29 મે, 2022

भोजन की थाली

भोजन की थाली कैसे परोसनी चाहिए ?
१. भोजन में सीमित पदार्थ हों, तो थाली कैसे परोसनी चाहिए ?

पात्राधो मंडलं कृत्वा पात्रमध्ये अन्नं वामे भक्ष्यभोज्यं दक्षिणे घृतपायसं पुरतः
शाकादीन् (परिवेषयेत्) । – ऋग्वेदीय ब्रह्मकर्मसमुच्चय, अन्नसमर्पणविधि

अर्थ : भूमिपर जल से मंडल बनाकर उसपर थाली रखें । उस थाली के मध्यभाग में चावल परोसें । भोजन करनेवाले के बार्इं ओर चबाकर ग्रहण करनेयोग्य पदार्थ परोसें । दाहिनी ओर घी युक्त पायस (खीर) परोसें । थाली में सामने तरकारी, शकलाद (सलाद) आदि पदार्थ होने चाहिए ।
२. भोजन में अनेक पदार्थ हों, तो थाली कैसे परोसनी चाहिए ?

अ. थाली में ऊपर की ओर मध्यभाग में लवण (नमक) परोसें ।

आ. भोजन करनेवाले के बार्इं ओर (लवण के निकट ऊपर से नीचे की ओर) क्रमशः नींबू, अचार, नारियल अथवा अन्य चटनी, रायता / शकलाद (सलाद), पापड, पकोडे एवं चपाती परोसें । चपाती पर घी परोसें ।

इ. भोजन करनेवाले के दाहिनी ओर (लवण के निकट ऊपर से नीचे की ओर) क्रमशः छाछ की कटोरी, खीर एवं पकवान, दाल एवं तरकारी परोसें ।

ई. थालीके मध्यभाग पर नीचे से ऊपर सीधी रेखा में क्रमशः दाल-चावल, पुलाव, मीठे चावल एवं अंत में दही-चावल परोसें । दाल-चावल, पुलाव एवं मीठे चावल पर घी परोसें ।
३. थाली में विशिष्ट पदार्थ विशिष्ट स्थान पर ही परोसने का महत्त्व

थाली में विशिष्ट स्थान पर विशिष्ट पदार्थ परोसने पर अन्न से प्रक्षेपित तरंगों में उचित संतुलन बनता है । इसका भोजनकर्ता को स्थूल एवं सूक्ष्म दोनों स्तरों पर अधिक लाभ होता है । थाली के पदार्थों का उचित संतुलन, अन्न के माध्यम से होनेवाली अनिष्ट शक्तियों की पीडा अल्प करने में भी सहायक है । पदार्थों के त्रिगुणों की मात्रा के अनुसार भोजन करते समय थाली में विशिष्ट पदार्थ विशिष्ट स्थान पर ही परोसें ।

अ. सामान्यतः रज-सत्त्वगुणी पदार्थ भोजनकर्ताके दाएं हाथ की ओर परोसते हैं ।

आ. सत्त्व-रजोगुणी पदार्थ भोजनकर्ता के बाएं हाथ की ओर परोसे जाते हैं । इससे अन्न से प्रक्षेपित तरंगों से शरीर की सूर्यनाडी एवं चंद्रनाडी के कार्य में संतुलन बनता है तथा स्थूल स्तर पर अन्न का पाचन भलीभांति होता है ।

इ. लवण में (नमक में) त्रिगुणों की मात्रा लगभग समान होती है । अतः उसे थाली के छोर पर सामने एवं मध्य में परोसते हैं । अधिकतर अन्न-पदार्थ बनाते समय लवण का उपयोग किया ही जाता है; क्योंकि लवण स्थूल एवं सूक्ष्म दोनों दृष्टि से अन्न में विद्यमान तरंगों में संतुलन बनाए रखने का कार्य करता है ।’
४. थाली में चार प्रकार के भात परोसने का क्रम एवं उसकी अध्यात्मशास्त्रीय कारणमीमांसा

अ. थाली में प्रथम सादी दाल एवं भात परोसते हैं, तदुपरांत पुलाव (मसाला- भात), तत्पश्चात मीठा-भात एवं अंत में दही-भात, यह क्रम होता है । थाली का मध्यभाग सुषुम्ना नाडी का दर्शक है ।

आ. श्वेत रंग से (भात के रंग से) उत्पत्ति होना एवं श्वेत रंग में ही लय, ऐसा समीकरण यहां है; अर्थात निर्गुण से उत्पत्ति एवं निर्गुण में ही लय, यह सुषुम्ना नाडी के कार्य की विशेषता है ।

