16 ઑક્ટો, 2020

मूर्ति का मूल्य

प्राचीन समय कि बात है......
एक राजा कि नगरी में एक ज्ञानी मूर्तिकार आया ।
जिसके पास तीन एक हि नैन नक्श व आकार कि मूर्तियां थी ।
जब तीनों मूर्तियां दरबार में पेश कि गई तो राजा ने मूर्तिकार से
तीनो का मूल्य जानना चाहा ।
मूर्तिकार ने मूल्य कुछ इस प्रकार बताया........
१....कोई किमत नही मुफ्त में भी कोई ले सकता है
२... मात्र १ रुपया
३... अनमोल (कोई जितना भी दें कम हि है )
अब मूर्तिकार से मूल्य सुनकर राजा और सभी मंत्रिगण व
अनेकों सभागण चकित हो गये.....आखिर ऐसा क्यों
जबकि सभी वही मिट्टी वही मेहनत से बनी है ।
राजा ने मूर्तिकार से ऐसे मूल्यों का कारण पूछा
मूर्तिकार ने सहज भाव से कहा...
महाराज दिखने में एक जैसी इन मूर्तियों के भीतर
गुण तीनों के बहुत हि अलग-थलग है जो कि मैं इस
सभा में प्रत्यक्ष स्पष्ट करना चाहता हूँ आप आज्ञा दें
राजा ने जिज्ञासु होकर कहा..
अवश्य आप प्रमाणित करें ।
मूर्तिकार ने जल मंगवाया और पहली मूर्ति के कान
में जल डाला ।
जो कि दुसरे कान से बाहर निकल गया ।
मूर्तिकार ने कहा .... राजन ये मूर्ति किसी प्रकार से
मूल्यवान नही है ये सिर्फ मिट्टी का पूतला भर है
अब दुसरी मूर्ति के कान में जल डाला जो कि मुख से निकला
मूर्तिकार ने कहा...महाराज ये मूर्ति एक रूपये कि है
फिर तीसरी मूर्ति के कान में जल डाला जो कि उसके पेट
में चला गया ।
इस मूर्ति मेसे जल बाहर निकला हि नही मूर्तिकार ने कहा..
राजन ये मूर्ति अमूल्य है जिसका कोई भी कितना भी मोल
लगाया जाय या दिया जाय कम हि है ।
राजा ने कहा... आप कृपया अपनी बात स्पष्ट करें।
मूर्तिकार ने कहा....
महाराज ये मूर्तियां चरित्र दर्शाती है
जैसे...
कोई इंसान ज्ञान और शिक्षा को अपने एक कान से सुनकर
दुसरे कान से निकाल दे ,यानी अनसुना कर दे वो किसी
पशु के समान होता है उसका कोई मूल्य नही हो सकता ।
और जो इंसान ज्ञान शिक्षा को सुन कर खुद ग्रहण भले नही
करें , किसी और को बतादे तो वो प्रशंसा का पात्र है क्यों किसी
और तक ज्ञान पहुंचने का वो माध्यम जरुर बना और दुसरो को
लाभान्वित किया।
महाराज ..अब बारी आती है तीसरी मूर्ति कि जिसके जल कान से
निकला और ना हि मुह से जल इसके भीतर समा गया है
अर्थात...जो व्यक्ति ज्ञान शिक्षा को
अपने ह्रदय में ग्रहण करले वो देवतुल्य है और वो अपने इसी गुण
से अनमोल हो जाता है

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો