8 જાન્યુ, 2019

स्टीफन हॉकिंग

विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का जन्म ब्रिटेन में 8 जनवरी 1942 को हुआ था। इनकी मृत्यु 14 मार्च 2018 को हुई थी। स्टीफन हॉकिंग को 21 साल की उम्र में ही एक लाइलाज बीमारी हो गई थी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और दुनिया से सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों में से एक बन गए। वे कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में सैद्धांतिक ब्रह्मांड विज्ञान के निदेशक थे। स्टीफन हॉकिंग अल्बर्ट आइंस्टीन के बाद सबसे बड़े भौतिकशास्त्री माने जाते हैं। कंप्यूटर और अलग-अलग गैजेट्स की मदद से वे अपने विचार व्यक्त करते थे। स्टीफन हॉकिंग ने जीवन से सफलता पाने के कई सूत्र बताए हैं, अगर इन बातों का ध्यान रखा जाए तो हम अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं...

1. इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन मूर्खता नहीं, बल्कि ज्ञानी होने का भ्रम है। हॉकिंग का बदलाव को लेकर हमेशा से ही पॉजिटिव रुख रहा है। उनका कहना था कि ज्ञान का मतलब है बदलाव को अपनाने की क्षमता रखना है।

2. हमें सबसे अधिक महत्व का काम सबसे पहले करने का प्रयास करना चाहिए।

3. वास्तविकता की कोई अनूठी तस्वीर नहीं होती है।

4. हम अपने लालच और मुर्खता के चलते खुद के अस्तित्व को खत्म कर रहे हैं, चाहे जीवन जितना भी कठिन लगे, आप हमेशा कुछ न कुछ कर सकते हैं और सफल हो सकते हैं।

5. मैंने देखा है वो लोग भी जो ये कहते हैं कि सब कुछ पहले से तय है और हम उसे बदलने के लिए कुछ भी नहीं कर सकते, वे भी सड़क पार करने से पहले देखते हैं।

6. अगर आप हमेशा गुस्सा या शिकायत करते हैं तो लोगों के पास आपके लिए समय नहीं रहेगा।

7. जब किसी की उम्मीद एकदम खत्म हो जाती है, तब वो सचमुच हर उस चीज का महत्व समझता है, जो उसके पास है।

8. काम आपको अर्थ और उद्देश्य देता है और इसके बिना जीवन अधूरा है।

9. हर व्यक्ति के पास अपने जीवन में कुछ बड़ा करके दिखाने का मौका होता है, चाहे उसके जीवन में कितनी भी परेशानियां हों।

10. बुद्धिमत्ता बदलाव के अनुरूप ढलने की क्षमता है।

4 જાન્યુ, 2019

लुई ब्रेल दिवस

लुई ब्रेल दिवस

विवरणब्रेल पद्धति का आविष्कार 1821 में एक नेत्रहीन फ्रांसीसी लेखक लुई ब्रेल ने किया था। इसी उपलक्ष्य में यह दिन मनाया जाता है। तिथि4 जनवरी अन्य जानकारीसन 2009 में 4 जनवरी को जब लुई ब्रेल के जन्म को पूरे दो सौ वर्षों का समय पूरा हुआ तो लुई ब्रेल जन्म द्विशती के अवसर पर हमारे देश ने उन्हें पुनः पुर्नजीवित करने का प्रयास किया जब इस अवसर पर उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया। लुई ब्रेल दिवस 4 जनवरी को लुई ब्रेल की याद में मनाया जाता है। लुई ब्रेल ने नेत्रहीनों के लिये ब्रेल लिपि का निर्माण किया था। लुई ब्रेल की वजह से नेत्रहीनों को पढ़ने का मौक़ा मिला। सन 2009 में 4 जनवरी को जब लुई ब्रेल के जन्म को पूरे दो सौ वर्षों का समय पूरा हुआ तो लुई ब्रेल जन्म द्विशती के अवसर पर हमारे देश ने उन्हें पुनः पुर्नजीवित करने का प्रयास किया जब इस अवसर पर उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया। 

ब्रेल लिपि मुख्य लेख :

       ब्रेल लिपि एक तरह की लिपि है, जिसको विश्व भर में नेत्रहीनों को पढ़ने और लिखने में छूकर व्यवहार में लाया जाता है। इस पद्धति का आविष्कार 1821 में एक नेत्रहीन फ्रांसीसी लेखक लुई ब्रेल ने किया था। यह अलग-अलग अक्षरों, संख्याओं और विराम चिन्हों को दर्शाते हैं। ब्रेल के नेत्रहीन होने पर उनके पिता ने उन्हें पेरिस के रॉयल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड चिल्डे्रन में भर्ती करवा दिया। उस स्कूल में "वेलन्टीन होउ" द्वारा बनाई गई लिपि से पढ़ाई होती थी, पर यह लिपि अधूरी थी। इस विद्यालय में एक बार फ्रांस की सेना के एक अधिकारी कैप्टन चार्ल्स बार्बियर एक प्रशिक्षण के लिये आए और उन्होंने सैनिकों द्वारा अँधेरे में पढ़ी जाने वाली "नाइट राइटिंग" या "सोनोग्राफी" लिपि के बारे में व्याख्यान दिया। यह लिपि कागज पर अक्षरों को उभारकर बनाई जाती थी और इसमें 12 बिंदुओं को 6-6 की दो पंक्तियों को रखा जाता था, पर इसमें विराम चिह्न, संख्‍या, गणितीय चिह्न आदि नहीं होते थे।

