1 જાન્યુ, 2019

सत्येन्द्रनाथ बोस

सत्येन्द्रनाथ बोस

      जीवनी बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी (बोसॉन) के विषय में M.Sc. भौतिकी पढने वाल सभी विद्यार्थी जानते है | इस सांख्यिकी का विकास भारत के जाने माने वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस (Satyendra Nath Bose) ने किया था | उनके साथ आइन्स्टाइन का नाम जुड़ा हुआ है यद्यपि बोस ने आइन्स्टाइन के साथ कभी भी कार्य नही किया लेकिन बोस उनको सदैव अपना गुरु मानते थे क्योंकि उन्होंने अपना सांख्यिकी से संबधित शोधपत्र सबसे पहले विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्स्टाइन के पास ही भेजा था |  बोस (Satyendra Nath Bose) का जन्म कलकत्ता में 1 जनवरी 1894 को हुआ था | इनके पिता सुरेन्द्रनाथ बोस भारत के रेलवे विभाग में एक अधिकारी थे | सत्येन्द्रनाथ बोस (Satyendra Nath Bose) अपनी कक्षा में सदैव प्रथम आते थे | वे इतने प्रतिभाशाली छात्र थे कि उन्हें के बार एक पेपर में 100 में से 110 अंक मिले | यह गणित का पेपर था और उन्होंने इस प्रश्नपत्र में पूछे गये प्रश्नों को एक से अधिक तरीके से हल किया था | उनकी इस अभूतपूर्व प्रतिभा को देखकर एक अध्यापक ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह बालक एक दिन महान गणितज्ञ बनेगा | सन 1915 में इन्होने पुरे कलकत्ता विश्वविद्यालय ममे प्रथम स्थान ग्रहण किया था | उसी वर्ष उन्होंने सापेक्षिता के सिद्धांत से संबधित आइन्स्टाइन के मूल शोधपत्र का जर्मन से अंग्रेजी में अनुवाद किया | सन 1916 में M.Sc. करने के बाद वे ढाका विश्वविद्यालय के भौतिकी के अध्यापक हो गये | उन दिनों प्रथम विश्वयुद्ध जोरो पर चल रहा था इसलिए यूरोप में किये जा रहे अनुसन्धान के समाचार बाहर नही पहुच पाते थे | देवेन्द्र मोहन बोस उन दिनों जर्मनी में चुम्बकत्व के क्षेत्र में अनुसन्धान कर रहे थे | सत्येन्द्रनाथ बोस (Satyendra Nath Bose) देवेन्द्र मोहन बोस को पत्र लिखकर अनुसन्धानो के विषय में जानकारी प्राप्त करते रहते थे | सन 1923 में रीडर बनने के बाद बोस ने एक शोधपत्र लिखा जिस उन्होंने एक ब्रिटिश पत्रिका में छपने के लिए भेजा | इस शोध पत्रिका ने अस्वीकार कर दिया | यही से बोस (Satyendra Nath Bose) का मशहूर होने का इतिहास शुरू होता है | शोधपत्र के अस्वीकार होने पर यह विचलित नही हुए बल्कि उन्होंने इस शोधपत्र को आइन्स्टाइन को भेजा | आइन्स्टाइन ने इस पत्र को जर्मन में अनुवाद करके “जीत फर फिजिक” नामक पत्रिका में प्रकाशित करवाया  आइन्स्टाइन ने बोस (Satyendra Nath Bose) को स्वयं एक पत्र लिखा कि तुम्हारा कार्य गणित के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कार्य है | इसके बाद बोस का नाम आइंस्टीन के साथ बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी के रूप में हमेशा के लिए जुड़ गया | बोस ने मैडम क्युरी के साथ कार्य किया | पेरिस से बर्लिन गये | वहा उनका आइंस्टीन ने भव्य स्वागत किया | सन 1945 में वे ढाका छोडकर कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बन गये | सन 1956 में अवकाश ग्रहण करने के बाद उन्हें विश्वभारती विश्वविद्यालय का उपकुलपति बनाया गया   सन 1958 में उन्हें रॉयल सोसाइटी का फेलो बनाया गया | इसी वर्ष उन्हें भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया और राष्ट्रीय प्रोफेसर बनाया | वृद्धावस्था में वे साधुओ जैसे भगवे रंग के कपड़े पहनने लगे थे | इस उम्र में भी वे देश के वैज्ञानिकों से विचारों का आदान-प्रदान करते रहते है | इस उम्र में भी वे देश के अनेक संस्थानों का दौरा करते रहते थे | विज्ञान की सेवा करते हुए सन 1974 में उनकी मृत्यु हो गयी ।

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