिनी,गंधार,सिन्ध,मथुरा समेत महाराष्ट्र के बहुत बड़े भू भाग पर 130 ईस्वी से 188 ईस्वी तक शासन किया। परन्तु इनके राज्य में भी बलात्कार का कोई उल्लेख नहीं।

~इसके बाद तिब्बत के "युइशि" (यूची) कबीले की लड़ाकू प्रजाति "कुषाणों" ने "काबुल" और "कंधार" पर अपना अधिकार कायम कर लिया। जिसमें "कनिष्क प्रथम"  (127-140ई.) नाम का सबसे शक्तिशाली सम्राट हुआ।जिसका राज्य "कश्मीर से उत्तरी सिन्ध" तथा "पेशावर से सारनाथ" के आगे तक फैला था। कुषाणों ने भी भारत पर लम्बे समय तक विभिन्न क्षेत्रों में शासन किया। परन्तु इतिहास में कहीं नहीं लिखा कि इन्होंने भारतीय स्त्रियों का बलात्कार किया हो ।

~इसके बाद "अफगानिस्तान" से होते हुए भारत तक आये "हूणों" ने 520 AD के समयकाल में भारत पर अधिसंख्य बड़े आक्रमण किए और यहाँ पर राज भी किया। ये क्रूर तो थे परन्तु बलात्कारी होने का कलंक इन पर भी नहीं लगा।
 
~इन सबके अलावा भारतीय इतिहास के हजारों साल के इतिहास में और भी कई आक्रमणकारी आये जिन्होंने भारत में बहुत मार काट मचाई जैसे "नेपालवंशी" "शक्य" आदि। पर बलात्कार शब्द भारत में तब तक शायद ही किसी को पता था।

अब आते हैं मध्यकालीन भारत में~

जहाँ से शुरू होता है इस्लामी आक्रमण~

और यहीं से शुरू होता है भारत में बलात्कार का प्रचलन ।

~सबसे पहले 711 ईस्वी में "मुहम्मद बिन कासिम" ने सिंध पर हमला करके राजा "दाहिर" को हराने के बाद उसकी दोनों "बेटियों" को "यौनदासियों" के रूप में "खलीफा" को तोहफा भेज दिया।

तब शायद भारत की स्त्रियों का पहली बार बलात्कार जैसे कुकर्म से सामना हुआ जिसमें "हारे हुए राजा की बेटियों" और "साधारण भारतीय स्त्रियों" का "जीती हुयी इस्लामी सेना" द्वारा बुरी तरह से बलात्कार और अपहरण किया गया ।

~फिर आया 1001 इस्वी में "गजनवी"। इसके बारे में ये कहा जाता है कि इसने "इस्लाम को फ़ैलाने" के उद्देश्य से ही आक्रमण किया था।

"सोमनाथ के मंदिर" को तोड़ने के बाद इसकी सेना ने हजारों "काफिर औरतों" का बलात्कार किया फिर उनको अफगानिस्तान ले जाकर "बाजारों में बोलियाँ" लगाकर "जानवरों" की तरह "बेच" दिया ।

~फिर "गौरी" ने 1192 में "पृथ्वीराज चौहान" को हराने के बाद भारत में "इस्लाम का प्रकाश" फैलाने के लिए "हजारों काफिरों" को मौत के घाट उतर दिया और उसकी "फौज" ने "अनगिनत हिन्दू स्त्रियों" के साथ बलात्कार कर उनका "धर्म-परिवर्तन" करवाया।

~ये विदेशी मुस्लिम अपने साथ औरतों को लेकर नहीं आए थे।

~मुहम्मद बिन कासिम से लेकर सुबुक्तगीन, बख्तियार खिलजी, जूना खाँ उर्फ अलाउद्दीन खिलजी, फिरोजशाह, तैमूरलंग, आरामशाह, इल्तुतमिश, रुकुनुद्दीन फिरोजशाह, मुइजुद्दीन बहरामशाह, अलाउद्दीन मसूद, नसीरुद्दीन महमूद, गयासुद्दीन बलबन, जलालुद्दीन खिलजी, शिहाबुद्दीन उमर खिलजी, कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी, नसरत शाह तुगलक, महमूद तुगलक, खिज्र खां, मुबारक शाह, मुहम्मद शाह, अलाउद्दीन आलम शाह, बहलोल लोदी, सिकंदर शाह लोदी, बाबर, नूरुद्दीन सलीम जहांगीर,

~अपने हरम में "8000 रखैलें रखने वाला शाहजहाँ"।

~ इसके आगे अपने ही दरबारियों और कमजोर मुसलमानों की औरतों से अय्याशी करने के लिए "मीना बाजार" लगवाने वाला "जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर"।

~मुहीउद्दीन मुहम्मद से लेकर औरंगजेब तक बलात्कारियों की ये सूची बहुत लम्बी है। जिनकी फौजों ने हारे हुए राज्य की लाखों "काफिर महिलाओं" "(माल-ए-गनीमत)" का बेरहमी से बलात्कार किया और "जेहाद के इनाम" के तौर पर कभी वस्तुओं की तरह "सिपहसालारों" में बांटा तो कभी बाजारों में "जानवरों की तरह उनकी कीमत लगायी" गई।

~ये असहाय और बेबस महिलाएं "हरमों" से लेकर "वेश्यालयों" तक में पहुँची। इनकी संतानें भी हुईं पर वो अपने मूलधर्म में कभी वापस नहीं पहुँच पायीं।

~एकबार फिर से बता दूँ कि मुस्लिम "आक्रमणकारी" अपने साथ "औरतों" को लेकर नहीं आए थे।

~वास्तव में मध्यकालीन भारत में मुगलों द्वारा "पराजित काफिर स्त्रियों का बलात्कार" करना एक आम बात थी क्योंकि वो इसे "अपनी जीत" या "जिहाद का इनाम" (माल-ए-गनीमत) मानते थे।

~केवल यही नहीं इन सुल्तानों द्वारा किये अत्याचारों और असंख्य बलात्कारों के बारे में आज के किसी इतिहासकार ने नहीं लिखा।

~बल्कि खुद इन्हीं सुल्तानों के साथ रहने वाले लेखकों ने बड़े ही शान से अपनी कलम चलायीं और बड़े घमण्ड से अपने मालिकों द्वारा काफिरों को सबक सिखाने का विस्तृत वर्णन किया।

~गूगल के कुछ लिंक्स पर क्लिक करके हिन्दुओं और हिन्दू महिलाओं पर हुए "दिल दहला" देने वाले अत्याचारों के बारे में विस्तार से जान पाएँगे। वो भी पूरे सबूतों के साथ।

~इनके सैकड़ों वर्षों के खूनी शासनकाल में भारत की हिन्दू जनता अपनी महिलाओं का सम्मान बचाने के लिए देश के एक कोने से दूसरे कोने तक भागती और बसती रहीं।

~इन मुस्लिम बलात्कारियों से सम्मान-रक्षा के लिए हजारों की संख्या में हिन्दू महिलाओं ने स्वयं को जौहर की ज्वाला में जलाकर भस्म कर लिया।

~ठीक इसी काल में कभी स्वच्छंद विचरण करने वाली भारतवर्ष की हिन्दू महिलाओं को भी मुस्लिम सैनिकों की दृष्टि से बचाने के लिए पर्दा-प्रथा की शुरूआत हुई।

~महिलाओं पर अत्याचार और बलात्कार का इतना घिनौना स्वरूप तो 17वीं शताब्दी के प्रारंभ से लेकर 1947 तक अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में भी नहीं दिखीं। अंग्रेजों ने भारत को बहुत लूटा परन्तु बलात्कारियों में वे नहीं गिने जाते।

~1946 में मुहम्मद अली जिन्ना के डायरेक्टर एक्शन प्लान, 1947 विभाजन के दंगों से लेकर 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम तक तो लाखों काफिर महिलाओं का बलात्कार हुआ या फिर उनका अपहरण हो गया। फिर वो कभी नहीं मिलीं।

~इस दौरान स्थिती ऐसी हो गयी थी कि "पाकिस्तान समर्थित मुस्लिम बहुल इलाकों" से "बलात्कार" किये बिना एक भी "काफिर स्त्री" वहां से वापस नहीं आ सकती थी।

~जो स्त्रियाँ वहां से जिन्दा वापस आ भी गयीं वो अपनी जांच करवाने से डरती थी।

~जब डॉक्टर पूछते क्यों तब ज्यादातर महिलाओं का एक ही जवाब होता था कि "हमपर कितने लोगों ने बलात्कार किये हैं ये हमें भी पता नहीं"।

~विभाजन के समय पाकिस्तान के कई स्थानों में सड़कों पर काफिर स्त्रियों की "नग्न यात्राएं (धिंड) "निकाली गयीं, "बाज़ार सजाकर उनकी बोलियाँ लगायी गयीं"

~और 10 लाख से ज्यादा की संख्या में उनको दासियों की तरह खरीदा बेचा गया।

~20 लाख से ज्यादा महिलाओं को जबरन मुस्लिम बना कर अपने घरों में रखा गया। (देखें फिल्म "पिंजर" और पढ़ें पूरा सच्चा इतिहास गूगल पर)।

~इस विभाजन के दौर में हिन्दुओं को मारने वाले सबके सब विदेशी नहीं थे। इन्हें मारने वाले स्थानीय मुस्लिम भी थे।

~वे समूहों में कत्ल से पहले हिन्दुओं के अंग-भंग करना, आंखें निकालना, नाखुन खींचना, बाल नोचना, जिंदा जलाना, चमड़ी खींचना खासकर महिलाओं का बलात्कार करने के बाद उनके "स्तनों को काटकर" तड़पा-तड़पा कर मारना आम बात थी।

अंत में कश्मीर की बात~

~19 जनवरी 1990~

~सारे कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया जिसमें लिखा था~  "या तो मुस्लिम बन जाओ या मरने के लिए तैयार हो जाओ या फिर कश्मीर छोड़कर भाग जाओ लेकिन अपनी औरतों को यहीं छोड़कर "।

~लखनऊ में विस्थापित जीवन जी रहे कश्मीरी पण्डित संजय बहादुर उस मंजर को याद करते हुए आज भी सिहर जाते हैं।

~वह कहते हैं कि "मस्जिदों के लाउडस्पीकर" लगातार तीन दिन तक यही आवाज दे रहे थे कि यहां क्या चलेगा, "निजाम-ए-मुस्तफा", 'आजादी का मतलब क्या "ला इलाहा इलल्लाह", 'कश्मीर में अगर रहना है, "अल्लाह-ओ-अकबर" कहना है।

~और 'असि गच्ची पाकिस्तान, बताओ "रोअस ते बतानेव सान" जिसका मतलब था कि हमें यहां अपना पाकिस्तान बनाना है, कश्मीरी पंडितों के बिना मगर कश्मीरी पंडित महिलाओं के साथ।