    ब्रेल को वहीम से यह विचार आया। लुई ने इसी लिपि पर आधारित किन्तु 12 के स्थान पर 6 बिंदुओं के उपयोग से 64 अक्षर और चिह्न वाली लिपि बनायी। उसमें न केवल विराम चिह्न बल्कि गणितीय चिह्न और संगीत के नोटेशन भी लिखे जा सकते थे। यही लिपि आज सर्वमान्य है। लुई ने जब यह लिपि बनाई तब वे मात्र 15 वर्ष के थे। सन् 1824 में पूर्ण हुई यह लिपि दुनिया के लगभग सभी देशों में उपयोग में लाई जाती ।

નિંદ્રા નો કુદરતી ક્રમ

🌷🌷 નિંદ્રા નો કુદરતી ક્રમ 😴😴

રાત્રી ના ૧૧ થી ૩ સુધી લોહી નો મહત્તમ પ્રવાહ લીવર તરફ હોય છે.
આ એ મહત્વ નો સમય છે જયારે શરીર લીવર ની મદદ થી, વિષરહિત થવાની પ્રક્રિયા માં થી, પસાર થાય છે,
એનો આકાર મોટો થઈ જાયે  છે,

પણ આ પ્રક્રિયા આપ ગાઢ નિદ્રા માં, પોહચો પછીજ શરૂ થાયે છે.
😌😌😲😲😴😲😲🤔

તમે ૧૧ વાગે ગાઢ નિંદ્રા ની અવસ્થા માં પોહચો પછીજ
આ પ્રક્રિયા શરૂ થાય
અને તો શરીર ને, પુરા

૪ કલાક મળે વિષમુક્ત થવા માટે.
🐞🦀🕸🕷🐍

હવે તમે જો ૧૨ વાગે ગાઢ નિંદ્રા ની અવસ્થા માં પહોંચો તો

તમારા શરીર ને ૩ કલાક જ મળે.

જો, ૧ વાગે ગાઢ નિંદ્રા ની અવસ્થા માં પહોંચો તો
તમારા શરીર ને 2 કલાક જ મળે.

અને જો, ..🐸2 વાગે ગાઢ નિંદ્રા ની અવસ્થા માં પહોંચો તો

તમારા શરીર ને ૧ જ કલાક મળે. 🐽🙈🌚⚡⚡🧐☹🙁

જ્યાં ૪ કલાક ની તાતી  જરૂર  હોય ત્યાં ઓછા કલાક  મળવા થી વિષ મુક્તિ નું  કાર્ય સંપૂર્ણ રીતે ના થઈ શકે.

અને શરીર વિષયુક્ત રોગો નું ઘર થતું જાયે.

થોડું વિચારી જુવો 🙄🤔    જયારે પણ તમે મોડી રાત
સુધી જાગ્યા હોવ

ત્યારે ગમે તેટલા કલાક
ઊંઘો     😴😴તમને પોતાની કાયા  બીજે દિવસે થાકેલીજ લાગશે. 🤒🤢

શરીર ને વિષમુક્ત થવા પૂરતો સમય ના આપી ને, 👾🤖👻
શરીર ની બીજી અનેક ક્રિયા
ઓ માં તમે અજાણતાંજ
અવરોધ ઉત્પન્ન કરો છો. 😷🤧

બ્રહ્મા મુરત એટલે સવારે ૩ થી ૫ ના સમય માં લોહી નું સંચરણ ફેફસાં તરફ થતું હોય છે. ☄🎇

જે અત્યંત જરૂરી ક્રિયા નું
સ્થાન છે તે વખતે 😇
તમે મન અને તન
ને સ્વચ્છ કરી, ધ્યાન જેવી સુક્ષ્મા પ્રકિર્યા માં જાત ને પરોવી જોઈએ

જેથી બ્રહ્માંડીય ઉર્જા જે તે સમય એ  વિપુલ માત્રા માં સહજ ઉપલબ્ધ હોય તે તમને પ્રાપ્ત થાય, 🤩😇🙌🎅🏼

તે પછી ખુલ્લી હવા માં, વ્યાયામ કરવો જોઈએ હવા માં
આ સમયે લાભપ્રદ આયન ની માત્રા ખૂબજ વધારે હોય છે. 🤽🏼‍♀⛹🏻‍♂🤼‍♀🤸🏻‍♀🚴🏼‍♀🚴🏾‍♂

૫ થી ૭ શુદ્ધ થયેલા રક્ત નો સંચાર તમારા મોટા આંતરડા તરફ હોય છે.
જે પાછલો મળ કાઢવાની પ્રક્રિયા માં સક્રિય ભાગ લે છે અને શરીર ને આખા દિવસ દરમિયાન લેવાતા પોષક તત્વો ગ્રહણ કરવા માટે તૈયાર કરે છે

પછી સૂર્યોદય ના સમય એ, 7- 9 શુદ્ધ રક્ત સ્વચ્છ શરીર ના પેટ અને આમાશય તરફ વહે છે.
આ સમય છે જયારે  પૌષ્ટિક નાસ્તો એટલે શિરામણ આરોગવો
જોઈએ. 🥥🍌🍇🥦🥕🍊🍎🧀🥗🥙🍜🍱

તમારા દિવસ નો તે સહુથી જરૂરી આહાર છે. 🤩🙋🏼‍♂🤷🏻‍♀

સવારે પૌષ્ટિક નાસ્તો
ના કરતા લોકો ને ભવિષ્ય માં ઘણી બધી આરોગ્ય-લક્ષી સમસ્યા નો સામનો કરવો
પડે  છે. 🤥😱😓🤒😷

આ કુદરત એ તમારા શરીર માટે બનાવેલી આરોગ્ય ઘડિયાળ છે.

એને અનુસરવા થી ચિતા સુધી ચાલતા જઈ શકાય. 

હવે તમે પૂછશો કે ક્યારેક કોઈ
કાર્ય મોડી રાત સુધી કરવું પડે
તો શું કરવાનું?

હું તો વિનંતી કરીશ ke kem જલદી સૂઈ ને વહેલા ઉઠી ને ના કરી શકાય ?

બસ  તમારા મોડી રાત ના કાર્યો ને વહેલા ઉઠી ને કરવાની આદત પાડો સમય તો સરખોજ મળશે.

પણ સાથે સાથે સ્વસ્થ શરીર પ્રાપ્ત થશે.

2 જાન્યુ, 2019

ગુજરાતને સિક્કીમની જેમ સંપૂર્ણ જૈવિક ખેતી તરફ લઈ જવા સંકલ્પ કરીએ

👉"એક દેશી ગાય પાળો...ત્રીસ એકર  ખેતી કરો"👈
  ખેડૂત મિત્રો, જય બલરામ...🙏
            જય ગૌવંદે માતરમ્...🙏
  સમસ્ત ખેડુત મિત્રોને જણાવવાનું કે પદ્મશ્રી સુભાષ પાલેકર પ્રેરિત દેશી ગાય આધારિત આધ્યાત્મિક ખેતી (ZBNF) શીખવા સમજવા માટેની છ દિવસની આવાસીય શિબિરનું આયોજન અમદાવાદ ખાતે થયું છે. જરૂરથી લાભ લો.
👉શિબિર સ્થળ:- રસરાજ પાર્ટી પ્લોટ, નિકોલ,અમદાવાદ.
👉સમય:-તા. 8 જાન્યુઆરી થી 13જાન્યુઆરી, 2019(છ) દિવસ.
👉રજીસ્ટ્રેશન ફી:-
પુરુષો માટે ₹500/-
સ્ત્રીઓ માટે ₹300/-
👉નોધ:- 1, ઉપરોક્ત રજીસ્ટ્રેશન ફીમાં છ દિવસ રહેવાનુ બે ટાઇમ જમવાનું ત્થા સવારે નાસ્તો અને બે ટાઇમ ચા/કોફી આપવામાં આવશે.
2, યુવા ખેડુતો માટે આ શિબિર ખાસ છે. શક્ય તેટલું જલદી રજીસ્ટ્રેશન કરાવી લેવું.
3, એક ખેડુત પાછળ ₹1500/- ખર્ચ આવી શકે છે. પરંતુ શક્ષમ ખેડુતો બાકીનો ખર્ચ ઉપાડી લેવાના છે.
       "ચલો ગુજરાતને સિક્કીમની જેમ સંપૂર્ણ જૈવિક ખેતી તરફ લઈ જવા સંકલ્પ કરીએ "
ખાસ નોંધ:- આ મેસેજ પોત પોતાના ગૃપમાં વધુ માં વધુ ફોરવર્ડ  કરી વધુ માં વધુ ખેડુતો ભાગ લે તેવું કરશો.