इ. भोजन में प्रथम सत्त्वगुणी सादी दाल एवं भात ग्रहण करने के पश्चात प्रायः तमोगुणी पुलाव (मसालेयुक्त भात) ग्रहण करने को प्रधानता दी जाती है । ऐसा करने से पुलाव के तमोगुण का विलय सादी दाल एवं भात के सत्त्वगुणी मिश्रण में होने में सहायता मिलती है । इससे देह पर पुलाव के मसालों का विपरीत परिणाम नहीं होता ।

ई. तत्पश्चात मीठा-भात ग्रहण किया जाता है । इससे देह में मधुर रस जागृत होने में सहायता मिलती है ।

उ. भोजन के अंत में दही-भात सेवन को प्रधानता दी जाती है । इससे देह के सर्व रसों का शमन होकर अन्न की आगे की पाचन-संबंधी प्रक्रिया प्रारंभ होती है ।

ऊ. दही में विद्यमान रजो गुण पाचक रसों की क्रियाशक्ति बढाता है । इससे अन्न का पाचन उचित प्रकार से होने में सहायता मिलती है ।
५. भोजन की एवं नैवेद्य की थाली परोसने की पद्धति में अंतर

भोजन की एवं नैवेद्य की थाली परोसने की पद्धति में विशेष अंतर नहीं है । भोजन की थाली में पदार्थ परोसते समय प्रथम लवण परोसा जाता है, जबकि नैवेद्य की थाली में लवण नहीं परोसा जाता ।

🌹भोजन विधि 🌹- 1️⃣ 

🌹अधिकांश लोग भोजन की सही विधि नहीं जानते। गलत विधि से गलत मात्रा में अर्थात् आवश्यकता से अधिक या बहुत कम भोजन करने से या अहितकर भोजन करने से जठराग्नि मंद पड़ जाती है, जिससे कब्ज रहने लगता है। तब आँतों में रूका हुआ मल सड़कर दूषित रस बनाने लगता है। यह दूषित रस ही सारे शरीर में फैलकर विविध प्रकार के रोग उत्पन्न करता है। उपनिषदों में भी कहा गया हैः आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः। शुद्ध आहार से मन शुद्ध रहता है। साधारणतः सभी व्यक्तियों के लिए आहार के कुछ नियमों को जानना अत्यंत आवश्यक है। जैसे-

🌹आलस तथा बेचैनी न रहें, मल, मूत्र तथा वायु का निकास य़ोग्य ढंग से होता रहे, शरीर में उत्साह उत्पन्न हो एवं हलकापन महसूस हो, भोजन के प्रति रूचि हो तब समझना चाहिए की भोजन पच गया है। बिना भूख के खाना रोगों को आमंत्रित करता है। कोई कितना भी आग्रह करे या आतिथ्यवश खिलाना चाहे पर आप सावधान रहें।

🌹सही भूख को पहचानने वाले मानव बहुत कम हैं। इससे भूख न लगी हो फिर भी भोजन करने से रोगों की संख्या बढ़ती जाती है। एक बार किया हुआ भोजन जब तक पूरी तरह पच न जाय एवं खुलकर भूख न लगे तब तक दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए। अतः एक बार आहार ग्रहण करने के बाद दूसरी बार आहार ग्रहण करने के बीच कम-से-कम छः घंटों का अंतर अवश्य रखना चाहिए क्योंकि इस छः घंटों की अवधि में आहार की पाचन-क्रिया सम्पन्न होती है। यदि दूसरा आहार इसी बीच ग्रहण करें तो पूर्वकृत आहार का कच्चा रस(आम) इसके साथ मिलकर दोष उत्पन्न कर देगा। दोनों समय के भोजनों के बीच में बार-बार चाय पीने, नाश्ता, तामस पदार्थों का सेवन आदि करने से पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है, ऐसा व्यवहार में मालूम पड़ता है।

🌹रात्रि में आहार के पाचन के समय अधिक लगता है इसीलिए रात्रि के समय प्रथम पहर में ही भोजन कर लेना चाहिए। शीत ऋतु में रातें लम्बी होने के कारण सुबह जल्दी भोजन कर लेना चाहिए और गर्मियों में दिन लम्बे होने के कारण सायंकाल का भोजन जल्दी कर लेना उचित है।

🌹अपनी प्रकृति के अनुसार उचित मात्रा में भोजन करना चाहिए। आहार की मात्रा व्यक्ति की पाचकाग्नि और शारीरिक बल के अनुसार निर्धारित होती है। स्वभाव से हलके पदार्थ जैसे कि चचावल, मूँग, दूध अधिक मात्रा में ग्रहण करने सम्भव हैं परन्तु उड़द, चना तथा पिट्ठी से बने पदार्थ स्वभावतः भारी होते हैं, जिन्हें कम मात्रा में लेना ही उपयुक्त रहता है।