~सदियों का भाईचारा कुछ ही समय में समाप्त हो गया जहाँ पंडितों से ही तालीम हासिल किए लोग उनकी ही महिलाओं की अस्मत लूटने को तैयार हो गए थे।

~सारे कश्मीर की मस्जिदों में एक टेप चलाया गया। जिसमें मुस्लिमों को कहा गया की वो हिन्दुओं को कश्मीर से निकाल बाहर करें। उसके बाद कश्मीरी मुस्लिम सड़कों पर उतर आये।

~उन्होंने कश्मीरी पंडितों के घरों को जला दिया, कश्मीर पंडित महिलाओ का बलात्कार करके, फिर उनकी हत्या करके उनके "नग्न शरीर को पेड़ पर लटका दिया गया"।

~कुछ महिलाओं को बलात्कार कर जिन्दा जला दिया गया और बाकियों को लोहे के गरम सलाखों से मार दिया गया।

~कश्मीरी पंडित नर्स जो श्रीनगर के सौर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में काम करती थी, का सामूहिक बलात्कार किया गया और मार मार कर उसकी हत्या कर दी गयी।

~बच्चों को उनकी माँओं के सामने स्टील के तार से गला घोंटकर मार दिया गया।

~कश्मीरी काफिर महिलाएँ पहाड़ों की गहरी घाटियों और भागने का रास्ता न मिलने पर ऊंचे मकानों की छतों से कूद कूद कर जान देने लगी।

~लेखक राहुल पंडिता उस समय 14 वर्ष के थे। बाहर माहौल ख़राब था। मस्जिदों से उनके ख़िलाफ़ नारे लग रहे थे। पीढ़ियों से उनके भाईचारे से रह रहे पड़ोसी ही कह रहे थे, 'मुसलमान बनकर आज़ादी की लड़ाई में शामिल हो या वादी छोड़कर भागो'।

~राहुल पंडिता के परिवार ने तीन महीने इस उम्मीद में काटे कि शायद माहौल सुधर जाए। राहुल आगे कहते हैं, "कुछ लड़के जिनके साथ हम बचपन से क्रिकेट खेला करते थे वही हमारे घर के बाहर पंडितों के ख़ाली घरों को आपस में बांटने की बातें कर रहे थे और हमारी लड़कियों के बारे में गंदी बातें कह रहे थे। ये बातें मेरे ज़हन में अब भी ताज़ा हैं।

~1989 में कश्मीर में जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी संगठन का नारा था-  'हम सब एक, तुम भागो या मरो'।

~घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण किए गए। हालात और बदतर हो गए थे।

~कुल मिलाकर हजारों की संख्या में काफिर महिलाओं का बलात्कार किया गया।

~आज आप जिस तरह दाँत निकालकर धरती के जन्नत कश्मीर घूमकर मजे लेने जाते हैं और वहाँ के लोगों को रोजगार देने जाते हैं। उसी कश्मीर की हसीन वादियों में आज भी सैकड़ों कश्मीरी हिन्दू बेटियों की बेबस कराहें गूंजती हैं, जिन्हें केवल काफिर होने की सजा मिली।

~घर, बाजार, हाट, मैदान से लेकर उन खूबसूरत वादियों में न जाने कितनी जुल्मों की दास्तानें दफन हैं जो आज तक अनकही हैं। घाटी के खाली, जले मकान यह चीख-चीख के बताते हैं कि रातों-रात दुनिया जल जाने का मतलब कोई हमसे पूछे। झेलम का बहता हुआ पानी उन रातों की वहशियत के गवाह हैं जिसने कभी न खत्म होने वाले दाग इंसानियत के दिल पर दिए।

~लखनऊ में विस्थापित जीवन जी रहे कश्मीरी पंडित रविन्द्र कोत्रू के चेहरे पर अविश्वास की सैकड़ों लकीरें पीड़ा की शक्ल में उभरती हुईं बयान करती हैं कि यदि आतंक के उन दिनों में घाटी की मुस्लिम आबादी ने उनका साथ दिया होता जब उन्हें वहां से खदेड़ा जा रहा था, उनके साथ कत्लेआम हो रहा था तो किसी भी आतंकवादी में ये हिम्मत नहीं होती कि वह किसी कश्मीरी पंडित को चोट पहुंचाने की सोच पाता लेकिन तब उन्होंने हमारा साथ देने के बजाय कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेक दिए थे या उनके ही लश्कर में शामिल हो गए थे।

~अभी हाल में ही आपलोगों ने टीवी पर "अबू बकर अल बगदादी" के जेहादियों को काफिर "यजीदी महिलाओं" को रस्सियों से बाँधकर कौड़ियों के भाव बेचते देखा होगा।

~पाकिस्तान में खुलेआम हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर सार्वजनिक रूप से मौलवियों की टीम द्वारा धर्मपरिवर्तन कर निकाह कराते देखा होगा।

~बांग्लादेश से भारत भागकर आये हिन्दुओं के मुँह से महिलाओं के बलात्कार की हजारों मार्मिक घटनाएँ सुनी होंगी।

~यहाँ तक कि म्यांमार में भी एक काफिर बौद्ध महिला के बलात्कार और हत्या के बाद शुरू हुई हिंसा के भीषण दौर को देखा होगा।

~केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनियाँ में इस सोच ने मोरक्को से ले कर हिन्दुस्तान तक सभी देशों पर आक्रमण कर वहाँ के निवासियों को धर्मान्तरित किया, संपत्तियों को लूटा तथा इन देशों में पहले से फल फूल रही हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता का विनाश कर दिया।