1 જાન્યુ, 2019

सत्येन्द्रनाथ बोस

सत्येन्द्रनाथ बोस

      जीवनी बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी (बोसॉन) के विषय में M.Sc. भौतिकी पढने वाल सभी विद्यार्थी जानते है | इस सांख्यिकी का विकास भारत के जाने माने वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस (Satyendra Nath Bose) ने किया था | उनके साथ आइन्स्टाइन का नाम जुड़ा हुआ है यद्यपि बोस ने आइन्स्टाइन के साथ कभी भी कार्य नही किया लेकिन बोस उनको सदैव अपना गुरु मानते थे क्योंकि उन्होंने अपना सांख्यिकी से संबधित शोधपत्र सबसे पहले विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्स्टाइन के पास ही भेजा था |  बोस (Satyendra Nath Bose) का जन्म कलकत्ता में 1 जनवरी 1894 को हुआ था | इनके पिता सुरेन्द्रनाथ बोस भारत के रेलवे विभाग में एक अधिकारी थे | सत्येन्द्रनाथ बोस (Satyendra Nath Bose) अपनी कक्षा में सदैव प्रथम आते थे | वे इतने प्रतिभाशाली छात्र थे कि उन्हें के बार एक पेपर में 100 में से 110 अंक मिले | यह गणित का पेपर था और उन्होंने इस प्रश्नपत्र में पूछे गये प्रश्नों को एक से अधिक तरीके से हल किया था | उनकी इस अभूतपूर्व प्रतिभा को देखकर एक अध्यापक ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह बालक एक दिन महान गणितज्ञ बनेगा | सन 1915 में इन्होने पुरे कलकत्ता विश्वविद्यालय ममे प्रथम स्थान ग्रहण किया था | उसी वर्ष उन्होंने सापेक्षिता के सिद्धांत से संबधित आइन्स्टाइन के मूल शोधपत्र का जर्मन से अंग्रेजी में अनुवाद किया | सन 1916 में M.Sc. करने के बाद वे ढाका विश्वविद्यालय के भौतिकी के अध्यापक हो गये | उन दिनों प्रथम विश्वयुद्ध जोरो पर चल रहा था इसलिए यूरोप में किये जा रहे अनुसन्धान के समाचार बाहर नही पहुच पाते थे | देवेन्द्र मोहन बोस उन दिनों जर्मनी में चुम्बकत्व के क्षेत्र में अनुसन्धान कर रहे थे | सत्येन्द्रनाथ बोस (Satyendra Nath Bose) देवेन्द्र मोहन बोस को पत्र लिखकर अनुसन्धानो के विषय में जानकारी प्राप्त करते रहते थे | सन 1923 में रीडर बनने के बाद बोस ने एक शोधपत्र लिखा जिस उन्होंने एक ब्रिटिश पत्रिका में छपने के लिए भेजा | इस शोध पत्रिका ने अस्वीकार कर दिया | यही से बोस (Satyendra Nath Bose) का मशहूर होने का इतिहास शुरू होता है | शोधपत्र के अस्वीकार होने पर यह विचलित नही हुए बल्कि उन्होंने इस शोधपत्र को आइन्स्टाइन को भेजा | आइन्स्टाइन ने इस पत्र को जर्मन में अनुवाद करके “जीत फर फिजिक” नामक पत्रिका में प्रकाशित करवाया  आइन्स्टाइन ने बोस (Satyendra Nath Bose) को स्वयं एक पत्र लिखा कि तुम्हारा कार्य गणित के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कार्य है | इसके बाद बोस का नाम आइंस्टीन के साथ बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी के रूप में हमेशा के लिए जुड़ गया | बोस ने मैडम क्युरी के साथ कार्य किया | पेरिस से बर्लिन गये | वहा उनका आइंस्टीन ने भव्य स्वागत किया | सन 1945 में वे ढाका छोडकर कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बन गये | सन 1956 में अवकाश ग्रहण करने के बाद उन्हें विश्वभारती विश्वविद्यालय का उपकुलपति बनाया गया   सन 1958 में उन्हें रॉयल सोसाइटी का फेलो बनाया गया | इसी वर्ष उन्हें भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया और राष्ट्रीय प्रोफेसर बनाया | वृद्धावस्था में वे साधुओ जैसे भगवे रंग के कपड़े पहनने लगे थे | इस उम्र में भी वे देश के वैज्ञानिकों से विचारों का आदान-प्रदान करते रहते है | इस उम्र में भी वे देश के अनेक संस्थानों का दौरा करते रहते थे | विज्ञान की सेवा करते हुए सन 1974 में उनकी मृत्यु हो गयी ।

28 ડિસે, 2018

दुनीया का सबसे ताकतवर पोषण पुरक आहार है सहजन (मुनगा) 300 से अधि्क रोगो मे बहोत फायदेमंद