🌹भोजन के पहले अदरक और सेंधा नमक का सेवन सदा हितकारी होता है। यह जठराग्नि को प्रदीप्त करता है, भोजन के प्रति रूचि पैदा करता है तथा जीभ एवं कण्ठ की शुद्धि भी करता है।

🌹भोजन गरम और स्निग्ध होना चाहिए। गरम भोजन स्वादिष्ट लगता है, पाचकाग्नि को तेज करता है और शीघ्र पच जाता है। ऐसा भोजन अतिरिक्त वायु और कफ को निकाल देता है। ठंडा या सूखा भोजन देर से पचता है। अत्यंत गरम अन्न बल का ह्रास करता है। स्निग्ध भोजन शरीर को मजबूत बनाता है, उसका बल बढ़ाता है और वर्ण में भी निखार लाता है।

🌹चलते हुए, बोलते हुए अथवा हँसते हुए भोजन नहीं करना चाहिए।

🌹दूध के झाग बहुत लाभदायक होते हैं। इसलिए दूध खूब उलट-पुलटकर, बिलोकर, झाग पैदा करके ही पियें। झागों का स्वाद लेकर चूसें। दूध में जितने ज्यादा झाग होंगे, उतना ही वह लाभदायक होगा।

🌹चाय या कॉफी प्रातः खाली पेट कभी न पियें, दुश्मन को भी न पिलायें।

🌹एक सप्ताह से अधिक पुराने आटे का उपयोग स्वास्थ्य के लिए लाभदायक नहीं है।

🌹भोजन कम से कम 20-25 मिनट तक खूब चबा-चबाकर एवं उत्तर या पूर्व की ओर मुख करके करें। अच्छी तरह चबाये बिना जल्दी-जल्दी भोजन करने वाले चिड़चिड़े व क्रोधी स्वभाव के हो जाते हैं। भोजन अत्यन्त धीमी गति से भी नहीं करना चाहिए।

🌹भोजन सात्त्विक हो और पकने के बाद 3-4 घंटे के अंदर ही कर लेना चाहिए।

🌹स्वादिष्ट अन्न मन को प्रसन्न करता है, बल व उत्साह बढ़ाता है तथा आयुष्य की वृद्धि करता है, जबकि स्वादहीन अन्न इसके विपरीत असर करता है।

🌹सुबह-सुबह भरपेट भोजन न करके हलका-फुलका नाश्ता ही करें।

🌹भोजन करते समय भोजन पर माता, पिता, मित्र, वैद्य, रसोइये, हंस, मोर, सारस या चकोर पक्षी की दृष्टि पड़ना उत्तम माना जाता है। किंतु भूखे, पापी, पाखंडी या रोगी मनुष्य, मुर्गे और कुत्ते की नज़र पड़ना अच्छा नहीं माना जाता।

🌹भोजन करते समय चित्त को एकाग्र रखकर सबसे पहले मधुर, बीच में खट्टे और नमकीन तथा अंत में तीखे, कड़वे और कसैले पदार्थ खाने चाहिए। अनार आदि फल तथा गन्ना भी पहले लेना चाहिए। भोजन के बाद आटे के भारी पदार्थ, नये चावल या चिवड़ा नहीं खाना चाहिए।

🌹पहले घी के साथ कठिन पदार्थ, फिर कोमल व्यंजन और अंत में प्रवाही पदार्थ खाने चाहिए।

🌹माप से अधिक खाने से पेट फूलता है और पेट में से आवाज आती है। आलस आता है, शरीर भारी होता है। माप से कम अन्न खाने से शरीर दुबला होता है और शक्ति का क्षय होता है।

🌹बिना के भोजन करने से शक्ति का क्षय होता है, शरीर अशक्त बनता है। सिरदर्द और अजीर्ण के भिन्न-भिन्न रोग होते हैं। समय बीत जाने पर भोजन करने से वायु से अग्नि कमजोर हो जाती है। जिससे खाया हुआ अन्न शायद ही पचता है और दुबारा भोजन करने की इच्छा नहीं होती।

🌹जितनी भूख हो उससे आधा भाग अन्न से, पाव भाग जल से भरना चाहिए और पाव भाग वायु के आने जाने के लिए खाली रखना चाहिए। भोजन से पूर्व पानी पीने से पाचनशक्ति कमजोर होती है, शरीर दुर्बल होता है। भोजन के बाद तुरंत पानी पीने से आलस्य बढ़ता है और भोजन नहीं पचता। बीच में थोड़ा-थोड़ा पानी पीना हितकर है। भोजन के बाद छाछ पीना आरोग्यदायी है। इससे मनुष्य कभी बलहीन और रोगी नहीं होता।