~परन्तु पूरी दुनियाँ में इसकी सबसे ज्यादा सजा महिलाओं को ही भुगतनी पड़ी...
बलात्कार के रूप में ।

~आज सैकड़ों साल की गुलामी के बाद समय बीतने के साथ धीरे-धीरे ये बलात्कार करने की मानसिक बीमारी भारत के पुरुषों में भी फैलने लगी।

~जिस देश में कभी नारी जाति शासन करती थीं, सार्वजनिक रूप से शास्त्रार्थ करती थीं, स्वयंवर द्वारा स्वयं अपना वर चुनती थीं, जिन्हें भारत में देवियों के रूप में श्रद्धा से पूजा जाता था आज उसी देश में छोटी-छोटी बच्चियों तक का बलात्कार होने लगा और आज इस मानसिक रोग का ये भयानक रूप देखने को मिल रहा है ।

सादर ✍️
दीपक 🙏

16 જુલાઈ, 2018

લો કર લો બાત !!!

લો કર લો બાત !!!
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હાથને સાફ કરવા માટે આજકાલ હેન્ડ સેનિટાઈઝરનો પ્રયોગ વધવા માંડ્યો છે. એક ટ્રેન્ડ થઈ ગયો છે માતાપિતા બાળકોને પણ સ્કુલે લઈ જવા માટે આપે છે. મહિલાઓ પણ પોતાના પર્સમાં રાખતી થઈ ગઈ છે અને પુરુષો પણ પોતાની બેગમાં રાખે છે. પરંતુ શું તમે જાણો છો આ આપણા માટે નુકશાનકારક છે. આજે આપણે તે આપણને કેવી રીતે નુકશાન પહોંચાડે છે તે જોઈએ.

1. ટ્રાઈક્લોસન
સેનિટાઈઝરમાં ટ્રાઈક્લોસન નામનું એક કેમિક્લ હોય છે જેને હાથની ત્વચાની અંદર જતું રહે છે. આનો વધારે સમય સુધીનો વપરાશ ત્વચાને સુકી બનાવી દે છે. આનાથી વાંઝિયાપણું અને હૃદય રોગ જેવી બીમારી નોતરે છે. આ કરણોથી બચવા જો તમારે હાથ ધોવાની જરૂર પળે તો રાહ જોઈને પણ સાબુ અને પાણીથી હાથની સફાઈ કરવી જોઈએ.

2. આલ્કોહોલ
આપણે જાણીએ જ છે કે બાળકો ગમે તેવી વસ્તુઓ અવારનવાર અડકે છે તે લીધે આપણે તેમને હેન્ડ સેનિટાઈઝરનો ઉપયોગ શીખવાડીએ છીએ. કેટલીકવાર તેઓ હેન્ડ સેનિટાઈઝરને ગળી ન જાય તેનું ધ્યાન રાખવું પડે છે. આમાં આલ્કોહોલનું પણ પ્રમાણ હોવાના લીધે બાળકોના સ્વાસ્થ્ય પર પણ અસર પડી શકે છે.

3. બાળકોની ઈમ્યુનિટી ઓછી કરે
નોર્થવેસ્ટર્ન સંશોધનના સાઈન્સ ડેઈલી પ્રમાણે હેન્ડસેનિટાઈઝરના વધારે ઉપયોગના લીધે બાળકોની રોગપ્રતિકારક શક્તિ ઘટે છે. આનો વધારે પ્રયોગ મોટાને પણ નુકશાન પહોંચાડી શકે છે.

4. ખંજવાળ
હેન્ડ સેનિટાઈઝરમાં બેંજાલ્કોનિયમ ક્લોરાઈડનું ઘટક હોય છે. આ કિટાણુ અને બેક્ટેરિયાને આપણા શરીરની બહાર કાઠી દે છે. આના લીધે બળતરા અને ખંજવાળ જેવી સ્મ્સયા પણ થાય છે.

5. સુગંધ ખતરનાક બની શકે
આમાં સુગંધ માટે ફેથલેટ્સ નામનું રસાયણ હોય છે. આ જેમાં વપરાતું હોય તેનો વારંવાર ઉપયોગ કરવાથી કિડની, લિવર, ફેફસાં તથા પ્રજનન તંત્રને નુકશાન પહોંચે છે.

6. સંપુર્ણપણે સાફ નહીં
હેન્ડસેનિટાઈઝરનો પ્રયોગ કર્યા પછી આપણે એમ જ લાગે છે કે આપણા હાથ સાફ થઈ ગયાં. પરંતુ આવું નથી હોતું. આના ઉપયોગથી ફેટ્સ અને શુગર જેવી ચીજો નથી કાઠી શકતાં. બટર પોપકોર્ન ખાધા પછી સેનિટાઈઝરનો ઉપયોગ પુરતો નથી.

7. ત્વચાને નુકશાન
હેન્ડ સેનિટાઈઝરના વધારે પડતા ઉપયોગના લીધે હાથની ત્વચા રૂક્ષ થઈ જાય છે. આથી જ્યાં પાણીથી હાથ ધોઈ શકાતા હોય ત્યાં તેનો જ ઉપયોગ હિતાવહ છે.

(સંકલિત)

ગણિતશાસ્ત્રનાં ત્રણે અંગો એરિથમેટિક, એલજીબ્રા, અને જ્યોમેટ્રી ત્રણ ભાષાઓમાં થી આવ્યા છે.