🍀दुनीया का सबसे ताकतवर पोषण पुरक आहार है सहजन (मुनगा) 300 से अधि्क रोगो मे बहोत फायदेमंद इसकी जड़ से लेकर फुल, पत्ती, फल्ली, तना, गोन्द हर चीज़ उपयोगी होती है 🍀 🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱 🍀 आयुर्वेद में सहजन से तीन सौ रोगों का उपचार संभव है 🍀 सहजन के पौष्टिक गुणों की तुलना 🍀 •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• 👉-विटामिन सी- संतरे से सात गुना 👉-विटामिन ए- गाजर से चार गुना 👉-कैलशियम- दूध से चार गुना 👉-पोटेशियम- केले से तीन गुना 👉 प्रोटीन- दही की तुलना में तीन गुना 🍀 स्वास्थ्य के हिसाब से इसकी फली, हरी और सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट , प्रोटीन , कैल्शियम , पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन-ए , सी और बी-काम्प्लेक्स प्रचुर मात्रा में पाई जाती है 🍀 इनका सेवन कर कई बीमारियों को बढ़ने से रोका जा सकता है, इसका बॉटेनिकल नाम ' मोरिगा ओलिफेरा ' है हिंदी में इसे सहजना , सुजना , सेंजन और मुनगा नाम से भी जानते हैं. 🍀 जो लोग इसके बारे में जानते हैं , वे इसका सेवन जरूर करते हैं 🍀सहजन में दूध की तुलना में चार गुना कैल्शियम और दोगुना प्रोटीन पाया जाता है. 🍀 ये हैं सहजन के औषधीय गुण सहजन का फूल पेट और कफ रोगों में , इसकी फली वात व उदरशूल में , पत्ती नेत्ररोग , मोच , साइटिका , गठिया आदि में उपयोगी है 🍀 इसकी छाल का सेवन साइटिका , गठिया , लीवर में लाभकारी होता है। सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वात और कफ रोग खत्म हो जाते हैं 🍀 इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया , साइटिका , पक्षाघात , वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है। साइटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है. 🍀 मोच इत्यादि आने पर सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं और मोच के स्थान पर लगाने से जल्दी ही लाभ मिलने लगता है 🍀 सहजन की सब्जी के फायदे. 🍀 ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• 🍀 सहजन के फली की सब्जी खाने से पुराने गठिया , जोड़ों के दर्द , वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है। 🍀 इसके ताजे पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है साथ ही इसकी सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है, . 🍀 इसकी जड़ की छाल का काढ़ा सेंधा नमक और हिंग डालकर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है 🍀 सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के किड़े निकालता है और उल्टी-दस्त भी रोकता है 🍀 ब्लड प्रेशर और मोटापा कम करने में भी कारगर सहजन का रस सुबह-शाम पीने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है 🍀 इसकी पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे-धीरे कम होनेलगता है 🍀 इसकी छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़े नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है 🍀 इसके कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होता है इसके अलावा इसकी जड़ के काढ़े को सेंधा नमक और हिंग के साथ पीने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है। 🍀 इसकी पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सूजन ठीक होते हैं 🍀पानी के शुद्धिकरण के रूप में कर सकते हैं इस्तेमाल सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। 🍀 इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीसकर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लेरीफिकेशन एजेंट बन जाता है यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है , बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है। 🍀 काढ़ा पीने से क्या-क्या हैं फायदे 🍀 •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• 🍀 कैंसर और पेट आदि के दौरान शरीर के बनी गांठ , फोड़ा आदि में सहजन की जड़ का अजवाइन , हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है यह भी पाया गया है कि यह काढ़ा साइटिका (पैरों में दर्द) , जोड़ों में दर्द , लकवा ,दमा,सूजन , पथरी आदि में लाभकारी है | 🍀 सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है। आज भी ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि सहजन के प्रयोग से वायरस से होने वाले रोग , जैसे चेचक के होने का खतरा टल जाता है 🍀शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है🍀 •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• सहजन में हाई मात्रा में ओलिक एसिड होता है , जो कि एक प्रकार का मोनोसैच्युरेटेड फैट है और यह शरीर के लिए अति आवश्यक है। सहजन में विटामिन-सी की मात्रा बहुत होती है। यह शरीर के कई रोगों से लड़ता है 🍀 सर्दी-जुखाम 🍀 ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• 🍀 यदि सर्दी की वजह से नाक-कान बंद हो चुके हैं तो , आप सहजन को पानी में उबालकर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होगी। 🍀 हड्डियां होती हैं मजबूत. 🍀 ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• 🍀 सहजन में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है , जिससे हड्डियां मजबूत बनती हैं। इसके अलावा इसमें आइरन , मैग्नीशियम और सीलियम होता है 🍀 इसका जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है , इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है, गर्भवती महिला को इसकी पत्तियों का रस देने से डिलीवरी में आसानी होती है। 🍀 सहजन में विटामिन-ए होता है , जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिए प्रयोग किया आता जा रहा है 🍀 इस हरी सब्जी को अक्सर खाने से बुढ़ापा दूर रहता है इससे आंखों की रोशनी भी अच्छी होती है 🍀 यदि आप चाहें तो सहजन को सूप के रूप में पी सकते हैं इससे शरीर का खून साफ होता है 🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

रतलाम की दिव्या बनी मिसेज इंडिया 2018

रतलाम की दिव्या बनी मिसेज इंडिया 2018, अब मिसेस यूनिवर्स में लेंगी हिस्‍सा


 दिल्ली में हुई मिसेज इंडिया माई आईडेंटिटी ब्यूटी पेजेंट 2018 में रतलाम की दिव्या पाटीदार जोशी को मिसेज इंडिया 2018 का खिताब मिला है। दिव्या ने देश के विभिन्न राज्‍यों से सम्मिलित अंतिम 24 प्रतिभागियों को शिकस्त देकर मिसेस इंडिया का ताज हासिल कि या। अब वह 2019 में विश्व स्तर के मिसेस यूनिवर्स में भाग लेकर 125 करोड़ की जनसंख्या वाले भारत देश का प्रतिनिधित्व करेंगी।

24 ડિસે, 2018

પાણી3

પાણી આજે આપણા જીવનનો અગત્યનો ભાગ છે. માનવ શરીરનો ફક્ત 70% ભાગ પાણી છે, પછી તમે કલ્પના કરી શકો કે પાણી ન હોય તો શું થઈ શકે છે. પાણી વગર સમગ્ર પર્યાવરણ નાશ પામશે. માણસ ખોરાક વગર ઘણા મહિના સુધી જીવી શકે છે પરંતુ પાણી વગર તે એક સપ્તાહની અંદર મરી જશે.
આપણા પૃથ્વી પરના તમામ સાધનો મર્યાદિત જથ્થામાં છે અને પાણી મર્યાદિત માત્રામાં પણ ઉપલબ્ધ છે. જેમ આપણા જીવનનો દરેક શ્વાસ અમર્યાદિત છે, તે ખૂબ કિંમતી છે.

પૃથ્વી પર જીવંત માણસો માટે પાણી અમૃત જેવું છે. આજે, આપણે આ રીતે પાણીનો દુરુપયોગ કરીએ છીએ, જે આવતા વર્ષોમાં પાણીની તંગી ઘટાડે છે.
જો અમારી આગામી પેઢી પાણી નહીં મળે, તો તમે વિચારી શકો છો કે આગામી વર્ષોમાં પાણી વિના પરિસ્થિતિ ભયાનક રહેશે. આજે, જે પાણી મનુષ્ય લાયક છે,
નદીઓ, નહેરો અને તળાવોમાં નદીઓના નળના કારણે તે પણ દૂષિત થઈ રહ્યો છે, જેના કારણે શુદ્ધ પાણી પણ દૂષિત થાય છે અને આ કારણે ઘણા રોગો ફેલાય છે.