🌹प्यासे व्यक्ति को भोजन नहीं करना चाहिए। प्यासा व्यक्ति अगर भोजन करता है तो उसे आँतों के भिन्न-भिन्न रोग होते हैं। भूखे व्यक्ति को पानी नहीं पीना चाहिए। अन्नसेवन से ही भूख को शांत करना चाहिए।

🌹भोजन के बाद गीले हाथों से आँखों का स्पर्श करना चाहिए। हथेली में पानी भरकर बारी-बारी से दोनों आँखों को उसमें डुबोने से आँखों की शक्ति बढ़ती है।

🌹भोजन के बाद पेशाब करने से आयुष्य की वृद्धि होती है। खाया हुआ पचाने के लिए भोजन के बाद पद्धतिपूर्वक वज्रासन करना तथा 10-15 मिनट बायीं करवट लेटना चाहिए(सोयें नहीं), क्योंकि जीवों की नाभि के ऊपर बायीं ओर अग्नितत्त्व रहता है।

🌹भोजन के बाद बैठे रहने वाले के शरीर में आलस्य भर जाता है। बायीं करवट लेकर लेटने से शरीर पुष्ट होता है। सौ कदम चलने वाले की उम्र बढ़ती है तथा दौड़ने वाले की मृत्यु उसके पीछे ही दौड़ती है।

🌹रात्रि को भोजन के तुरंत बाद शयन न करें, 2 घंटे के बाद ही शयन करें।

🌹किसी भी प्रकार के रोग में मौन रहना लाभदायक है। इससे स्वास्थ्य के सुधार में मदद मिलती है। औषधि सेवन के साथ मौन का अवलम्बन हितकारी है।

🌹भोजन विधि - 2️⃣ 🌹

(कुछ उपयोगी बातें )

🌹घी, दूध, मूँग, गेहूँ, लाल साठी चावल, आँवले, हरड़े, शुद्ध शहद, अनार, अंगूर, परवल – ये सभी के लिए हितकर हैं।

🌹अजीर्ण एवं बुखार में उपवास हितकर है।

🌹दही, पनीर, खटाई, अचार, कटहल, कुन्द, मावे की मिठाइयाँ – से सभी के लिए हानिकारक हैं।

🌹अजीर्ण में भोजन एवं नये बुखार में दूध विषतुल्य है। उत्तर भारत में अदरक के साथ गुड़ खाना अच्छा है।

🌹मालवा प्रदेश में सूरन(जमिकंद) को उबालकर काली मिर्च के साथ खाना लाभदायक है।

🌹अत्यंत सूखे प्रदेश जैसे की कच्छ, सौराष्ट्र आदि में भोजन के बाद पतली छाछ पीना हितकर है।

🌹मुंबई, गुजरात में अदरक, नींबू एवं सेंधा नमक का सेवन हितकर है।

🌹दक्षिण गुजरात वाले पुनर्नवा(विषखपरा) की सब्जी का सेवन करें अथवा उसका रस पियें तो अच्छा है।

🌹दही की लस्सी पूर्णतया हानिकारक है। दहीं एवं मावे की मिठाई खाने की आदतवाले पुनर्नवा का सेवन करें एवं नमक की जगह सेंधा नमक का उपयोग करें तो लाभप्रद हैं।

🌹शराब पीने की आदवाले अंगूर एवं अनार खायें तो हितकर है।

🌹आँव होने पर सोंठ का सेवन, लंघन (उपवास) अथवा पतली खिचड़ी और पतली छाछ का सेवन लाभप्रद है।

🌹अत्यंत पतले दस्त में सोंठ एवं अनार का रस लाभदायक है।

🌹आँख के रोगी के लिए घी, दूध, मूँग एवं अंगूर का आहार लाभकारी है।

🌹व्यायाम तथा अति परिश्रम करने वाले के लिए घी और इलायची के साथ केला खाना अच्छा है।

🌹सूजन के रोगी के लिए नमक, खटाई, दही, फल, गरिष्ठ आहार, मिठाई अहितकर है।

🌹यकृत (लीवर) के रोगी के लिए दूध अमृत के समान है एवं नमक, खटाई, दही एवं गरिष्ठ आहार विष के समान हैं।

🌹वात के रोगी के लिए गरम जल, अदरक का रस, लहसुन का सेवन हितकर है। लेकिन आलू, मूँग के सिवाय की दालें एवं वरिष्ठ आहार विषवत् हैं।