ગણિતશાસ્ત્રનાં ત્રણે અંગો એરિથમેટિક, એલજીબ્રા, અને જ્યોમેટ્રી ત્રણ ભાષાઓમાં થી આવ્યા છે.ઇન્ડિયન મેથેમેટીકલ સોસાયટી ના સમારોહમાં બોલતાં તામિલનાડુ ના રાજ્યપાલ ખુરાના એ કહ્યું:એ એરિથમેટિક નું મૂળ સંસ્કૃત છે 'અર્થ'અને માત્રા !એલજીબ્રાનું મૂળ અરબી શબ્દ 'અલ-જબ્ર'
છે, અર્થ છે તૂટેલા ભાગોનો ભેગા કરવા!અને જ્યોમેટ્રી મૂળ ગ્રીક' જ્યાં' પરથી આવે છે જેનો અર્થ પૃથ્વી થાય છે. સપાટીઓના માપનું આ શાસ્ત્ર છે. સંગીત ની જેમ ગણીત એક વિશ્વભાષા છે.

4 જુલાઈ, 2018

MEDICAL FITNESS* *PREVENTION IS* *BETTER THAN CURE*

*MEDICAL FITNESS*
*PREVENTION IS* *BETTER THAN CURE*

_MEDICAL FITNESS_

           *BLOOD PRESSURE*
          ----------
120/80 --  Normal
130/85 --Normal  (Control)
140/90 --  High
150/95 --  V.High
----------------------------

           *PULSE*
          --------
72  per minute (standard)
60 --- 80 p.m. (Normal)
40 -- 180  p.m.(abnormal)
----------------------------

          *TEMPERATURE*
          -----------------
98.4 F    (Normal)
99.0 F Above  (Fever)

*BLOOD GROUP COMPATIBILITY*

What’s Your Type and how common is it?

O+       1 in 3        37.4%
(Most common)

A+        1 in 3        35.7%

B+        1 in 12        8.5%

AB+     1 in 29        3.4%

O-        1 in 15        6.6%

A-        1 in 16        6.3%

B-        1 in 67        1.5%

AB-     1 in 167        .6%
(Rarest)

*Compatible Blood Types*

O- can receive O-

O+ can receive O+, O-

A- can receive A-, O-

A+ can receive A+, A-, O+, O-

B- can receive B-, O-

B+ can receive B+, B-, O+, O-

AB- can receive AB-, B-, A-, O-

AB+ can receive AB+, AB-, B+, B-, A+,  A-,  O+,  O-

This is an important msg which can save a life! A life could be saved...
What is ur blood group ?
Share the fantastic information..

*EFFECT OF WATER*                 
We Know Water is
       important but never
       knew about the
       Special Times one
       has to drink it.. !

       *Did you  ?*

  Drinking Water at the
       Right Time 
       Maximizes its
       effectiveness on the
       Human Body;

         1 Glass of Water
              after waking up -
              helps to
              activate internal
              organs..

         1 Glass of Water
              30 Minutes  
              before a Meal -
              helps digestion..

        1 Glass of Water
              before taking a
              Bath  - helps
              lower your blood
              pressure.

        1 Glass of Water
              before going to
              Bed -  avoids
            

योग

योग प्राचीन समय से मनुष्य को प्रकृति द्वारा दिया गया बहुत ही महत्वपूर्ण और अनमोल उपहार है, जो जीवन भर मनुष्य को प्रकृति के साथ जोड़कर रखता है। यह शरीर और मस्तिष्क के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए, इन दोनों को संयुक्त करने का सबसे अच्छा अभ्यास है। यह एक व्यक्ति को सभी आयामों पर, जैसे- शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और बौद्धिक स्तर पर नियंत्रण के द्वारा उच्च स्तर की संवेदनशीलता प्रदान करता है। स्कूल और कॉलेज में विद्यार्थियों की बहतरी के साथ ही पढ़ाई पर उनकी एकाग्रता को बढ़ाने के लिए योग के दैनिक अभ्यास को बढ़ावा दिया जाता है। यह लोगों द्वारा किया जाने वाला व्यवस्थित प्रयास है, जो पूरे शरीर में उपस्थित सभी अलग-अलग प्राकृतिक तत्वों के अस्तित्व पर नियंत्रण करके व्यक्तित्व में सुधार लाने के लिए किया जाता है।

योग के सभी आसनों से लाभ प्राप्त करने के लिए सुरक्षित और नियमित अभ्यास की आवश्यकता है। योग का अभ्यास आन्तरिक ऊर्जा को नियंत्रित करने के द्वारा शरीर और मस्तिष्क में आत्म-विकास के माध्यम से आत्मिक प्रगति को लाना है। योग के दौरान श्वसन क्रिया में ऑक्सीजन लेना और छोड़ना सबसे मुख्य वस्तु है। दैनिक जीवन में योग का अभ्यास करना हमें बहुत सी बीमारियों से बचाने के साथ ही भयानक बीमारियों; जैसे- कैंसर, मधुमेह (डायबिटीज़), उच्च व निम्न रक्त दाब, हृदय रोग, किडनी का खराब होना, लीवर का खराब होना, गले की समस्याओं और अन्य बहुत सी मानसिक बीमारियों से भी बचाव करता है।