પાણી સાચા કિંમત લોકો શું પાણી રેડવાનું એક મોટું પાત્ર, જે અનેક કિલોમીટર દૂર છે તે વિશે જાણવા માટે આવે છે ક્યારેક પાણી પ્રદુષિત છે, પરંતુ આ પાણી કટોકટીના કારણે અને તેમની જીંદગીઓ બચાવવા પ્રદુષિત પાણી પીવા માટે છે .
આપણે પાણી બચાવવા જેટલું શક્ય એટલું કરવું જોઈએ. જ્યારે પણ તમે તરત જ રોકવાની જરૂર નળ ટેપ શું તમને લાગે છે પાણી પ્રવાહ ન જોઈ તમે થોડી પાણી સેવ લાભ થશે.
અમે રેડવાનું એક મોટું પાત્ર કે ટપક સમુદ્ર ખૂબ પાણી આપણે મુશ્કેલીઓ ઘણી ઓછી હશે ભવિષ્યના સેવ માંથી તમારી માહિતી અને ટપક માટે શું કરવા માંગો છો સંતુષ્ટ છે.
પાણી બચાવવા માટે બિનજરૂરી કામમાં પાણીનો ઉપયોગ કરશો નહીં. વરસાદનું પાણી સંગ્રહિત કરો અને પાણીના મહત્વને લોકો સમજાવી જોઈએ. અમે પાણી સંરક્ષણ રેલીને દૂર કરીને લોકોને બચાવવા માટે લોકોને પ્રોત્સાહિત કરી શકીએ છીએ.

પાણી2

જ્યાં પાણી છે ત્યાં જીવન છે. પાણી વગર જીવન શક્ય નથી. આપણું ગ્રહ એ એકમાત્ર ગ્રહ છે જેના પર જીવન શક્ય છે, કારણ કે પાણી અને જીવન શક્ય બનાવતી અન્ય જરૂરી વસ્તુઓ ઉપલબ્ધ છે. મંગળ, બુધ અથવા શુક્ર જેવા અન્ય ગ્રહો પરનું જીવન શક્ય નથી. તેઓ એક વંશના રણ જેવું જ છે કારણ કે ત્યાં પાણી નથી. જીવન માટે પાણી આવશ્યક છે અને તે વાતાવરણને સ્વચ્છ બનાવે છે.

ભારે વરસાદમાં ઘણા લોકો ડૂબી જાય છે, પરંતુ જીવનમાં પાણીનો વિશેષ મહત્વ છે. પાણી એ આજીવનનું પ્રવાહી છે, જેના સ્પર્શથી બીમાર વ્યક્તિ ઉગે છે અને એક નવું જીવન મેળવે છે. જીવન વિના કોઈ પણ જાતનું જીવન કલ્પના કરી શકાતું નથી. આ પ્રકૃતિ દ્વારા આપેલ એક ભેટ છે જેનું આપણે સન્માન કરવું જોઈએ. અમને પીવા, ધોવા, સ્વચ્છ અને બરફ મેળવવા માટે પાણીની જરૂર છે. પાણીનો ઉપયોગ અગ્નિથી થતી વખતે, હોલી વગેરેમાં રંગીન જેવા મનોરંજનમાં થાય છે. પાણીનો ઉપયોગ ફ્લોટિંગ, ફ્લોટિંગ અને ફિશિંગ માછલી વગેરેમાં પણ થાય છે. ભલે પાણી ન હોય તો માછલી પણ નથી.

આપણે બધા પાક, બગીચાઓ અને પ્રાણીઓ માટે પાણીની જરૂર છે. ખોરાક બનાવવા માટે પણ અમને વીજળી અને અન્ય ઉત્પાદનો બનાવવા માટે પાણીની જરૂર છે. પૃથ્વીના મોટા ભાગનો વિસ્તાર ટાપુઓ અને નદીઓથી ઘેરાયેલો છે. સમુદ્ર, ધોધ, નદીઓ, તળાવો, કુવાઓ વગેરે પાણીથી ભરપૂર છે. પર્યાવરણમાં તે બરફ, વરાળ અને વાદળના રૂપમાં હાજર છે.

પાણીનો દરેક ડ્રોપ કિંમતી છે. તેથી, તે બગાડવું જોઈએ નહીં. પાણી એ એક ખૂબ જ મહત્વપૂર્ણ સાધન છે, તે પર્યાવરણમાં સંતુલન જાળવી રાખે છે અને જીવન જાળવવામાં મદદ કરે છે. પાણી ચક્રની મદદ વરસાદ છે અને પછી સમાન વરસાદનો પાણી નદીઓની મદદથી ફરીથી સમુદ્ર સુધી પહોંચે છે. તેથી, પાણીનો દુરુપયોગ કરીને તે નિરર્થક થવું જોઈએ નહીં. પરંતુ દરેકને પાણીની યોગ્યતા નથી. અમે દરિયાઈ પાણીનો ઉપયોગ કરતા નથી અને પીવા માટે ગંદા અને દૂષિત પાણી પીતા નથી. આપણે હંમેશાં પીવા માટે સ્વચ્છ અને શુદ્ધ પાણીનો ઉપયોગ કરવો જોઈએ. પરંતુ પોટેબલ પાણીની માત્રા ખૂબ ઓછી છે. એટલા માટે આપણે પાણીને દૂષિત ન કરવું જોઈએ. જળ પ્રદૂષણ એક ગંભીર સમસ્યા બની ગઈ છે. દરેકને જળ પ્રદૂષણ અટકાવવા માટે સહકારની જરૂર છે. પાણી કુદરત દ્વારા આપવામાં આવેલ અમૂલ્ય ભેટ છે. તેથી, આપણે તેને દૂષિત ન કરવું જોઈએ, કારણ કે પાણી એ જીવનનું બીજું નામ છે.

પાણી


જળ છે તો જીવન છે…

    


ધરતી પરથી જળનું સ્તર ધીમે ધીમે ઘટી રહ્યું છે એ ગંભીર સમસ્યાથી દુનિયાનાં તમામ દેશો વાકેફ છે. એવી સંભાવના વ્યક્ત કરવામાં આવી છે કે આવનારા 30-40 વર્ષો પછી એક એવો સમય પણ આવશે કે જ્યારે આપણી પેઢી માટે ધરતીના 150 ફૂટ ઊંડે પણ પીવાનું પાણી નહીં મળે.
એટલે સાચું જ કહેવાયું છે કે જળ છે તો જીવન છે. આવતીકાલ જીવવી હોય તો આજે પાણીને બચાવવું આવશ્યક છે.

આ કામ કોઈ એક વ્યક્તિ કે કોઈ એક દેશ કે કોઈ એક સમાજે નહીં, પરંતુ તમામ પૃથ્વીવાસીઓએ સાથે મળીને કરવાનું છે.
(વિશ્વ જળ દિવસ નિમિત્તે લોકોને પાણીનું મૂલ્ય સમજાવવા માટે જગવિખ્યાત સેન્ડ આર્ટિસ્ટ સુદર્શન પટનાયકે ઓડિશાના પુરી શહેરના દરિયાકિનારે આ રેતશિલ્પ બનાવ્યા છે)
જળસ્તરમાં થઈ રહેલા ઘટાડાની ચિંતાને ધ્યાનમાં લઈને જ સંયુક્ત રાષ્ટ્ર (યૂએન) સંસ્થાની મહાસભાએ દુનિયાભરના દેશો માટે દર વર્ષે 22 માર્ચ વિશ્વ જળ દિવસ એટલે કે World Water Day ઘોષિત કર્યો છે. આ દિવસ મનાવવા પાછળનો ઉદ્દેશ્ય લોકોને પાણીના મહત્વથી સતર્ક રાખવાનો છે. જળ બચાવો નારાની સાથે જ જિંદગી બચાવો નારો ઉમેરી દેવામાં આવ્યું છે.

દુનિયામાં જે જળ સંસાધનો ઉપલબ્ધ છે એની જાળવણી કરવા તમામ સભ્ય દેશો પોતપોતાને ત્યાં નક્કર પગલાં લે અને સંયુક્ત રાષ્ટ્ર સંસ્થાની ભલામણોનો અમલ કરીને વિશ્વ જળ દિવસ માટે સમર્પિત બને એવો વિશ્વ સંસ્થાનો હેતુ છે.

પાણીને લગતા મુદ્દાઓ પર લોકોનું ધ્યાન કેન્દ્રિત કરવા માટે વિશ્વ જળ દિવસ ઉજવવામાં આવે છે.
વર્ષમાં દર 22 માર્ચે વિશ્વ જળ દિવસે પાણીના મૂલ્યને લોકો સમજે અને પાણીનું એક એક ટીપું સૃષ્ટિ પરના જીવન માટે કેટલું કિંમતી અને મહત્વનું છે એ સમજે અને આખું વર્ષ પાણીની બચત કરે, એનો સંભાળપૂર્વક વપરાશ કરે એવો ઉદ્દેશ્ય સર્વત્ર હંમેશ માટે સફળતા અપાવે એવીઆશા.


22 ડિસે, 2018

ISHRO IN INDIA


મહા નવલ -મળેલા જીવ અને માનવીની ભવાઈ કથા સર આસ્વાદ


#_મળેલા_જીવ #__પન્નાલાલ_પટેલ
દ્વારા લિખીત ગુજરાતી નવલકથા છે. આ નવલકથા કાનજી અને જીવીની પ્રણયકથા અને બંનેના પાત્રોના સંઘર્ષની કથાનું આલેખન કરે છે. પન્નાલાલ પટેલની સીમાસ્તંભ ગણાતી આ નવલકથા અંગ્રેજીમા તેમજ કેટલીક ભારતીય ભાષાઓમાં અનુવાદિત થઈ છે તેમજ તેનુ ફિલ્મમાં અને નાટ્યમાં રૂપાંતરણ થયું છે
#_કથાસાર
નવલકથામાં જેનો ઉલ્લેખ છે તે મેળો, કે જ્યાં કાનજી અને જીવી પ્રથમ વખત મળે છે
ગામડામાં રહેતા અને ભિન્ન જ્ઞાતિમાં જન્મેલા બે યુવાન પાત્રો પટેલ કાનજી અને વાળંદ જીવી જન્માષ્ટમી પ્રસંગે કાવડિયા ગામના ડૂંગરની નેળમાં ભરાયેલા મેળામાં આકસ્મિક રીતે ભેગા થાય છે અને પ્રથમ મુલાકાતે જ એકબીજાના પ્રેમમાં પડે છે, પરંતુ એ બંનેના લગ્નમાં જ્ઞાતિભેદ અવરોધરૂપ થાય છે. પોતાના મિત્ર હિરાની પ્રયુક્તિથી પ્રેરાઈને અને પોતાની પ્રેમીકા જીવી પોતાની નજર આગળ રહે એ હેતુથી, કાનજી જીવીને પોતાના ગામના કદરૂપા ધૂળા સાથે પરણાવે છે. કાનજીને આપેલા વચનથી બંધાઈને અને કાનજી પ્રત્યેની લાગણીથી દોરવાઈને જીવી આ સંબંધ કબૂલે છે, પણ એણે વહેમી પતિની મારઝૂડ વેઠવાનો વારો આવે છે. કાનજી નૈતિક સચ્ચાઈથી આત્મસંયમ જાળવે છે પણ જીવીનું દુ:ખ જોઈ ન શકતાં ગામ છોડીને નોકરીની શોધમાં શહેર ચાલ્યો જાય છે. બીજી તરફ, વહેમી પતિ તરફનો શારીરિક અને માનસિક ત્રાસ સહન ન થતાં જીવી રોટલામાં ઝેર ભેળવીને આત્મહત્યાનો પ્રયાસ કરે છે, પરંતુ વિધિવશાત્ અજાણતાં એ રોટલો ધૂળો ખાઈ જાય છે અને જીવી વિધવા બને છે. આ બનાવથી જીવી લોકનિંદાનો ભોગ બને છે અને કાનજી પણ એના પર વહેમાય છે, આથી આઘાતથી શોકમાગ્ન જીવી માનસિક સમતુલા ગુમાવી બેસે છે. છેવટે કાનજી શહેરથી આવે છે અને જીવીને પોતાની સાથે લઈ જાય છે.
સુન્દરમે આ નવલકથાની પ્રશંસા કરતા લખ્યું છે કે, 'અત્યારે આ કથા જેવી છે તેવી પણ હિન્દના કોઈ પણ સાહિત્યમાં અને થોડા સંકોચ સાથે દુનિયાના સાહિત્યમાં પણ ગુજરાતી કળાનું પ્રતિનિધિત્વ કરી શકે તેવી બની છે.
અનુવાદ અને રૂપાંતરણ
મળેલા જીવનો જીવી શીર્ષક હેઠળ હિંદીમાં અનુવાદ થયેલો છે અને તેના પરથી ઉલઝન નામનું હિન્દીમાં ચલચિત્ર પણ બન્યું છે. તેમજ આ નવલકથા પરથી ગુજરાતીમાં પણ ચલચિત્ર બન્યું છે અને તેનું નાટ્યરૂપાંતર પણ થયેલ છે. આ નવલકથાનો અંગ્રેજી અનુવાદ રાજેશ આઈ. પટેલે ધ યુનાઇટેડ સાઉલ્સ (૨૦૧૧) શીર્ષક હેઠળ કર્યો છે.
#__માનવીની_ભવાઈ
પન્નાલાલ પટેલની ૧૯૪૭માં પ્રકાશિત નવલકથા છે, જે ગુજરાતના ૧૮૯૯-૧૯૦૦માં છપ્પનિયા દુકાળ તરીકે ઓળખાતા પડેલા દુષ્કાળ પર આધારિત છે.
તેમાં કાળુ અને રાજુની પ્રેમકથા તેમજ ગુજરાતના ગામડાઓમાં ખેડૂતોના દુષ્કર જીવનની કથા છે. ૧૯૯૫માં વી. વાય કંટકે તેનું અંગ્રેજીમાં ભાષાંતર કર્યું હતું.
૧૯૯૩માં આ નવલકથા પરથી આ જ નામનું ચલચિત્ર પણ બન્યું હતું.
પન્નાલાલ પટેલે આ નવલકથા ભારતની સ્વતંત્રતાના સમયે માંડલી ગામમાં તેમના નાના ઘરમાં અને તેમના ખેતરમાં લખી હતી.
#__કથાસાર
આ નવલકથા વાલા પટેલના પુત્ર કાળુ અને ગાલા પટેલની પુત્રી રાજુની પ્રેમ કથા છે. તેઓ એકબીજાને પ્રેમ કરે છે અને લગ્ન કરવા ઇચ્છે છે, પરંતુ નસીબજોગે બંનેના લગ્ન અન્ય સાથે નક્કી થાય છે. આ પ્રેમ કથાની સાથે પન્નાલાલ પટેલે ૧૯૦૦ના દાયકામાં પડેલા છપ્પનિયા દુષ્કાળથી અસરગ્રસ્ત ખેડૂતોના જીવનનું વર્ણન કર્યું છે. નવલકથાનો અંત વરસાદના પ્રથમ બિંદુ સાથે થાય છે, જે ભયંકર દુષ્કાળના અંતનું સૂચન કરે છે.
#_અનુવાદ
વી. વાય કંટકે આ નવલકથાને અંગ્રેજીમાં અનુવાદિત કરી હતી, જે સાહિત્ય અકાદમી દ્વારા પ્રકાશિત થઇ હતી. ઉપેન્દ્ર ત્રિવેદી વડે તેનું ચલચિત્ર રૂપાંતરણ કરાયું હતું. તેમણે પોતે કાળુનું પાત્ર ભજવ્યું હતું.