🌹कफ के रोगी के लिए सोंठ एवं गुड़ हितकर हैं परंतु दही, फल, मिठाई विषवत् हैं।

🌹पित्त के रोगी के लिए दूध, घी, मिश्री हितकर हैं परंतु मिर्च-मसालेवाले तथा तले हुए पदार्थ एवं खटाई विषवत् हैं।

🌹अन्न, जल और हवा से हमारा शरीर जीवनशक्ति बनाता है। स्वादिष्ट अन्न व स्वादिष्ट व्यंजनों की अपेक्षा साधारण भोजन स्वास्थ्यप्रद होता है। खूब चबा-चबाकर खाने से यह अधिक पुष्टि देता है, व्यक्ति निरोगी व दीर्घजीवी होता है। वैज्ञानिक बताते हैं कि प्राकृतिक पानी में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के सिवाय जीवनशक्ति भी है। एक प्रयोग के अनुसार हाइड्रोजन व ऑक्सीजन से कृत्रिम पानी बनाया गया जिसमें खास स्वाद न था तथा मछली व जलीय प्राणी उसमें जीवित न रह सके।

🌹बोतलों में रखे हुए पानी की जीवनशक्ति क्षीण हो जाती है। अगर उसे उपयोग में लाना हो तो 8-10 बार एक बर्तन से दूसरे बर्तन में उड़ेलना (फेटना) चाहिए। इससे उसमें स्वाद और जीवनशक्ति दोनों आ जाते हैं। बोतलों में या फ्रिज में रखा हुआ पानी स्वास्थ्य का शत्रु है। पानी जल्दी-जल्दी नहीं पीना चाहिए। चुसकी लेते हुए एक-एक घूँट करके पीना चाहिए जिससे पोषक तत्त्व मिलें।

🌹वायु में भी जीवनशक्ति है। रोज सुबह-शाम खाली पेट, शुद्ध हवा में खड़े होकर या बैठकर लम्बे श्वास लेने चाहिए। श्वास को करीब आधा मिनट रोकें, फिर धीरे-धीरे छोड़ें। कुछ देर बाहर रोकें, फिर लें। इस प्रकार तीन प्राणायाम से शुरुआत करके धीरे-धीरे पंद्रह तक पहुँचे। इससे जीवनशक्ति बढ़ेगी, स्वास्थ्य-लाभ होगा, प्रसन्नता बढ़ेगी।

🌹पूज्य बापू जी सार बात बताते हैं, विस्तार नहीं करते। 93 वर्ष तक स्वस्थ जीवन जीने वाले स्वयं उनके गुरुदेव तथा ऋषि-मुनियों के अनुभवसिद्ध ये प्रयोग अवश्य करने चाहिए।

🔷स्वास्थ्य और शुद्धिः🔷

🌹उदय, अस्त, ग्रहण और मध्याह्न के समय सूर्य की ओर कभी न देखें, जल में भी उसकी परछाई न देखें।

🌹दृष्टि की शुद्धि के लिए सूर्य का दर्शन करें।

🌹उदय और अस्त होते चन्द्र की ओर न देखें।

🌹संध्या के समय जप, ध्यान, प्राणायाम के सिवाय कुछ भी न करें।

🌹साधारण शुद्धि के लिए जल से तीन आचमन करें।

🌹अपवित्र अवस्था में और जूठे मुँह स्वाध्याय, जप न करें।

🌹सूर्य, चन्द्र की ओर मुख करके कुल्ला, पेशाब आदि न करें।

🌹मनुष्य जब तक मल-मूत्र के वेगों को रोक कर रखता है तब तक अशुद्ध रहता है।

🌹सिर पर तेल लगाने के बाद हाथ धो लें।

🌹रजस्वला स्त्री के सामने न देखें।

🌹ध्यानयोगी ठंडे जल से स्नान न करे।

🔷भोजन-पात्र🔷

🌹भोजन को शुद्ध, पौष्टिक, हितकर व सात्त्विक बनाने के लिए हम जितना ध्यान देते हैं उतना ही ध्यान हमें भोजन बनाने के बर्तनों पर देना भी आवश्यक है। भोजन जिन बर्तनों में पकाया जाता है उन बर्तनों के गुण अथवा दोष भी उसमें समाविष्ट हो जाते हैं। अतः भोजन किस प्रकार के बर्तनों में बनाना चाहिए अथवा किस प्रकार के बर्तनों में भोजन करना चाहिए, इसके लिए भी शास्त्रों ने निर्देश दिये हैं।