आजकल, लोगों के जीवन को बेहतर करने के लिएफिर से योग का अभ्यास करने की आवश्यकता है। दैनिक जीवन में योग का अभ्यास शरीर को आन्तरिक और बाहरी ताकत प्रदान करता है। यह शरीर के प्रतिरोधी प्रणाली को मजबूती प्रदान करने में मदद करता है, इस प्रकार यह विभिन्न और अलग-अलग बीमारियों से बचाव करता है। यदि योग को नियमित रुप से किया जाए तो यह दवाईयों का दूसरा विकल्प हो सकता है। यह प्रतिदिन खाई जाने वाली भारी दवाईयों के दुष्प्रभावों को भी कम करता है। प्राणायाम और कपाल-भाति जैसे योगों को करने का सबसे अच्छा समय सुबह का समय है, क्योंकि यह शरीर और मन पर नियंत्रण करने के लिए बेहतर वातावरण प्रदान करता है।

किसान आत्महत्या पर लेख

किसान आत्महत्या पर लेख

त्याग, तपस्या एवं कठिन परिश्रम का दूसरा नाम किसान है। हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है जहां लगभग सत्तर प्रतिशत जनसंख्या आज भी खेती पर निर्भर है। यही वजह है कि हमारे देश में जहां भी देखो गांव ही गांव एवं दूर-दूर तक फैले हुए खेत नजर आते हैं। तपती धूप हो या कड़ाके की सर्दी पड़ रही हो किसान आपको खेतों में काम करते हुए दिख जाएंगे। किसानों की पूरी जिंदगी मिट्टी से सोना उपजाने की कोशिश में निकल जाती है। किसानों का मुख्य व्यवसाय कृषि अर्थात खेती होती है और मेहनती किसान बिना किसी शिकायत के अपने खेतों में मेहनत करता रहता है। खेतों में फसल उपजाना कोई आसान काम नहीं और फसल की बुआई, फसल की देखभाल, उसकी कटाई और फिर तैयार फसल को बाजार में बेचने जैसी तमाम कोशिशें किसानों को लगातार करते रहना पड़ता है।

चिंताजनक स्थिति

इतनी कड़ी मेहनत करने के बाद भी देश के कुछ हिस्सों के किसान आत्महत्या करने पर मजबूर है और यह एक गंभीर चिंता का विषय है। भारत को एक जमाने में सोने की चिड़िया कहा जाता था क्योंकि यहां अन्न और धन की कोई कमी नहीं थी और किसान सुखी थे। भारत को कृषिप्रधान देश का दर्जा भी इसी वजह से मिला लेकिन आज हालात काफी बदल गए हैं। आज हमारे अन्नदाता किसान के हालात इतने खराब हो गए हैं कि वे आत्महत्या करने को विवश हो जाते हैं। निश्चित रूप से यह एक भयानक त्रासदी है और एक ऐसी सच्चाई है जिससे हम मुंह नहीं मोड़ सकते।

शुरूआत कैसे हुई

भारत में किसानों की आत्महत्या की समस्या लगभग 1990 के बाद प्रबल रूप से प्रकाश में आई जब उदारीकरण का दौर शुरू हुआ था। अंग्रेजी भाषा के ‘द हिंदू’ नामक अखबार मे किसान आत्महत्या की सूचना देती हुई खबरें इसी वर्ष प्रकाशित हुई और सबसे पहले ये खबरें महाराष्ट्र से आईं। महाराष्ट्र के विदर्भ में कपास का उत्पादन करने वाले किसानों ने आत्महत्या कर ली थी और फिर आंध्रप्रदेश से भी किसानों की आत्महत्या करने की खबरें मिलने लगीं। शुरू-शुरू में लोगों ने यह सोचा कि यह समस्या सिर्फ विदर्भ एवं उसके आस-पास के क्षेत्रों की ही है और उस वजह से वहां के स्थानीय सरकार को ही इस बारे में ध्यान देने की जरूरत है लेकिन जब आंकड़ों को ध्यान से देखा गया तो स्थिति और भी भयानक नजर आई।

यह पता चला कि आत्महत्या तो पूरे महाराष्ट्र में कई जगहों के किसान कर रहे हैं और साथ ही आंध्रप्रदेश एवं देश के कई अन्य राज्यों में भी यही हालात थे। यहां सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात यह है कि आत्महत्या करने वाले केवल छोटी जाति वाले किसान ही नहीं थे, मध्यम और बड़े जाति वाले किसान भी इस गतिविधि में शामिल थे। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2009 में कुल 17,368 किसानों ने आत्महत्याएं की और वर्तमान में प्रतिवर्ष 10,000 किसानों द्वारा आत्महत्या का औसत दर्ज किया जा रहा है।

समाधान जरूरी

भारत में ज्यादातर किसान गरीब हैं और उनके पास अपनी जमीनें नहीं है। वे जमींदारों की जमीन पर खेती करते हैं और उन्हीं से कर्ज लेकर बीज, खाद एवं खेती से संबंधित अन्य जरूरतों की पूर्ति करते हैं। उनके एक कर्ज का बोझ उतर भी नहीं पाता कि दूसरी फसल लगाने के लिए उन्हें फिर से कर्ज लेना पड़ जाता है और इस बीच में अगर किन्हीं कारणों जैसे कि बाढ़, सूखा, फसल में कीड़ा लग जाना इत्यादी से फसल खराब हो जाए तो वे कर्ज नहीं चुका पाते और इस वजह से वे आत्महत्या कर लेते हैं।

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भारत के किसान जमींदारों एवं साहूकारों के आर्थिक शोषण से परेशान होकर ही आत्महत्या करते हैं। कई बार तो यह भी देखा गया है कि फसल की जरूरत से ज्यादा पैदावार हो जाने की वजह से भी उन्हें आत्महत्या करनी पड़ जाती है क्योंकि ज्यादा पैदावार होने पर फसल का बाजार में न्यूनतम समर्थन मूल्य इतना गिर जाता है कि वह उनके कुल लागत से भी बेहद कम हो जाती है और वे अपना कर्ज नहीं उतार पाते। ऋणग्रस्तता या कर्ज में दबे होने की स्थिति ही गरीब किसानों को और भी गरीब बनाती है।

किसानों की आत्महत्या रोकने का कार्य सरकार कई किसान कल्याण एवं कृषि विकास की योजनाओं द्वारा कर सकती है। साथ ही सरकार को फसल बीमा एवं कई अन्य प्रकार की सहायता जैसे सहकारी बैंको से कम ब्याज दर पर ऋण की उपलब्धता कराना एवं उच्च गुणवत्ता वाले बीज, उच्च स्तर के खाद, उत्तम कृषि यंत्र प्रदान करना एवं भूमिहीन किसानों को भूमि उपलब्ध कराना आदि उपायों के द्वारा सरकार किसानों की आत्महत्या को रोकने में कामयाब हो सकती है।

निष्कर्ष:
किसानों की आत्महत्या एक राष्ट्रीय समस्या का रूप ले चुकी है और अगर जल्द ही किसानों की स्थिति बेहतर बनाने और उन्हें आत्महत्या करने से रोका न गया तो यह स्थिति और भी भयावह रूप धारण कर सकती है। उनके लिए फसल बीमा, फसलों का उच्च समर्थन मूल्य एवं आसान ऋण की उपलब्धी सरकार को सुनिश्चित करनी होगी तभी किसानों की स्थिति सुधरेगी और उन्हें आत्महत्या करने से रोका जा सकेगा।

डॉ संपूर्णानंद की जीवनी एक शिक्षक और भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के राजनेता,


डॉ संपूर्णानंद की जीवनी

क शिक्षक और भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के राजनेता, डॉ संपूर्णानंद का जन्म 1 जनवरी 1891 में वाराणसी शहर में हुआ था। और उनकी मृत्यु 7 मार्च 1969 में वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुई थी। वह बनारस के अच्छे परिवार से संबंधित थे और उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत शिक्षक के रुप में की थी। वह एक भावुक स्वतंत्रता सेनानी थे और उनकी बचपन से संस्कृत और खगोल शास्त्र में विशेष रुचि थी। वह उत्तर प्रदेश की विधान सभा में चुने गए और 1954-1960 तक उत्तर प्रदेश राज्य के 6 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहे। वह हिन्दी और संस्कृत भाषा के विद्वान थे।

डॉ संपूर्णानंद का जीवन

कमलापति त्रिपाठी और सी.बी गुप्ता के द्वारा उत्तर प्रदेश में कुछ राजनीतिक संकट उत्पन्न होने के कारण यूपी के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद ये राजस्थान के राज्यपाल बन गए।

बनारस शहर में पंड़ित मदन मोहन मालवीय के द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आन्दोलन में इन्होंने भागीदारी की थी। और फिर से नेशनल हेराल्ड और कांग्रेस सोशलिस्ट में भाग लिया और वह 1922 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति में चुने गए। वह भारत की स्वतंत्रता के बाद क्षेत्रीय शिक्षा मंत्री बने थे। शिक्षा मंत्री पद पर रहने के दौरान इन्होंने स्वंय को अपने खगोलीय शास्त्र के सपने को पूरा करने में लगा दिया और इसी समय इन्होंने सरकारी संस्कृत कॉलेज (अब संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है) में खगोलीय वेधशाला स्थापित करने की योजना बनाई। और इसके बाद इन्होंने 9 वर्षों 1946-1951 तक और 1951-1954 तक के लिए संघीय मंत्री के पद की जिम्मेदारी को ग्रहण किया।

डॉ संपूर्णानंद, 8 फरवरी 1962 में यूपी सरकार के सांस्कृतिक विभाग के द्वारा स्थापित, “राज्य ललित कला अकादमी” उत्तर प्रदेश के प्रथम अध्यक्ष बने। वह सदैव स्वंय को देश सेवा के महान कार्यों में व्यस्त रखते थे। राजस्थान में इनके राज्यपाल पद के दौरान, इन्होंने “सांगनेर की बिना सलाखों की जेल” के विचार को बढ़ावा दिया। जिसका अर्थ है, अपराधियों के लिए एक खुली हुई जेल, जिसमें कि अपराधी अपने परिवार के साथ रह सके और बिजली व पानी के बिलों का भुगतान करने बाहर जा सके। वह हमेशा से ही अपराधियों के लिए कड़ी सजाओं के खिलाफ थे। इनका अपराधियों के लिए बयान था कि, अपराधियों को दंडित प्रतिशोध के रुप में नहीं, बल्कि नवीनीकरण के रुप में किया जाना चाहिए। इनके समय में, 1963 में राजस्थान की सरकार के द्वारा श्री सम्पूर्णानंद खुला बंदी शिविर शुरु किया गया था।

3 જુલાઈ, 2018

પૂજ્ય શ્રી રાજર્ષિ મુનિજી

https://youtu.be/dm4SD5yczcw

કોઈ ના મૃત્યુ ના સમાચાર ની સાથે બધાં જ સોસિયલ નેટવર્ક માં " *RIP* " શબ્દ નો ખુબજ ઉપયોગ કરે છે

કોઈ ના મૃત્યુ ના સમાચાર ની સાથે બધાં જ સોસિયલ નેટવર્ક માં " *RIP* " શબ્દ નો ખુબજ ઉપયોગ કરે છે ...