🌹भोजन करने का पात्र सुवर्ण का हो तो आयुष्य को टिकाये रखता है, आँखों का तेज बढ़ता है। चाँदी के बर्तन में भोजन करने से आँखों की शक्ति बढ़ती है, पित्त, वायु तथा कफ नियंत्रित रहते हैं। काँसे के बर्तन में भोजन करने से बुद्धि बढ़ती है, रक्त शुद्ध होता है। पत्थर या मिट्टी के बर्तनों में भोजन करने से लक्ष्मी का क्षय होता है। लकड़ी के बर्तन में भोजन करने से भोजन के प्रति रूचि बढ़ती है तथा कफ का नाश होता है। पत्तों से बनी पत्तल में किया हुआ भोजन, भोजन में रूचि उत्पन्न करता है, जठराग्नि को प्रज्जवलित करता है, जहर तथा पाप का नाश करता है। पानी पीने के लिए ताम्र पात्र उत्तम है। यह उपलब्ध न हों तो मिट्टी का पात्र भी हितकारी है। पेय पदार्थ चाँदी के बर्तन में लेना हितकारी है लेकिन लस्सी आदि खट्टे पदार्थ न लें।

🌹लोहे के बर्तन में भोजन पकाने से शरीर में सूजन तथा पीलापन नहीं रहता, शक्ति बढ़ती है और पीलिया के रोग में फायदा होता है। लोहे की कढ़ाई में सब्जी बनाना तथा लोहे के तवे पर रोटी सेंकना हितकारी है परंतु लोहे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए इससे बुद्धि का नाश होता है। स्टेनलेस स्टील के बर्तन में बुद्धिनाश का दोष नहीं माना जाता है। सुवर्ण, काँसा, कलई किया हुआ पीतल का बर्तन हितकारी है। एल्यूमीनियम के बर्तनों का उपयोग कदापि  न करें।

🌹केला, पलाश, तथा बड़ के पत्र रूचि उद्दीपक, विषदोषनाशक तथा अग्निप्रदीपक होते हैं। अतः इनका उपयोग भी हितावह है।

पानी पीने के पात्र के विषय में 'भावप्रकाश ग्रंथ' में लिखा है।

जलपात्रं तु ताम्रस्य तदभावे मृदो हितम्।

पवित्रं शीतलं पात्रं रचितं स्फटिकेन यत्।

काचेन रचितं तद्वत् वैङूर्यसम्भवम्।

(भावप्रकाश, पूर्वखंडः4)

🌹अर्थात् पानी पीने के लिए ताँबा, स्फटिक अथवा काँच-पात्र का उपयोग करना चाहिए। सम्भव हो तो वैङूर्यरत्नजड़ित पात्र का उपयोग करें। इनके अभाव में मिट्टी के जलपात्र पवित्र व शीतल होते हैं। टूटे-फूटे बर्तन से अथवा अंजलि से पानी नहीं पीना चाहिए।

🙏ह्रीं अन्नपूर्णायै नम: 🙏

हमारे *शास्त्रों* में, सिर्फ भोजन पकाने की ही बात नहीं है...

भोजन कैसे *परोसा जाए* वो बात भी लिखी है..!

💐

16 મે, 2022

हिन्दुओं, एक हो जाओ

27 फरवरी 1915 मे एक दल बना- हिन्दू महासभा!

इनका नारा था- "हिन्दुओं, एक हो जाओ!"

1915 से 2014 तक 99 वर्षों में इनसे हिन्दू एक नहीं हुए!

29 आगस्त 1964 में एक दल बना- विश्व हिन्दू परिषद!

इनका नारा था- "हिन्दुओं, एक हो जाओ!"

1964 से 2014 तक 50 वर्षों में इनसे हिन्दू एक नहीं हुए!

19 जून 1966 में फिर एक दल बना- शिवसेना!

इनका नारा था- "हिन्दुओं, एक हो जाओ!"

1966 से 2014 तक 48 वर्षो में इनसे हिन्दू एक नहीं हुए, क्योंकि वे स्वयं कभी महारास्ट्र से बाहर नहीं निकले!

1 अक्टूम्बर 1984 में फिर एक दल बना- बजरंग दल!

इनका नारा था- "हिन्दुओं, एक हो जाओ!"

1984 से 2014 तक 30 वर्षों में इनसे हिन्दू एक नहीं हुए!

और भी बहुत से छोटे-छोटे हिन्दू दल बने - हिन्दू वाहनी, हिन्दू रक्षा दल, हिन्दू सेना, हिन्दू युवा दल!

इन सब दलों से आज तक देश के हिन्दू एक नहीं हुए! बल्कि इन अलग-अलग दलों के कारण ही हिन्दू और ज्यादा बंटते गए!

अगर ये हिन्दुओं को एक करना ही चाहते थे, तो सब दल पहले आपस मे एक होते, तो संभव है कि हिन्दू एक हो जाते!

अब आते हैं मुद्दे की मूल बात पर!

इन दलो में बहुत से कांग्रेस के एजेंट भी हैं, जिनके कारण हिन्दुओं को कभी एक नहीं होने दिया! और 60 वर्षों तक कॉंग्रेस ने सत्ता की मलाई खाई और देश को लूटा!

*2014 में एक नायक आया - "नरेंद्र दामोदरदास मोदी"!*

इन्होंने हमें आतंकवादियों के जनाजे की भीड़ दिखाई - "उससे हिन्दू जागे"!

इन्होंने हमें आतंकवादियों के लिए रात के 2 बजे सुप्रीम कोर्ट खुलवाने वालों की पहचान कारवाई - "उससे हिन्दू जागे"!

इन्होंने हमें पाकिस्तानियों की भाषा बोलने वाले नेताओ को दिखाया - "उससे हिन्दू जागे"!

इन्होंने हमें देशविरोधी पत्रकारों की नौटंकी दिखाई - "उससे हिन्दू जागे"!

इन्होंने हमें चुनावों मे जालीदार टोपी पहनने वाले नेताओं की जमात दिखाई - "उससे हिन्दू जागे"!

इन्होंने हमें तिरंगा जलाने वाले, और देश विरोधी नारे लगाने वालों की पहचान करवाई - "उससे हिन्द जागे"!

2014 से 2018 तक पूरे देश मे हिन्दू जागने लगे और एक होने लगे!

अब जब हिन्दू एक हो गए, तो कॉंग्रेस और दूसरी सेकुलर पार्टिया सत्ता मे कैसे वापस आएगी ???

इसलिए हिन्दुओं को तोड़ना जरूरी है!

फिर राजस्थान में हुआ गुर्ज्जर आंदोलन! हिन्दुओं को जातिवाद में बांटा!
 
फिर हरियाणा में हुआ जाट आंदोलन! हिन्दुओं को जातिवाद में बांटा!

फिर गुजरात में हुआ पटेल आंदोलन! हिन्दूओं को जातिवाद में बांटा!

फिर महाराष्ट्र में हुआ दलित हिन्दू आंदोलन! हिन्दूओं को जातिवाद मे बांटा!

पैसों से किसी की भी प्रामाणिकता खरीदी जा सकती है! कॉंग्रेस के लिए ये सहज और मामूली बात है!

अब 2019 के आम चुनाव कॉंग्रेस को जीतने थे, तो उसे कुछ न कुछ तो करना ही था हिन्दुओं को तोड़ने के लिए!

इसलिए, पहले जिग्नेश मेवानी, उमर खालिद, कन्हैया कुमार तैयार किये गये! मीडिया ने प्रकाशित किया, पर सफल नहीं हुए!

फिर करणी सेना ने कॉंग्रेस को समर्थन देने की बात कही! सारे हिन्दू करणी सेना छोड़ कर चले गए!

फिर आरंभ हुआ प्रवीण तागोड़िया जी का खेल! इनसे भी हिन्दूओं को तोड़ने के प्रयास किए गये! क्योंकि ये पहले से ही मोदी के विरोधी रहे थे और कॉंग्रेस को इनसे बहुत लाभ भी हुआ! रात भर बेहोशी में ही घोषणा कर दी, कि 11 बजे प्रेस कांफ्रेंस होगी, और कह दिया मोदी हिन्दुओं को दबा रहा है!

बस, ये सुन कर इस्लाम कबूल करने वाला हार्दिक पटेल पहुँच गया, अर्जुन मोढ़वाडिया पहुँच गया, प्रमोद तिवारी जो दिनरात हिन्दुओं के लिए अपशब्द निकालता है, इन जैसे सब पहुँच गए। लेकिन समझदार नागरिक समझ गए कि ये सब कॉंग्रेस का खेल है, "हिन्दुओं को तोड़ो, फिर राज लाओ"!

अब हमें आप मोदी के चमचे कहो, या अंधभक्त, हमें कुछ फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि हमें मोदी जी पर गर्व है, जो आज हम हिन्दू उनके कारण एक हैं!

ध्यान देने वाली बात - इस पोस्ट का विरोध करने वाले कोई गाली गलोज नहीं करें! अगर विरोध करना है, तो हमारे इन प्रश्नों के उत्तर दें पहले :

1- प्रवीण तागोड़िया 3 वर्षों से विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष थे! इन 3 वर्षों मे हिन्दुओं के लिए एक भी कोई काम किया हो, तो बतायें!

2- जब साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित जेल में थे, तो इनको छुड़ाने के लिए ना तो कोई जन आंदोलन किया, ना कभी इनसे मिलने गए! ऐसा क्यों?

3- आज तक सोनिया, राहुल के विरुद्ध एक भी शब्द नहीं बोले! ऐसा क्यों?

4- कॉंग्रेस हिन्दुओं को आतंकवादी कहती थी, तब ये कहाँ सोये हुए थे?

5- बंगाल, केरल, कर्नाटक में हिन्दुओं के कत्ल-ए-आम हुए, तब इनका हिन्दू ह्रदय पिंघला क्यों नहीं?

6- विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष थे! विश्व की छोड़ो, भारत के कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ नहीं किया! ऐसा क्यों?

हां, तो अब ये पोस्ट पढ़कर जिसकी आंखें खोलनी हों, खोल दो!

जिसको अंधे बने रहना है, उसमे हमारा कोई दोष नहीं!

आप हमे भक्त या अंधभक्त, जो भी समझो.....

धर्मों रक्षति रक्षितः💪💪

🚩🚩 जय जय श्री राम!🚩🚩

14 મે, 2022

आठ योगी महापुरुष जो आज भी जीवित और अमर माने जाते हैं..

ये हैं वो आठ योगी महापुरुष जो आज भी जीवित और अमर माने जाते हैं..

1. महावीर हनुमान – अंजनी पुत्र हनुमान जी को अजर और अमर रहने के वरदान मिला है तथा इन की मौजूदगी रामायण और महाभारत दोनों जगह पर पाई गई है.रामायण में हनुमान जी ने प्रभु राम की सीता माता को रावण के कैद से छुड़वाने में मदद की थी और महाभारत में उन्होंने भीम के घमंड को तोडा था. सीता माता ने हनुमान को अशोक वाटिका में राम का संदेश सुनाने पर वरदान दिया था की वे सदेव अजर-अमर रहेंगे. अजर-अमर का अर्थ है की उनकी कभी मृत्यु नही होगी और नही वे कभी बूढ़े होंगे. माना जाता है की हनुमान जी इस धरती पर आज भी विचरण करते है.

2. अश्वत्थामा – अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचर्य के पुत्र है तथा उनके मष्तक में अमरमणि विध्यमान है. अश्वत्थामा ने सोते हुए पांडवो के पुत्रो की हत्या करी थी जिस कारण भगवान कृष्ण ने उन्हें कालांतर तक अपने पापो के प्रायश्चित के लिए इस धरती में ही भटकने का श्राप दिया था. हरियाणा के करुक्षेत्र और अन्य तीर्थ में उनके दिखाई दिए जाने के दावे किये जाते है तथा मध्यप्रदेश के बुराहनपुर में उनके दिखाई दिए जाने की घटना प्रचलित है.

3. ऋषि मार्कण्डेय – ऋषि मार्कण्डेय भगवान शिव के परम भक्त है. उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपश्या द्वारा महामृत्युंजय तप को सिद्ध कर मृत्यु पर विजयी पा ली और चिरंजीवी हो गए.

4. भगवान परशुराम -परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि और माता का नाम रेणुका था. परशुराम का पहले नाम राम था परन्तु इस शिव के परम भक्त थे. उनकी कठोर तपश्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें एक फरसा दिया जिस कारण उनका नाम परशुराम पड़ा.

5. कृपाचार्य -कृपाचार्य शरद्वान गौतम के पुत्र हैं। वन में शिकार खेलते हुए शांतनु को दो शिशु मिले जिनका नाम उन्होंने कृपि और कृप रखा तथा उनका पालन पोषण किया. कृपाचार्य कौरवो के कुलगुरु तथा अश्वत्थामा के मामा हैं, उन्होंने महाभारत के युद्ध में कौरवो को साथ दिया.

6. विभीषण – विभीषण ने भगवान राम की महिमा जान कर युद्ध में अपने भाई रावण का साथ छोड़ प्रभु राम का साथ दिया. राम ने विभीषण को अजर-अमर रहने का वरदान दिया था.

7. वेद व्यास – ऋषि व्यास ने महाभारत जैसे प्रसिद्ध काव्य की रचना की है. उनके द्वारा समस्त वेदो एवं पुराणो की रचना हुई. वेद व्यास, ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र है. ऋषि वेदव्यास भी अष्टचिरंजीवियो में सम्लित है.

8. राजा बलि – राजा बलि को महादानी के रूप में जाना जाता है. उन्होंने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया अतः भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल का राजा बनाया और अमरता का वरदान दिया. राजा बलि प्रह्लाद के वंशज है