મિત્રો મારે તમને ઍક વાત કરવી છે ...

"🙏"
*માફી સાથે જરા એક વાત કરું છું*
"🙏"

*What is Rest in Peace ( RIP ) ?*

આજકાલ કોઈના નિધન પછી *RIP* લખવાની જાણે ફેશન ચાલી છે.

વિદેશીઓની આંધળી નકલ કરવામાં આપણે આપણી સંસ્કૃતિ ની ઘોર ખોદી રહ્યા છીએ એવું લાગે છે મને.

*RIP* શબ્દનો અર્થ છે
*"Rest in Peace"*
*(શાંતિથી આરામ કરો)*.

આ શબ્દ એમના માટે છે જેને કબરમાં દફનાવ્યા હોય.

ઇસાઈ અને મુસ્લિમ માન્યતા મુજબ
*‘Judgement Day’*
કે
*"क़यामत का दिन"*
આવે ત્યારે આ મૃતકો કબરમાંથી પુનર્જીવિત થશે.

એટલે એમના માટે કયામત ના દિવસ સુધી શાંતિથી આરામ કરો એમ કહેવાય છે.

પરંતુ હિંદુ સનાતન ધર્મની માન્યતા મુજબ આત્મા અમર છે , ને શરીર નશ્વર છે.
એટલે શરીરનો અગ્નિસંસ્કાર થાય છે.

માટે હિંદુ વિચારધારા મુજબ
*"Rest in Peace"* નો સવાલ જ નથી આવતો,
કારણ કે આત્મા એક શરીર છોડીને તેના કર્મફળ અનુસાર બીજા શરીર માં પ્રવેશે છે.

એ આત્માને આગળની યાત્રા માટે સારી ગતિ *(સદગતી)* પ્રાપ્ત થાય તે માટે જ શ્રાદ્ધ કર્મની પ્રથા રહેલી છે.

મિત્રો,
હિંદુ જીવાત્મા માટે
*‘શ્રદ્ધાંજલિ’*
or
*‘આત્માને સદગતી પ્રાપ્ત થાય’*
જેવા વાક્યો નો પ્રયોગ યથાર્થ ગણાશે,
જયારે મુસ્લિમ કે ઈસાઈ માટે *RIP* લખી શકાય.

*‘આત્માને સદગતી પ્રાપ્ત થાય’*
*“Aatmane Sadgati Prapt Thay”*
*(ASPT)* લખો તો ચાલે.

(સાંસ્કૃતિક પરંપરાઓનું જતન કરવું એ આપણી જવાબદારી છે)
🙏🏻

સૂર્ય ગ્રહણ સમયે કર્ક સહિતની અન્ય રાશિઓ પર પડી શકે છે ખરાબ અસર*

*સૂર્ય ગ્રહણ સમયે કર્ક સહિતની અન્ય રાશિઓ પર પડી શકે છે ખરાબ અસર*
13 જુલાઇએ વર્ષનું બીજુ સૂર્ય ગ્રહણ થશે. જુલાઇ મહિનામાં સૂર્ય અને ચંદ્ર ગ્રહણ બંન્ને થશે. જો કે, ભારતમાં આ ગ્રહણ આંશિક હશે, એટલે તેનો પ્રભાવ અહીં જોવા નહી મળે. ભારતમાં તેની અસર ભલે નહીં પડે પરંતુ રાશિઓ પર તેની અસર જરૂર જોવા મળશે. 13 જુલાઇ 2018 થનાર સૂર્ય ગ્રહણની અસર દક્ષિણ ઓસ્ટ્રેલિયાના મેલબર્ન, સ્ટીવર્ટ આઇલેંડ અને હોબાર્ટમાં જોવા મળશે.
13 જુલાઇ અમાસ્યાના દિવસે થનાર સૂર્ય ગ્રહણ અંદાજિત એક કલાક સુધી રહેશે. ભારતીય સમય અનુસાર સવારે 7વાગ્યાને 18 મિનિટ અને 23 સેકેન્ડથી શરૂ થશે અને 8 વાગ્યાને 13 મિનિટ અને 05 સેકેન્ડ સુધી તેની અસર જોવા મળશે.
આ ગ્રહણ સમયે કર્ક, મિથુન અને સિંહ રાશિ પર તેની ખરાબ અસર પડી શકે છે. આ રાશિના જાતકોને પોતાના સ્વાસ્થ્યને લઇને ચિંતા રહી શકે છે. તે દિવસે શુભ કામને ટાળવાની કોશિશ કરો અને ગ્રહણથી વચવા માટે શિવ ચાલીસાના પાઠ કરવા અને ભગવાન શિવના જાપ કરવા જોઇએ. ગરીબોને અનાજનું દાન કરો અને તે સમયે તુલસીના પાનને જમવા સાથે ખાવાથી ખૂબ જ ફાયદો થયા છે, તુલસીના પાનને સુતક પહેલા તોડી લો, કારણ કે સુતક બાદ પાનને તોડવું અશુભ મનાય છે.
1. ગ્રહણ કાળ સમાપ્ત થયા બાદ પાણીમાં ગંગાજળ મિક્ષ કરીને તે પાણીથી સ્નાન કરવાથી લાભ થાય છે.
2. તે સમય સૂર્ય મંત્રોના જાપ કરવાથી લાભ થાય છે,
3. ગ્રહણ બાદ અન્ન અને વસ્ત્રોનું દાન કરવું જોઇએ.